सोमवार, 30 अक्टूबर 2023

मैं अब खाता भी हूं आधा निवाला छोड़कर

वो थोड़ी देर को निकली थी कमरा छोड़कर
कहां मालूम था, चल देगी दुनिया छोड़कर

मैं सहरा हूं, मुकद्दर में लिखा है प्यासा रहना
नदी बहती रही बस एक सहरा छोड़कर

किताबे ज़िंदगी को यूं अधूरा छोड़कर
मेरे कंधे पे यूं आगे का ज़िम्मा छोड़कर

गई वो बेटी को किसके भरोसे छोड़कर
अपने दुधमुंहे बच्चे को रोता छोड़कर

मेरा हंसना भी, रोना है तुम्हारी याद में अब
मैं खाता भी हूं अब आधा निवाला छोड़कर

अधूरी रह गईं कितनी लड़ाई बीच में
तुम्हें जाना नहीं था, मुझको तन्हा छोड़कर

निखिल आनंद गिरि

5 टिप्‍पणियां:

इस पोस्ट पर कुछ कहिए प्लीज़

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

एक पीठासीन अधिकारी की डायरी

" इस मुल्क ने जिस शख्स को जो काम था सौंपा उस शख्स ने उस काम की मां..च इस जला कर छोड़ दी " अख़बार में बिहार में बंपर वोटिंग की ख़बर...