हिंदी सिनेमा में आखिरी बार आपने कटा हुआ सिर हाथ में लेकर डराने वाला विलेन कब देखा था। मेरा जवाब है "कभी नहीं"। ये 2024 है, जहां देश का प्रधानमंत्री इतना शक्तिशाली है कि चीन अमरीका सबके प्रधानमंत्री मिलते ही गले लग लेते हैं और आप मानकर चल रहे हैं कि इस फिल्म में आपको डरने जाना है, भले ही वो कुछ भी दिखाते रहें।
अगर आप ऊबकर अपना सर सिनेमा हॉल में दाएं बाएं घुमाएंगे तो देखेंगे कि हर तरफ कोई सरकटा सीट के किनारों में बैठा है और कोई न कोई स्त्री उसके "चंगुल" में बैठी हुई है। शायद खुशी खुशी। दुविधा ये है कि आप मल्टीप्लेक्स की गुफ़ा में ख़ुद शहर के रक्षक बनकर सभी स्त्रियों को देखेंगे या असली फिल्म में हॉरर के नाम पर जो कॉमेडी हो रही है, वह भी देखेंगे।
फिल्म वाला सरकटा थोड़ी देर और करता तो मेरे बगल वाली सीट पर बैठा पुरुष अपने साथ लाई स्त्री को तीसरी बार भी अपनी जांघ पर बिठा लेता। लेकिन मैं यू सब आपको क्यूं बता रहा हूं, मुझे तो फिल्म पर बात करनी थी। चलिए शुरू करते हैं -
यह फिल्म नहीं, आग उगलते लावा में अपने पैसे फेंक कर जला देने का आत्मघाती प्रयास है।
2024 में मेरी उम्र इतनी हो चुकी है कि अब हॉरर से डर नहीं लगता साहब, ख़राब कॉमेडी से लगता है। इस फिल्म में कॉमेडी ऐसी है जिससे नहीं, जिसपर हंसी आती है। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता याद होगी - "अगर आपके घर के एक कमरे में आग लगी हो, और दूसरे में आप चैन से सो रहे हों तो मुझे कुछ नहीं कहना"। यहां एक "राक्षस" औरतों को उठाकर ले जा रहा है और वहां उस लड़की का प्रेमी और उसके दोस्त कॉमेडी में व्यस्त है । वो दिल्ली से अपने दोस्त को खतरे के मुंह में झोंकने के लिए बुलाकर लाते हैं कि उसे अकेला छोड़ देंगे और भूत जब उसे मार डालेगा तो सबको मज़ा आएगा। ये हमारे समाज की कॉमेडी का स्तर है, तो फिर मुझे किसी से कुछ नहीं कहना।
कुछ दृश्य ज़रूर अच्छे हैं जैसे डर के मारे हाथी के पुतले में घुसकर उधर उधर रास्ता भटकते दोस्तों का परेशान होना।
और क्या कहा जाए। पंकज त्रिपाठी अभी भी कालीन भैया के टोन से बाहर नहीं आ सके हैं। लड़कियों को बचाने के लिए लड़कियों का क्या क्या नहीं बनवा दिया है फिल्म में। कॉमेडी और भूत(नी) के नाम पर कॉमेडी को याद करना हो तो "I M kalam" याद कीजिए, जब भाटी के यहां काम करने वाले लड़के छोटू को उसका बड़ा स्टाफ लपटन अपने कमरे में सोने नहीं देता और वो बाहर से डरावनी आवाज़ें निकालकर कैसे डराता है। डर वहां कॉमेडी की शक्ल में है और कितना सुंदर भी है।
स्त्री -2 में ऐसा कुछ भी नया नहीं, जिसे आपने पहले की भुतहा फिल्मों में न देखा हो। और तो और, जब भूत-भूतनियां आपको डरा नहीं पातीं तो निर्देशक इस बार आपको अक्षय कुमार से डराएगा कि बेटा जी डर जाओ वरना ये कहीं भी किसी भी फिल्म में कुछ भी बनकर आ सकता है। अगली बार तो मुख्य किरदार बनकर आने वाला है।
पूरे इंटरनेट पर किसीने तो ईमानदारीपूर्वक इस फिल्म की विवेचना की। समझ ही नहीं आया कि हॉरर थी या कॉमेडी क्योंकि न तो हंसी आई और न डर लगा। इस तरह की फिल्में फिल्म कम ओर मदारी का खेल ज़्यादा हैं जहां बस करतब करके हंसाने का प्रयास किया जाता है, और अगर आप अपने 8वें साल के बचपने में हैं तो आपको बहुत मज़ा आने वाला है।
जवाब देंहटाएंरागिब, मान्यवर
हटाएंचलिए अब जाकर सही पोस्टमार्टम हुआ है इस फ़िल्म का। कुछ भी बना दो लोग देख हीं लेंगे और आमदनी तो हो ही जाएगी।
जवाब देंहटाएं