क्या लिखूं? कैसी हो? जानता हूं, कैसी हो। अपने आसपास ज़हरीले सांपों से घिरी हुई। मुझसे दूरी रखने के तमाम उपाय जुटाकर मुझसे मिलने को बेताब।
तुमसे मिलने की इच्छा नहीं है। तुम हमेशा मेरे पास ही रही। अलग से क्या मिलना। दूर कभी लगी नहीं। फिर क्यूं बचता रहा तुमसे।
कोई नाराज़गी नहीं। तुम्हारे भीतर जिन भले दिखने वाले तुम्हारे शुभचिंतकों ने ज़हर भरा है, मैं उनसे नफ़रत भी नहीं करना चाहता। नफरत के लिए भी रिश्ता रखना पड़ता है।
उन्होंने तुम्हारे और मेरे रिश्ते के बीच इतनी गहरी खाई खोद दी कि हम कभी एक साथ एक दूसरे के होकर बात ही नहीं कर पाए।
वो कान लगाकर सुनते रहे, गलत अफवाहें उड़ाते रहे। तुम्हारे यक़ीन पर चोट करते रहे, जो तुम्हें मुझ पर था। है।
बहुत अफसोस है। मैं हमारी दूरी को कम नहीं कर सका। मुझे लगा कि तुम जहां हो, वो मुझसे ज़्यादा हिफाज़त से रखेंगे तुम्हे। तुम्हारा गुस्सा, हमारी लड़ाईयां, सब क़ाबू में रहेंगी वहां।
मगर मैं दूर से ये नहीं देख पाया कि तुम वहां भी मेरा इंतज़ार ही करती रही। उन तमाम नकली लोगों, दोस्तों के घटिया चक्रव्यूह से घिरी होने के बावजूद।
तुम जहां भी हो, कोई ये नहीं देख पाएगा कि हमारा तुम्हारा क्या रिश्ता था। उनकी नीच समझ से बहुत अलग, पवित्र; वर्तमान की स्याह चादर से थोड़ा धुंधला।
तुम दरअसल गईं नहीं, अपने आसपास घिरे गिद्धों को मुक्त कर दिया। वरना वो इस रिश्ते को और नोच नोच कर खाते ही रहते।
उनकी चिंता मत करना। अब मेरा और तुम्हारा संवाद इतना निजी है कि निर्लज्ज नजरें उन्हें ताड़ नहीं पाएंगी।
मुझे माफ कर देना, मैं नहीं जानता था कि तुम्हें उनसे इस तरह आज़ाद करना होगा। अपने कंधे पर रखे हुए...
उन्हें माफ कर देना, वो नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।
जहां हो, वहां खुश रहना। मुझसे लड़ने के नए रास्ते खोजने में कोई कमी मत रखना। मुझे इसकी आदत पड़ी हुई है।
इस आदत के बिना कैसे रहूंगा, बताओ..
सार्थक शीर्षक
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएं