ओ मृत्यु!
तुम क्या किसी गलत द्वार आई थी
हमने तो नहीं बुलाया था तुम्हें
न ही दरवाज़े पर थी किसी दस्तक की आवाज़
दबे पांव कौन आता है संगिनी के भेस में।
अभी तो हम दुख में मुस्कुराना ही सीखे थे
मेरी बच्ची ने अकेलेपन से जीतना शुरू किया था
डॉक्टर उसे सबसे निरीह लगते लगे थे
जब वो देखती उन्हें मूर्तियों के आगे माथा टेक कर
अस्पताल में प्रवेश करते।
अभी तो उसने बोधगया ही देखा था
उड़ता हुआ आख़िरी पत्ता बोधिवृक्ष का
जीवन में उतरना बाक़ी रहा बुद्ध का।
चूहों का एक मंदिर होता है
अभी अभी जाना हमने
दूध पीकर सफेद चूहे कितने विस्मय से देखे उसने
कितने झूले, कितनी नदियां, कितने शहर
अभी घूमना रहा बाक़ी
एसी के सारे डिब्बे में नहीं चढ़ी अब तक
हवाई जहाज़ बस दूर से देखा था उसने
न रांची के पहाड़ी मंदिर गई
न कोलकाता के दीघा घाट
न सिलीगुड़ी की चहल पहल
न केरल के ठाट।
अभी चिपक कर देखनी थी कई फिल्में
भीगना था किसी अल्हड़ बरसात में
मैगी पर गुज़ारनी थी कुछ बातूनी रातें
डिज़्नीलैंड घूमना था साथ में
फिर किस बहाने
किस कारण
आई तुम?
अगर पता ग़लत हो तो
लौट आती है बैरन चिट्ठियां
क्या मृत्यु ग़लत नहीं होती कभी!