CARTOON NETWORK लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
CARTOON NETWORK लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

डबिंग वाली हिंदी बोलते पोगो पीढ़ी के बच्चे..

लिपि और उसकी दुनिया
ढाई साल की लिपि फोन पर 'मछली जल की रानी है' सुनाती है तो फोन के दूसरी तरफ अपने नन्हे हाथों से परफॉर्म भी कर रही होती है। पिछली छुट्टियों में उसे इस कविता के साथ एक्टिंग करना सिखा आया था। मैं देख नहीं पाता, मगर आख़िरी लाइन 'बाहल निकालो मल जाएगी' में जब उसकी आवाज़ धीमी होती है तो मेरा मन ताली बजाने का होता है। वो तालियों की ज़बान नहीं समझती, मगर मैं फोन पर 'पुच्ची' देने को कहता हूं तो उधर से एक गीली-सी मीठी आवाज़ फोन पर आ जाती है।

मैं पिछले कई सालों से टेलीविज़न में नौकरी कर रहा हूं, मगर शर्तिया कह सकता हूं कि लिपि रोज़ाना मुझसे ज़्यादा टीवी देखती है। ज़्यादा ध्यान से देखती है। 'छोटा भीम' उसका फेवरेट सीरियल है। ये उसने कभी कहा नहीं है, मगर सारा घर जानता है। आज तक-फाज तक, सीएनएन-फीएनन, इल्मी-फिल्मी कोई भी चैनल चल रहा हो, लिपि अगर टीवी के आसपास है तो सबको 'छोटा भीम' देखना ही पड़ता है। हम उसकी तरह रो-रोकर अपने प्रोग्राम के लिए ज़िद नहीं कर सकते। वो कर सकती है। करती है। एक ऑडिएंस अवार्ड इन बच्चों के लिए भी होना चाहिए। छोटा भीम की तरह हवा में एक काल्पनिक लड्डू उछालकर वो अगल-बगल के लोगों पर मुक्का चलाती है। छोटा भीम, डोरोमन, ढोलकपुर उसकी दुनिया का हिस्सा हैं। इस दुनिया को हम किसी अजनबी की तरह निहारते हैं, वो बेरोकटोक घूमते हैं। केबल टीवी ने बच्चों को वक्त से पहले ही दुनिया दिखानी शुरू कर दी है।

दक्ष का रूटीन चार्ट
दक्ष छह साल का है। उसे 'छोटे बच्चे' बहुत पसंद हैं। कार्टून की दुनिया भी। वो भी इस दुनिया का हिस्सा है। लिपि से थोड़ा सीनियर। मगर सीनियर होने का कोई घमंड नहीं।  उसे इस दुनिया ने सोचने का नया तरीका सिखाया है।  वो जब पांच साल का था तो 'जी-वन' (रा-वन के शाहरुख) बना घूमता था। थक जाने पर बैट्री से रिचार्ज हो जाता था। सोते-सोते 'दुश्मन' की तलाश में उठ बैठता और सिग्नल मिलने की एक्टिंग करता। वो बड़ा होकर भी जी-वन ही बनेगा और दुश्मनों को ख़त्म कर देगा। उसे कोलावरी का पूरा डांस कंठस्थ याद है। वो हफ्ते में पांच दिन स्कूल जाता है। पांचों दिन की ड्रेस अलग-अलग है। आज उसे कुंगफू की ड्रेस पहनकर जाना है। वो बहुत खुश है, उतावला है। उसकी मम्मी ने उसकी ड्रेस के ऊपर स्वेटर पहना दिया है। इस वजह से उसकी कुंगफू की ड्रेस किसी को नज़र नहीं आएगी। इस बात से वो बहुत दुखी है। वो मुझे अपनी 'चित्रा मिस' की कहानियां सुनाता है। 'मिस' उसे होमवर्क ठीक से करने पर कैडबरी देती है। मुझसे कहता है, 'मामा, मंडे को ऑफिस मत जाओ, मैं अपनी मैम से कहके आपका एडमिशन यहीं स्कूल में करा दूंगा, फिर दोनों साथ ही काम पर जाएंगे स्कूल वैन में!' । दक्ष अपने दोस्तों के बारे में भी बताता है। मम्मी-पापा के बारे में बताता है, जिन्हें मैं पहले ही से जानता हूं। पापा जब डांटते हैं तो एक कागज़ पर लिख देता है, 'पापा गुस्सा करते हैं, अच्छे नहीं हैं।'। मैं प्यार कर लेता हूं तो लिखता है, 'मामा बहुत मज़ाकिया हैं।'
नानू के कंधे पर 'जी-वन' बनने की कोशिश

सबसे छोटे उस्ताद
मैं 2001 तक अपने घर में सबसे छोटा था। जब तक सेतु नहीं आया, मंगल पांडे (निकनेम) नहीं आया, दक्ष या लिपि नहीं आए। मुझे लंबे वक्त तक ये दुख था कि मुझे गांव या घर जाने पर सबके पांव छूने पड़ते थे। अब ये बच्चे मेरे पांव छूते हैं। उनके मम्मी-पापा ज़बरदस्ती ऐसा करने को कहते हैं। मैं बड़ा हो गया हूं। होना नहीं चाहता। उनकी बातें सुनना चाहता हूं, सीखना चाहता हूं। उनके जैसा रहना चाहता हूं। कोई दोबारा मुझे बचपन दे और चश्मा पहनकर पूछे, 'बड़े होकर क्या बनना चाहते हो'। तो मैं कहूंगा बच्चा बनना चाहता हूं। बड़ों की दुनिया में सीखने को कुछ नहीं है। क़िताबें पढ़-पढ़कर ज्ञान बढाया जा सकता है, रिसर्च की जा सकती है, बेदाग़ नहीं हुआ जा सकता। मैं दोबारा बेदाग़ होना चाहता हूं। नींद आए तो थपकी के साथ सोना चाहता हूं। हवा में झूठमूठ का लड्डू उछालकर ताक़तवर होना चाहता हूं। टीवी पर सिर्फ कार्टून देखने के लिए लड़ना चाहता हूं।

 हालांकि इस टीवी ने बच्चों की हिंदी का कूड़ा भी किया है। पोगो चैनल पर बच्चे फिर को 'फ़िर', फूल को 'फ़ूल', फेंकना को 'फ़ेकना' कहते हैं। ज़ाहिर है, पोगो चैनल के क्रियेटिव हेड कोई बच्चे नहीं हैं। उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी समझनी चाहिए। अगर हिंदी में ठीकठाक कहानियां  या बोलियां नहीं सिखा सकते तो सिर्फ अंग्रेज़ी में ही शो दिखाइए। डबिंग करने की ज़रूरत ही क्या है। हमारे बच्चे डबिंग वाली हिंदी सीखकर बड़े हो रहे हैं। क्या हम अपनी नई पीढ़ी को कार्टून बनाकर छोड़ेंगे? क्या ये हमारे लिए सोचने का सही वक्त नहीं है?

(राष्ट्रीय अख़बार जनसत्ता ने भी इस लेख को अपने संपादकीय पन्ने पर जगह दी है...)
निखिल  आनंद गिरि

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

नन्हें नानक के लिए डायरी

जो घर में सबसे छोटा होता है, असल में उसका क़द घर में सबसे बड़ा होता है। जैसे सबसे छोटा बच्चा पूरे घर की धुरी होता है। ये पोस्ट मेरे दो साल के...