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बुधवार, 28 सितंबर 2011

वो भी मुझको रोता है !

हम-तुम ऐसे रुठे हैं,
जैसे कि मां-बेटे हैं...

सब में तेरा हिस्सा है,
मेरे जितने हिस्से हैं...

मस्जिद भी, मैखाना भी,
तेरी दोनों आंखें हैं...

मंज़िल भी अब भरम लगे,
बरसों ऐसे भटके हैं...

अब जाकर तू आया है,
मुट्ठी भर ही सांसे हैं...

नींद से अक्सर उठ-उठ कर,
ख़्वाब का रस्ता तकते हैं...

वो भी मुझको रोता है !
सब कहने की बातें हैं..

हर शै में तू दिखता है,
तेरे कितने चेहरे हैं?

सागर कितना खारा है
अच्छा है हम प्यासे हैं...
निखिल आनंद गिरि

बुधवार, 21 सितंबर 2011

ऐसा भी क्या हुआ कि उसे इश्क हो गया...

खुशबू के नाम पर हुए सौदे बहार में
छुपना पड़ा गुलों को भी दामाने-ख़ार में

बरसों के बाद टूटा वो तारा फ़लक से रात,
फिर से हुआ सुकून बहुत, इंतज़ार में...

ऐसा भी क्या हुआ कि उसे इश्क हो गया
कुछ तो कमी ही थी मां के दुलार में...

एक रोज़ ख़ाक होंगे सभी जीत के सामान
रखा नहीं है कुछ भी यहां जीत-हार में...

वहशी हुए तो घर में ही करने लगे शिकार
जंगल से ही उसूल भी लेते उधार में..

सब रहनुमाओं ने किए अपने पते भी एक
मिलना हो आपको तो पहुंचिए तिहाड़ में...

जिस फूल की तलब में गुज़री तमाम उम्र
वो फूल ही आया मेरे हिस्से, मज़ार में...

निखिल आनंद गिरि

 

मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010

एक शायर मर गया है...

एक शायर मर गया है,
इस ठिठुरती रात में...
कल सुबह होगी उदास,
देखना तुम....

देखना तुम...
धुंध चारों ओर होगी,
इस जहां को देखने वाला,
सभी की...
बांझ नज़रें कर गया है....
एक शायर मर गया है....

मखमली यादों की गठरी
पास उसके...
और कुछ सपने पड़े हैं आंख मूंदे....
ज़िंदगी की रोशनाई खर्च करके,
बेसबब नज़्मों की तह में,
चंद मानी भर गया है.....
एक शायर मर गया है....

एक सूरज टूट कर बिखरा पड़ा है,
एक मौसम के लुटे हैं रंग सारे....
वक्त जिसको सुन रहा था...
गुम हुआ है...
लम्हा-लम्हा डर गया है....
एक शायर मर गया है...
इस ठिठुरती रात में....

निखिल आनंद गिरि
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