छठ के मौके पर
बिहार के समस्तीपुर से दिल्ली लौटते वक्त इस बार जयपुर वाली ट्रेन में रिज़र्वेशन
मिली जो
दिल्ली होकर गुज़रती है। मालूम पड़ा कि दिल्ली से कहीं ज़्यादा बिहार का ठेकुआ
जयपुर को जाता है। उससे भी आगे। राजस्थान के टोंक ज़िले की बनस्थली विद्यापीठ
(यूनिवर्सिटी) में कम से कम हज़ारों बिहार की लड़कियां हैं जो छठ में किसी तरह घर
को आती हैं और फिर वापस फटाफट भागती हैं। वो दिल्ली के लड़कों की तरह छठ के बाद जैसे-तैसे
वापस नहीं भाग सकतीं। उन्हें अपने पिताओं के साथ जयपुर आना पड़ता है। वेटिंग की टिकट के सहारे। टीटी के साथ पिता सीट की सेटिंग करते हैं और टीटी के चेहरे में बेटियों को वनस्थली की वॉर्डन मैम का भावशून्य चेहरा दिखने लगता है। इस छठ के बाद उन्हें घर (बिहार) लौटने का अगला मौका अप्रैल-मई में मिलेगा।
रास्ते भर उनसे हुई बातचीत में जितना बनस्थली विद्यापीठ को जान पाया, उससे ज़्यादा पहले से इतना ही जानता हूं कि मेरी एक-दो अच्छी दोस्त वहीं से पढ़ी हैं। इस लेख को लिखने के लिए बनस्थली की वेबसाइट को गूगल किया तो वहां पंडित नेहरू के ‘मन की बात’ लिखी मिली कि ‘अगर मैं लड़की होता, तो अपनी पढ़ाई के लिए बनस्थली को ही चुनता’। काश! पंडित नेहरू मेरे साथ जलपाईगुड़ी-उदयपुर एक्सप्रेस की स्लीपर बोगी में होते जहां लड़कियां अपनी बातों में यही दुख जताती रहीं कि वो लड़कियां हैं और वो भी बिहार की। वो बिहार जहां कॉलेज की पढ़ाई के सबसे बुरे विकल्प मौजूद हैं। जहां लड़कियों की पढ़ाई से ज़्यादा उनके पिता इस बात के लिए ज़्यादा चिंतित रहते हैं कि शादी की उम्र तक ‘किसी तरह’ लड़की ‘बिगड़ने’ से बच जाए। और ऐसे में सिर्फ लड़कियों के लिए बनी बनस्थली यूनिवर्सिटी उन्हें कमाल की जगह लगती है। जहां उनकी सुरक्षा में 850 एकड़ दूर तक का वीरान कैंपस है और हर फ्लोर पर एक वॉर्डन जो उन्हें आठ बजे के बाथ बिना परमिशन के बाथरूम तक नहीं जाने देतीं। जहां लड़के दूर-दूर तक ‘पर’ नहीं मार सकते।
ट्रेन में सवार लड़कियां बनस्थली से बीटेक और बीबीए जैसे बड़े ‘कोर्स’ कर रही थीं। पता चला कि आईटी (इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी) जैसे कोर्स के लिए भी उन्हें लैपटॉप या मोबाइल या इंटरनेट चलाने की आज़ादी नहीं है। टीचर (जिन्हें वहां शायद ‘जीजी’ बुलाते हैं) उन्हें रोज़ पीपीटी बनाने को कहती हैं मगर कैंपस में हज़ार लड़की पर एक कंप्यूटर है! इंटरनेट के बिना उनकी ज़िंदगी ऐसी है कि अगर घर से कोई चिट्ठी आती है तो पहले वॉर्डन मैडम उसे खोलकर पूरा पढ़ती है और फिर लड़की को देती हैं। कैंपस सिर्फ लड़कियों का है मगर उन्हें सिर्फ खादी के कपड़े पहनने की ही इजाज़त है। कमरे में आयरन तक नहीं रख सकते। हॉस्टल से क्लासरूम की दूरी कम से कम पैदल बीस मिनट की है जिसके लिए सिर्फ एक बस चलती है। अगर बस समय से नहीं पकड़ पाए तो पैदल जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं। अगर तबीयत बिगड़ी तो चालीस रुपये देकर एंबुलेंस सेवा ली जा सकती है। ऐसे में सहेली का साथ होना ज़रूरी है।
मगर बनस्थली की उन लड़कियों ने न तो अपनी सीनियर्स का मुंह देखा है और न ही उन्हें दूसरे डिपार्टमेंट की टीचर्स से मिलने या बात करने की इजाज़त है। पिता के अलावा कोई भी मिलने नहीं आ सकता। अगर पिता भी छुट्टी में बेटी को घर ले जाना चाहते हैं तो ये ससुराल से बिटिया को मायके लायने से ज़्यादा मुश्किल है। बिहार के गांव से आपको एक चिट्ठी बनस्थली डाक से या फैक्स से भेजनी पड़ेगी। उस चिट्ठी में आने-जाने की तारीख और पिता के सिग्नेचर ज़रूर होने चाहिए। फिर पिता लेने आएंगे। सिग्नेचर मिलाए जाएंगे। मिले तो ठीक वरना बड़ी मुश्किल। आने-जाने की तारीख से लौटे तो ठीक वरना बड़ी मुश्किल। हर ‘अपराध’ के लिए बहुत जुर्माना है। पिता खुश होते हैं कि लड़कियां इतने अनुशासन में हैं मगर लड़कियां ऐसे में क्या सोचती हैं, कोई नहीं पूछता।
मेरे पास इसका कोई आंकड़ा नहीं कि बनस्थली में अब तक कितनी लड़कियां सुसाइड कर चुकी हैं। यूनिवर्सिटी से ऐसे आंकड़े जल्दी बाहर भी नहीं आते। मगर जिन पिताओं या रिश्तेदारों को ये लेख पढ़कर बनस्थली की अपनी बेटियों की चिंता हो रही हो, उन्हें राहत की एक बात बता दूं। यूनिवर्सिटी की तरफ से सुसाइड रोकने के लिए हॉस्टल के कमरों में छोटे वाले टेबल फैन लग गए हैं। तीन लड़कियों के कमरों में अगर इससे गर्मी बढ़ती है तो बिहार से पापा हज़ार रुपये की टिकट लेकर बनस्थली आ सकते हैं और पांच सौ का अलग टेबल फैन खरीदकर अपनी बिटिया को दे सकते हैं।
मैं ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के इस शानदार नमूने विश्वविद्यालय के लिए फिलहाल आलोक धन्वा की कुछ पंक्तियां पढ़ना चाहता हूं और चाहता हूं कि ये चिट्ठी भी वहां की वार्डन मैम पहले पढ़ें –
‘’ तुम्हारे उस
टैंक जैसे बंद और मजबूत
घर से बाहर
लड़कियां काफी बदल चुकी हैं
मैं तुम्हें यह इजाजत नहीं दूंगा
कि तुम उसकी सम्भावना की भी तस्करी करो
वह कहीं भी हो सकती है
गिर सकती है
बिखर सकती है
लेकिन वह खुद शामिल होगी सब में
गलतियां भी खुद ही करेगी
सब कुछ देखेगी शुरू से अंत तक
अपना अंत भी देखती हुई जाएगी
किसी दूसरे की मृत्यु नहीं मरेगी
कितनी-कितनी लड़कियां
भागती हैं मन ही मन
अपने रतजगे अपनी डायरी में
सचमुच की भागी लड़कियों से
उनकी आबादी बहुत बड़ी है’’
(ये लेख कुछ
बनस्थली में पढ़ने वाली कुछ लड़कियों से बातचीत पर आधारित है जिनकी आंखों में
सच्चाई दिखती है)
डिस्कलेमर : 'YOUTH KI AAWAZ' वेब पोर्टल के लिए लिखी इस पोस्ट पर इतनी गालियां पड़ी हैं कि समझ नहीं आया कि अपने ब्लॉग पर पब्लिश करूं या रहने दूं। फिर सोचा पब्लिश ही करता हूं। दरअसल जो गालियां दे रही हैं वो वनस्थली विद्यापीठ की पुरानी छात्राएं रह चुकी हैं। कुछ नई-कुछ बहुत पुरानी। उन्हें शायद अपनी 'प्यारी' यूनिवर्सिटी के बारे में कुछ भी बुरा सुनना अच्छा नहीं लग रहा। कुछ इनबॉक्स में धमकियां दे रही हैं, कुछ फेसबुक पर गालियां बक रही हैं वगैरह वगैरह। मेरा बस इतना कहना है कि ट्रेन में कुछ लड़कियों से हुई बातचीत को जब मैंने लेख का शक्ल देना चाहा तो ऐसा बन पड़ा कि कुछ लोग बुरा मान गए। ये न तो किसी अखबार के लिए की गई रिपोर्ट है, न नाम 'कमाने' का स्टंट। मेरा ब्लॉग है और मेरी आपबीती। किसी का दिल दुखता है तो मेरी पूरी सहानुभूति है।
दोस्त निखिल बहुत दिन हुए तुमसे मुलाक़ात तो दूर बात भी नहीं हुई, संभावनाएं ये भी हो सकती हैं की तुम मुझे यानी अकबर आज़म को भूल सकते हो | खैर ...तुमने जो लेख लिखा है वो बहुत ही उम्दा है, और इस समय में जो फ़ालतू की जकड़न समाज में बसी हुई है उसे बखूबी उजागर करता है | चाहूँगा इस पर और विस्तार से लिखो | जिस तरह से मुस्लिम समाज के ध्येता अपने घरों की इस जकड़न पर विरोध और फतवे जारी करते हैं वैसे ही दुसरे समाज वाले भी करेंगे लेकिन तुम्हारा लिखना उनसे कहीं ज्यादा ज़रूरी है | लिखो बहुत लिखो ! मशाल तुम्हारे हाँथ में है, रौशनी यहीं से होगी |
जवाब देंहटाएंदोस्त
आज़म
ख़ूब याद है भाई..वही डबल रोल..
जवाब देंहटाएंकहां हो, कैसे हो। मिलो कभी
Mr Nikhil,
जवाब देंहटाएंBefore writing something about a reputed University, you must complete your homework first. I am an ex-student of Banasthali University and I am very sad to see that you have posted incorrect information here.
Bansathali has very good IT setup. There are many labs equipped with sufficient amount of computers. Other than this IT/MBA students have one computer per room in the hostel. There is proper internet connection available with some time limits. Ofcourse, Students don't have access to Facebook, yahoo messanger and other social media, but don't you think it is for their own good.
Talking to senior or any teacher is always allowed there. Wearing khadi is mandatory, because it is part of their values. Coming back to hostel before 8 O'clock is for their safety and you can see such rules at homes as well. SO DO YOU CALL HOME AS JAIL?
Written permission from parents is mandatory for any leave, but they don't ask parents to come in person. You can go and ask any parent that do they support this or not.
Apart from all these, each and everything is well known to everyone and if they don't agree to Banasthali's values, please don't fill the admission form.
मैंने वहां दो साल पढाई की है वो भी 15 साल पहले। आप हम जैसे लोगों से बात करें और अपने लेख में पूरे तथ्य डालें। यह लेख अत्यन्त ही बचकाना है।
जवाब देंहटाएंNikhil Annad giri
जवाब देंहटाएंI am very surprise and disappointed after reading your nonsense and cheap article as well as so called disclaimer. you are not the first one who internationally tried to spoil the image of banasthali as well as daughters' of banasthali. But for your kind information, you will always be on loosing side. I should only say if you will follow the ethics of true journalism then only you will get true success in life. Not by such cheap stunts.
आँखों की सच्चाइयां देखने वाले कई, अक्सर गलतीया कर देते हैं। आप जैसे लोगो की वजह से समाज में लड़कियों एवं महिलाओं पर लोग अंगुली उठाते हैं।
भगवान तुम्हे सदबुद्धि दे। सत्य और जूठ में अंतर सिखाये इसी आशा के साथ.... इति शुभम।
Jin wardens ki tum baat kar rahe ho 1 sach aur suno.ligament injury k dauran unhi wardens ko mene meri seva karte dekha h ..
जवाब देंहटाएंYe khne mei atishyokti nhi hogi I banasthali ki har chatra tumko gali hi degi
Writer ho good , but sajag , sabhya bno
Kisi I k bare me kehne ja rahe ho to facts dhoondho ... Warna bhavishya mei jute padne ki bhi gunjaish hai.
Ye ek well organized jgha hai ..N see u urself know that it's will be a good place for your publicity..
Will appreciate your choice..
Not all facts are correct but this university lays emphasis on things which adds very less value to the life eg: wearing khadi, restrictions of cell phone, too stringent policies to go home etc etc. All in all it should focus more on developing the students by providing opportunities. I was a student of this place and i made the biggest mistake to by opting to study here
जवाब देंहटाएंCant believe this nonsense...
जवाब देंहटाएंI am also a student of Banasthali and I passed out just 2 years back...
I dont agree to any of these stupid claims..
One should not make a notion by just listening to a dozen of girls....infact I must say frustrated and senseless girls....
Go out and ask other banasthalites WHAT IS BANASTHALI??
When thousands of girls will shout out praises then may be you realise what the reality is....
I hv been a banasthalite for 5 years or aapki janakari k liye wha seniors se milne pr koi rok tok ni h..... na hi internet pr koi rok h....kuchh b bkwas krne se pehle puri trh pta kr le.....
जवाब देंहटाएंMr Nikhil
जवाब देंहटाएंI am student of banasthali from last 5 years and would like to give you a suggestion that you should never write about things which you have never seen but just listened. And I also salute to those girls who spread rumors and it's for sure that these are only those girls who don't have an aim of life and just want to lavishly spend their life on their fathers cash. And it's also for sure that people like you who are just writing for publicity are having an idiotic mind with no power of thinking and matureness.
Haha. well written. Unfortunately safety and shadi k umra se pahle ladki barbad na ho is oxymoron for the university. Try to reach to student of Satybhama (chennai) Ek aur jail khana milega. Ajkal Birla Prodhuagic Sansthan mesra me bhi tanashahi badh gayi hai... kuch log hain jinko bura laga per wo wahi log hai jo us samay modi institute ke students ko dekh kar jala karti thi.. likhte raho
जवाब देंहटाएंHaha. well written. Unfortunately safety and shadi k umra se pahle ladki barbad na ho is oxymoron for the university. Try to reach to student of Satybhama (chennai) Ek aur jail khana milega. Ajkal Birla Prodhuagic Sansthan mesra me bhi tanashahi badh gayi hai... kuch log hain jinko bura laga per wo wahi log hai jo us samay modi institute ke students ko dekh kar jala karti thi.. likhte raho
जवाब देंहटाएंबनस्थली को पहचानने में आपने गलती कि है
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