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बुधवार, 11 दिसंबर 2013

खुले बालों वाली लड़की...

एक ही टेबल पर कॉफी पीते हुए दोनों दो अलग-अलग ग्रहों के बारे में सोच रहे थे....लड़का सोच रहा था कि वो चांद पर ज़मीन ले पाया तो सबसे पहले कॉफी की खेती शुरू करेगा... उसने अचानक लड़की को बताया कि पिछली रात कार्तिक की पूर्णिमा को उसने खुले आकाश के नीचे मीठी खीर रख छोड़ी थी... लड़की सोच रही थी कि कॉफी गर्म नहीं होती तो वो इस बोरिंग लड़के के बजाय मेट्रो की सीट पर बैठी होती, जहां एक सीट उसके लिए आरक्षित होती है.....टेबल के सामने एक यूनिफॉर्म में वेटर खड़ा था और इस ऊबाऊ प्रेम कहानी के अंत का इंतज़ार कर रहा था क्योंकि उसे दुकान समय से बंद करनी थी और यहां उसे किसी टिप की उम्मीद भी नहीं थी...लड़की ने जैसे-तैसे कॉफी खत्म की और टिशू पेपर से अपना मुंह साफ किया....टिशू पेपर पर लिपस्टिक के निशान उग आए थे....वेटर ने झट से लिपस्टिक वाले टिशू पेपर के साथ कॉफी से खाली गिलास ट्रे में रख लिया....लड़के ने लपककर टिशू पेपर उठा लिया और वेटर को घूरते हुए शॉप से बाहर निकल आए...लड़की ने किसे घूरा, ये बताने की ज़रूरत नहीं है...लड़के की इच्छा हुई कि वो थोड़ी देर और बैठे, इधर-उधर की बातें करे और हो सके तो लड़की का माथा भी चूम ले...उसने लड़की से पहली इच्छा जताई तो लड़की ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई...उसका मूड शायद खराब था क्योंकि उसे घर पहुंचने में देर हो रही थी....लड़के की बाक़ी दो इच्छाएं किसी काम की नहीं रहीं....लड़के ने सोचा कि ज़रूर आकाश में रखी खीर बिल्ली ने जूठी कर दी होगी...उसे बिल्ली और खीर पर बहुत गुस्सा आया....


‘हम कल फिल्म देखने चलें....’ लड़की ने अचानक पूछा...

लड़के ने कहा, ‘नहीं, कल नहीं....परसों चलते हैं..’। उसे लगा लड़की उसे कल के लिए ज़िद करेगी तो वो हां करेगा....मगर,लड़की ने परसों वाला प्रस्ताव भी टाल दिया और आगे कोई बात नहीं की....लड़के को ही कहना पड़ा...’कल कितने बजे का शो देखेंगे’

लड़की ने कहा, ‘अब रहने दो’

लड़के ने कहा, ‘क्यूं..?’

‘क्यूं मेरा सर...’

‘प्लीज़ कल ही चलते हैं...प्लीज़’

लड़की मान गई और लड़के से शर्त रखी कि वो कोई नीली कमीज़ पहनकर आए। लड़के ने तुरंत मान लिया और ये भी नहीं सोचा कि हॉल के अंधेरे में सभी रंग एक जैसे होते हैं....

लड़की ने पूछा, ‘तुम्हारे पास कैमरा है?’

‘नहीं...क्यों?’
'क्यों, मेरा सर...
लड़की थोड़ी जल्दी में थी क्योंकि वो लड़की थी और उसे शाम के बाद घर से बाहर रहना मना था....
वो फिर भी बोली,
''अच्छा सुनो, कल हम थोड़ी देर धूप में बैठेंगे.....'
''और चावल भी खाएंगे, फ्राइड राइस....''

लड़के ने कहा, ''ठीक है, मगर तुम अपने खुले बालों के साथ आना.....''
लड़की मुस्कुराई और पूछा, ''क्यूं...''
''ऐसे ही''
लड़की बोली ''तुम्हारी कमीज़ में दो जेबें क्यूं हैं....''
लड़का कुछ समझा नहीं कि क्या जवाब दे....बोला, ''एक में आसमान है, और एक में सारी दुनिया...''
लड़की बोली, ''और मैं....''

लड़की चली गई....लड़का कुछ देर खड़ा रहा...उसने लिपस्टिक वाला टिशू पेपर निकाला और वापस अपनी जेब में रखकर दूसरी ओर चला गया...उसने सोच लिया था कि कुछ भी हो कल वो नीली कमीज़ नहीं पहनेगा....

निखिल आनंद गिरि
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गुरुवार, 22 मार्च 2012

विवेक मिश्र की कहानियां चुराना मना है...

विवेक मिश्र को मैं पिछले कुछ महीनों से जानता हूं। उनकी कई कविताएं पढ़ी हैं। कुछ कहानियां भी पढ़ी हैं। एकाध साहित्यिक कार्यक्रमों में मंच पर भी साथ रहे हैं। शिल्पायन से छपा उनका कहानी-संग्रह ''हनियां तथा अन्य कहानियां'' लगभग पूरा पढ़ चुका हूं। विवेक मिश्र ने खुद ही ये किताब मुझे पढ़ने के लिए दी थी। उनसे जब भी मुलाकात हुई, 'हनियां' का ज़िक्र उनकी ज़ुबान पर ज़रूर आया। उन्हें उम्मीद भी रही होगी कि मैं 'हनियां' कहानी पढ़ते ही उन्हें फोन करूंगा और अपनी प्रतिक्रिया दूंगा। मगर, मैंने जब उन्हें फोन किया और उनके कहानी संग्रह पर बात की तो हनियां का ज़िक्र बहुत बाद में आया। पहला और सबसे ज़्यादा ज़िक्र 'तितली' का आया था। एक पाठक के लिहाज से यही कहूंगा कि हनियां एक सफल (चर्चित) और लंबी कहानी भले रही हो, मगर छोटी कहानी 'तितली' में विवेक मिश्र ज़्यादा ओरिजिनल लगते हैं।

पिता की मौत के बाद दिल्ली में घर में तीन अकेली लड़कियों की कहानी है' तितली'। 14 साल की बड़ी बेटी अंशु, छोटी बेटी बिन्नी और इन दोनों की विधवा मां। अंशु की उम्र उसे 'दिल्ली की हवा' में तितली की तरह उड़ने को बेकरार करती है, मगर एक अनजान-सा डर और मां-बिन्नी की चिंता उसे हर बार रोक लेती है। मगर, जब एक दिन दिल्ली की हवा अंशु को उड़ाकर ले जाती है तब उसे अहसास होता है कि अपनी भरपूर उड़ान के भरम में अपने पंख ही गंवा बैठी है। आखिर तक आते-आते कहानी बिन्नी के जवान होते हाथों में उस तितली को महफूज़ कर देती है। दिल्ली नाम के अंधे कुंए में अपनी मर्ज़ी से डूबने का एक चक्र जारी रहता है।

अचानक इस कहानी का ज़िक्र इसलिए क्योंकि फेसबुक पर हिंदी कहानी के जानकारों की वॉल के ज़रिए हाल ही में पढ़ने में आया कि जयश्री रॉय नाम की लेखिका पर उनकी कहानी ''बारिश, समंदर और एक रात..'' के लिए 'तितली' के कुछ हिस्से हूबहू 'चुराने' के आरोप थे। कथादेश में उनकी इस कहानी को पढकर ही पता चला कि वो गोवा में रहती हैं और बिहार से उनका ताल्लुक है। चर्चित कवियत्री और कहानीकार भी हैं। मेरा दुर्भाग्य कि मैं जयश्री जी को नहीं जानता। मैंने उनकी कहानी कई बार पढ़ी और सचमुच 'तितली' और 'बारिश, समंदर और एक रात...' लगभग एक जैसी कहानियां हैं। 'समंदर,बारिश और एक रात' जय श्री राय की कथादेश के मार्च-2012 में प्रकाशित कहानी है। यह कहानी भी एक युवा अवस्था में कदम रखती युवती की कहानी है जो अपनी ग्रेनी के साथ गोआ में रहती है। उसके पिता घर छोड़कर विदेश चले गए हैं। वह भी एक रात बाहर निकल कर एक आकर्षक युवक के संपर्क में आती है। उसके साथ जाकर दुनिया देखना चाहती है,जीना चाहती है। एक बहुत हसीन रात में लड़की का बॉयफ्रेन्ड लड़की को घर से बाहर पार्टी में चल कर एन्जाय करने को कहता है। वह मान जाती है दोनो नाचते-गाते हैं। करीब आते हैं, भरपूर प्यार करते हैं। उन्हें प्यार करते हुए लड़के के साथी देख लेते हैं। वह उसे एक खाली गोदाम में ले जाते हैं और नशे की हालत में उसके साथ बलात्कार करते हैं। लड़की को जब होश आता है। तब वह समंदर किनारे बैठी रह जाती है।

लोगों के नाम और जगह बदल दिए जाएं तो दोनों कहानियों में घटनाएं एक ही सिलसिले में होती नज़र आती हैं। कई जगह शब्द या पूरे-पूरे वाक्य भी मिलते नज़र आते हैं। मुमकिन है कि जयश्री ने 'तितली' पढ़ी हो और उस कहानी से प्रेरित होकर अपनी कहानी गढ़ी है, जो मुझे ग़लत नहीं दिखता। दुख इस बात का है कि फेसबुक पर दोनों 'पक्षों' (खेमों) की ओर से तमाम तरह के उल्टे-सीधे तीर चलते रहे और आखिर में जयश्री रॉय ने विवेक मिश्र से माफी मांग ली। हिंदी के लगभग तमाम लेखकों को तो वैसे भी अपनी जेब से पैसा खर्च कर लिखना-छपना पड़ता है और उस पर भी अगर रही-सही पूंजी यानी कहानी में ही सेंध पड़ने लगे तो बेचारा लेखक क्या करेगा। कई बार मैं भी अपने ब्लॉग का सामान किसी और ब्लॉग पर उस ब्लॉगर के नाम से छपा देख चुका हूं। मगर, मुझे इस मामले को 'कानूनन' आगे बढ़ाने के कोई नियम ही नहीं पता। अगर आप मदद कर सकें, तो मेहरबानी होगी।

हैरत की बात ये है कि विवेक मिश्र के साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। उनकी 'हनियां' कहानी किसी टीवी सीरियल ने हूबहू उड़ा ली तो मामला कोर्ट तक चला गया। एक और कहानी 'बदबू' के बारे में तो कुछ पाठकों ने ये तक कह दिया कि गुलज़ार की कहानी 'हिलसा' में इसकी नकल दिखती है। हर बार विवेक मिश्र के साथ ही ऐसा क्यों होता है। फिल्मी दुनिया में इस तरह के आरोपों के पीछे पब्लिसिटी बटोरने के मकसद भी होते हैं, मगर हिंदी साहित्य की फटेहाल दुनिया में शायद ही विवेक मिश्र या जयश्री रॉय को इसका कोई फायदा होने वाला है। यहां मामला करोड़ों का नहीं कौड़ी भर का है।


निखिल आनंद गिरि
(इस विवाद में इतनी देर से टांग अड़ाने की वजह ये है कि मैं इन दिनों फेसबुक या बाहरी दुनिया से कटा हुआ था। जब जागा, तभी सवेरा...)


ये पोस्ट कुछ ख़ास है

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