रविवार, 20 अक्टूबर 2024
स्त्री 2 - सरकटे से डर नहीं लगता साहब, फ़ालतू कॉमेडी से लगता है
शुक्रवार, 6 सितंबर 2024
मैं लौटता हूं
प्रिय दुनिया,
बहुत दिनों तक भुलाए रखने का शुक्रिया!
मैं इतने दिन कहां रहा
कैसे बचा रहा
यह बताना ज़रूरी नहीं
मगर सब कुछ बचाते बचाते
खुद न बचने का डर वापस लाया है।
इस बीच एक लंबी रात थी
जो शायद अब भी है
मगर अंधेरे में दिखने लग जाता है
लंबी रातों में।
एक बार उदासी कुछ यूं थी कि
मैंने किसी गिलास को पकड़ने के बजाय
एक औरत की गर्दन पकड़ ली
बहुत देर बाद मालूम हुआ
अंधेरा कितना खतरनाक,
कितना अंधेरा हो सकता है।
मुझे अंधेरे में कई हाथ दिखते हैं
कई गर्दनें दिखती हैं
संभव है ज्यादातर औरतों की गर्दनें हों
मुझे लगता है कि जब देखूंगा
उजाले में उन हाथों को
क्या उनके हाथ में उजाले की गर्दन भी होगी?
इन भुलाए गए बहुत दिनों में
मैं एक बंद कमरे को दुनिया समझता रहा
ऐसा कई लोग करते हैं अपने उदास दिनों में
मगर कहने की हिम्मत नहीं करते।
इसी बीच कुछ प्यार करने का मन हुआ
तो मैंने अपनी चीख से प्यार किया
उस लड़की का चेहरा भी दिमाग में आया
जिसे कभी किसी से प्यार की उम्मीद नहीं रही।
मैं कई बार लड़ा अपने डर से
दवाईयों से, घर से
कई बार तो डॉक्टर से।
तो मैं कहना चाहता हूं जो
सिर्फ इसी भाषा में संभव है
कि दुनिया में कुछ भी इतना प्यारा नहीं
जितना भुलाए जाने का डर।
मैं लौटता हूं
अपने तमाम डर के साथ
कविता की तरह नहीं
बरसों बाद लौटी चीख की तरह।
निखिल आनंद गिरि
शनिवार, 17 अगस्त 2024
बेस्टसेलर होने के पीछे की अंधेरी दास्तान है "टिप टिप बरसा पानी"
शुक्रवार, 9 अगस्त 2024
चालीस की सड़क
बुधवार, 31 जुलाई 2024
रिंगटोन
बुधवार, 17 जुलाई 2024
पुकार
शुक्रवार, 24 मई 2024
याद का आखिरी पत्ता
मरने की फुरसत
बुधवार, 24 अप्रैल 2024
जाना
तुम गईं..
जैसे रेलवे के
सफर में
बिछड़ जाते हैं
कुछ लोग
कभी न मिलने के
लिए
जैसे सबसे ज़रूरी
किसी दिन आखिरी मेट्रो
जैसे नए परिंदों
से घोंसले
जैसे लोग जाते
रहे
अपने-अपने समय
में
अपनी-अपनी माटी
से
और कहलाते रहे
रिफ्यूजी
जैसे चला जाता है
समय
दीवार पर अटकी
घड़ी से
जैसे चली जाती है
हंसी
बेटियों की विदाई
के बाद
पिता के चेहरे से
तुम गईं
जैसे होली के
रोज़ दादी
नए साल के रोज़
बाबा
जैसे कोई अपना
छोड़ जाता है
अपनी जगह
आंखों में आंसू
शनिवार, 13 अप्रैल 2024
नदी तुम धीमे बहते जाना
निखिल आनंद गिरि
गुरुवार, 4 अप्रैल 2024
प्रेतशिला
मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024
मृत्यु की याद में
गुरुवार, 25 जनवरी 2024
चालीस की ओर
गुरुवार, 18 जनवरी 2024
दुख का रुमाल
रविवार, 31 दिसंबर 2023
अब विदा लेता हूं
शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023
दिसंबर में मई की याद
शनिवार, 23 दिसंबर 2023
दिसंबर के नाम एक ख़त
बुधवार, 13 दिसंबर 2023
पटना पुस्तक मेला - कवियों से पटी हुई भू है, पहचान कहां इसमें तू है!
दिल्ली में जगह जगह पर सस्ती किताबों के ठेले लगते हैं। सौ से अधिक लोग तो किसी ख़ाली दिन किताबें पलटने के लिए जुटे ही रहते हैं। आम तौर पर इन सस्ती जगहों पर भी अंग्रेज़ी की किताबें महंगी मिलती हैं। हिंदी की या तो नहीं मिलती या बेहद कम दाम में मिलती हैं। मैंने कई पुराने हिंदी उपन्यास इन्हीं सस्ते मेलों से खरीदे हैं।
मंगलवार, 12 दिसंबर 2023
जीवन दुख का विस्तार है
सोमवार, 30 अक्टूबर 2023
मैं अब खाता भी हूं आधा निवाला छोड़कर
मंगलवार, 22 अगस्त 2023
तुम तक जाने का कोई गूगल मैप नहीं
शुक्रवार, 23 जून 2023
आधा-अधूरा
अर्थ नहीं मिला लेकिन
तुमने जितना लिखा
उतना ही पढ़ा गया मैं
आधा-अधूरा
निखिल आनंद गिरि
गुरुवार, 22 जून 2023
कैसे कटेगा जीवन, बोलो?
गुरुवार, 1 जून 2023
घर पर कोई नहीं है
सोमवार, 29 मई 2023
अचानक नदी में उतरी लड़की के लिए
शुक्रवार, 26 मई 2023
चिट्ठी जो हरदम अधूरी पढ़ी जाएगी
सोमवार, 22 मई 2023
मालदा से लौटकर
नीचे गमछा
पीठ पर अमेरिकन टूरिस्टर का रफ़ू किया बैग।
दृश्य में वह आदमी
खेत की मेड़ पर उसी तरह बैठा है
जैसा बीस-पच्चीस साल पहले बैठा था।
जलकुंभियां उतनी ही स्थिर।
लड़कियां हैं पसीने से लथपथ
पढ़ाई कर लौटतीं
गोद में बच्चा लिए
निर्दोष आंखे लिए।
भैंसे लड़ रहे बीच सड़क पर
आदमी शांति से प्रतीक्षा में हैं
गाड़ियों के हैंंडल थामे
उन्हें कोई जल्दी नहीं।
लड़ाईयों के ख़त्म होने की प्रार्थना में
इसी तरह रहा जा सकता है
बिनी किसी हड़बड़ी।
एक सड़क है
जो कच्ची से पक्की हुई है
बैंक खुले हैं कई
कर्ज़ लेने वाले बढ़े हैं बहुत
और हॉर्न वाली मोटर साइकिलें
जहां सदियों का इंतज़ार है
ट्रेन के गुज़र जाने का।
गीत गाते बाउल भिक्षु हैं
बिना सुने खुदरा देते भले लोग
कानों में इयरफोन हैं।
हिंदुओं से ज़्यादा मुसलमान हैं
कहीं कोई आतंक नहीं फिर भी
ये ज़मीन अगर सदियों से है
तो हमारे मुल्क के नक्शे में
सबसे ज़्यादा दिखाई क्यूं नहीं देती।
कोई मेरी सरकार को पावर वाला चश्मा दे दो
या कागज़ वाला रेल टिकट।
निखिल आनंद गिरि
शुक्रवार, 19 मई 2023
बिहार का सिनेमा कैसा होना चाहिए?
सोमवार, 15 मई 2023
'बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ' के शोर के बीच देखिए स्त्री होने की 'दहाड़'
गुरुवार, 4 मई 2023
क्षणिकाएं
सोमवार, 23 जनवरी 2023
उदास मौसम का प्रेमगीत
मंगलवार, 17 जनवरी 2023
रविवार, 8 जनवरी 2023
कौन मुकेश?
'एक रील की क़ीमत तुम क्या जानो कवि बाबू?'
सोमवार, 2 जनवरी 2023
क्रिसमस की रात और चार्ली चैपलिन की बात
मंगलवार, 6 दिसंबर 2022
रांची की अधूरी यात्रा
मंगलवार, 8 नवंबर 2022
मेट्रो से दुनिया
गुरुवार, 22 सितंबर 2022
'इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी' - सी भास्कर राव की समीक्षा
जाने-माने साहित्यकार सी. भास्कर राव सर जमशेदपुर में मेरे टीचर रहे हैं। बेहद सौम्य, शालीन और मृदुभाषी। उन्हें अपनी कविताओं की किताब भेजी तो बदले में उन्होंने ये मेल भेजकर और कर्ज़दार कर दिया। ऐसे भी कोई लिखता है क्या। आज उनका जन्मदिन है तो सोचा अपने ब्लॉग पर यह समीक्षा लगाकर अपने गुरु को थोड़ा सम्मान दिया जाए।
प्रियवर
निखिल,स्नेह|
मैंने
आपके प्रथम कविता संग्रह की सारी कविताएं मनोयोग से पढ़ीं|
आशीष
सहित मैं इस बात के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ कि आपने अपनी श्रेष्ठ
कविताएं पढ़ने का एक दुर्लभ अवसर मुझे प्रदान किया|
सच
तो यह है कि मैं बहुत कम कविता संग्रह ही पढ़ पाया हूँ,शायद इसलिए भी कि मैं मूलत:
एक गद्य लेखक हूँ और गद्य रचनाएं ही अधिक पढ़ने का अवसर मिलता रहा है| किसी युवा
कवि के प्रथम कविता संग्रह पढ़ने का अवसर भी बहुत कम मिला है,लेकिन पूरी ईमानदारी
से कह सकता हूँ कि इससे पूर्व किसी युवा कवि का इतना प्रखर और प्रभावशाली संग्रह
कभी पढ़ने को नहीं मिला|सुप्रसिद्ध साहित्यकार सी. भास्कर राव
सारी
कविताएं पढने के बाद यह अनुभव किया कि ये ऐसी कविताएं नहीं हैं,जिन्हें एक बार पढ़
लेने मात्र से उनकी गहराई और गंभीरता को पूरी तरह अनुभव किया जा सके,बल्कि उन्हें
कई-कई बार पढ़ने की आवश्यकता है ताकि उनकी परतों और तहों को समझा जा सके|
समस्त
कविताएं मुझे अत्यंत संवेदनशील,सार्थक,सघन और नितांत सामायिक प्रतीत हुईं|
इन
कविताओं में जो तेवर है,तल्खी है,तीव्रता है,वह किसी भी संवेदनशील पाठक को झकझोरने
में समर्थ है|
कथ्य
और शिल्प की दृष्टि से सभी कविताएं,चाहे वे छोटी हों या किंचित लम्बी,अपने आप में परिपक्व
और प्रौढ़ हैं| कोई भी कविता किसी जागरूक मन को बिना स्पर्श किए रह जाए,यह कतई संभव
नहीं है|
ये
सारी कविताएं आज के समय और समाज की परतों को उघेड़ने में जितनी सक्षम हैं,उन्हें
सीधे छेदने और भेदने में भी उतनी ही सामर्थ्यवान तथा संभावनापूर्ण हैं|
आज
के समाज के छल-छद्म की जो चीर-फाड़ इन कविताओं में हुई है,वह अपनी नंगी आँखों से
किसी लाश के निर्मम पोस्टमार्टम को देखते हुए भीतर से छलनी होने जैसा है|
सच
तो यह है कि हर कविता अपने आप में एक मिसाइल की तरह है,जिसकी अपनी-अपनी मारक
क्षमता है,जिससे कोई बचना चाहकर भी नहीं बच सकता है|
कई
कविताएं हमें अपने बौनेपन,नंगेपन और नपुंसकता का तीखा एहसास कराती हैं| साथ ही
अपनी असमर्थता,असहायता,अवशता का भी| ये कविताएं हमें अपनी बेबसी और अपनी बेचारगी से रूबरू कराती हैं|
कविताएं
जिस हद तक पाठकों के मन पर अपना प्रभाव डालती हैं,उसी हद तक उनके मस्तिष्क पर
प्रहार भी करती हैं| हर कविता का हर भाव किसी न किसी वैचारिक चेतना को अभिव्यक्त
करने में समर्थ है| कथ्य और शिल्प का तथा भाव और विचार का जो सामंजस्य इन कविताओं
में मिलता है,वह उनके समग्र प्रभाव को कई गुना बढ़ा देता है|
खासकर
कविताओं का विचार पक्ष,जो अपनी पूरी बौद्धिक क्षमता के साथ मौजूद है,पढ़ने वाले को बेचैन
करता है और भीतर तक हिला कर रख देता है,जिससे मन विचलित और आंदोलित हो उठता है|
व्यक्तिगत
जीवन प्रसंगों से लेकर सामाजिक और राजनैतिक प्रसंगों तक तथा उससे भी आगे जाकर
सार्वजनीन प्रसंगों तक इनमें जो गहरी विवेचना और सघन विश्लेषण मिलता है,वह अचंभित
कर देता है कि क्या सचमुच ये कविताएं किसी युवा कवि के प्रथम कविता संग्रह की है!
प्रियवर
इन सारी कविताओं को पढ़ने के बाद यही महसूस किया कि कविताओं में जो गंभीरता और
गहराई है,उस पर टिप्पणी करने की अर्हता सचमुच
मुझमें नहीं है|
सचाई
यह है कि मैं पिछले लगभग पचास वर्षों से लिख छप रहा हूँ,लेकिन कन्फेस करता हूँ कि
अपने आज तक के समस्त लेखन-प्रकाशन पर आपकी यह कविता संग्रह बहुत-बहुत भारी पड़ता
है|
मेरे
एक दिवंगत पूज्य गुरुदेव कहा करते थे कि कोई गुरु जब अपने शिष्य से हार जाए,तो
समझो कि वह गुरु की सबसे बड़ी जीत है| आपकी कविताओं को पढ़ने के बाद आज मैं शिद्दत
से महसूस करता हूँ कि मैं अपने पुत्रवत शिष्य निखिल आनन्द गिरि से हार कर स्वयं को
विजयी और गौरान्वित अनुभव कर रहा हूँ,जिसका प्रमाण है- आपका यह प्रथम कविता संग्रह
“ इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी “
पुन:
एक बार हार्दिक बधाई,असीम शुभकामनाएं एवं अशेष आशीष| इसलिए कि इन्हें पढ़कर मैं
धन्य-धन्य हुआ| यह संग्रह नहीं पढ़ पाता तो निश्चय ही समकालीन जीवन के खुरदुरे
यथार्थ और बेरहम सचाई के साक्षात्कार से वंचित रह जाता|
सी.भास्कर राव.
ये पोस्ट कुछ ख़ास है
नन्हें नानक के लिए डायरी
जो घर में सबसे छोटा होता है, असल में उसका क़द घर में सबसे बड़ा होता है। जैसे सबसे छोटा बच्चा पूरे घर की धुरी होता है। ये पोस्ट मेरे दो साल के...
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