निखिल आनंद गिरि
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शनिवार, 9 अगस्त 2014
बर्थडे डायरी..
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ये पोस्ट कुछ ख़ास है
मैं बुरा था जब तलक ज़िंदा रहा
आईने ने जब से ठुकराया मुझे हर कोई पुतला नज़र आया मुझे। रौशनी ने कर दिया था बदगुमा, शाम तक सूरज ने भरमाया मुझे। ऊबती सुबहों के सच मालूम था, र...
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कौ न कहता है कि बालेश्वर यादव गुज़र गए....बलेसर अब जाके ज़िंदा हुए हैं....इतना ज़िंदा कभी नहीं थे मन में जितना अब हैं....मन करता है रोज़ ...
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छ ठ के मौके पर बिहार के समस्तीपुर से दिल्ली लौटते वक्त इस बार जयपुर वाली ट्रेन में रिज़र्वेशन मिली जो दिल्ली होकर गुज़रती है। मालूम पड़...
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कवि मित्र अंचित ने जर्नल इंद्रधनुष पर कुछ दिन पहले मेरी कुछ कविताएं पोस्ट की थीं जिस पर एक सुधी पाठिका की विस्तृत टिप्पणी आई है। कीमोथेरेपी...