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शनिवार, 9 अगस्त 2014

बर्थडे डायरी..

 पापा फेसबुक नहीं करते। इसीलिए उनके दिमाग से बर्थडे रखना निकल गया। मुझे ख़ुद ही फोन करना पड़ा। मां की नींद रात ढाई बजे खुली तो फोन किया। मां फोन करना भी मुश्किल से सीख पाई है। अखबार-किताब-फोन-फेसबुक-नोटबुक जैसे झमेले उसकी ज़िंदगी में नहीं हैं तो सब कुछ याद रख लेती है। सबके जन्मदिन। बस मां को अपना ही जन्मदिन नहीं पता है। किसी को नहीं पता घर में। कई बार पूछा मगर कुछ और बोल कर टाल गई। जब वो सब को फोन कर के विश करती है तो मन तो उसका भी करता होगा कि कोई उसे विश करे।


फर्स्ट फ्लोर के ऊपर तीन लोग रहते हैं। सुबह उठते ही फेसबुक का नोटिस दिखा होगा तो बर्थडे विश करने के लिए फोन किया। नीचे उतर कर आ नहीं सके। अगल-बगल तीन पड़ोसी रहते हैं। तीनों ने एसएमएस किया। फोन नहीं कर पाए। पड़ोस के घर तक चलकर आने में तो सचमुच बहुत वक्त लग जाता होगा। हर बीस मिनट के अंतराल पर एक कॉल या एसएमएस आता रहा। पूरा दिन मोबाइल फोन के आसपास बीता। अमेरिका, कनाडा, रांची, जमशेदपुर, बिहार उत्तरप्रदेश, भोपाल, नेपाल और पता नहीं कहां-कहां से। दिल्ली में तो रह ही रहा हूं। जिसे भी जैसे ही फेसबुक पर दिखा, फट से फोन किया। कुछ लोगों को घर आने के लिए कहा भी, मगर उन्होंने इतने ज़रूरी बहाने बताए कि कोई नहीं आया।

शुक्रिया फेसबुक। कई जाने-अनजाने लोगों को मेरा बर्थडे याद दिलाने के लिए। कई बड़े लोग (किसी एक का नाम लिया तो बाक़ी लोग छोटा महसूस करने लगेंगे) जो फ्रेंड लिस्ट में हैं, उन्होंने भी टाइमलाइन पर विश किया तो मन हरा हो गया। कई महिला मित्रों के भी फोन आते रहे। कई-कई साल पुरानी दोस्त। कुछ ने प्यार किया। कुछ से प्यार रहा। सबसे नई प्रेमिका ने सबसे पहले फोन किया। सबसे पुरानी प्रेमिका का अब तक फोन नहीं आया। आने की उम्मीद भी नहीं है। पहले अफसोस करूं या खुश हो लूं, पता नहीं। ये सब आपकी ज़िंदगी में भी होता होगा। 
शादी के बाद का ये जन्मदिन एकदम अकेले गुज़रा। दो अकेले लोगों ने एक साथ गुब्बारे लगाए, केक काटा, फोटो भी खींची। महसूस भी किया कि बड़े होने का मतलब और अकेला होते जाना होता है। मेरी पत्नी कभी-कभी प्रेमिका की तरह पेश आने लगी हैं। फिलहाल आप सबके लिए दो-चार तस्वीरें शेयर कर रहा हूं। अपना ब्लॉग है तो कभी-कभी कविता-कहानी से हटकर भी कुछ बांटा जा सकता है। बचपना ही सही। है ना?


निखिल आनंद गिरि  

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