देखो मां!
तुमसे मिलने कौन आया है
मुझे गिराओ किसी पत्ते की लंगड़ी से
मैं चूमूंगा मिट्टी
पत्ते फूल की तरह झड़ेंगे
मैं आंगन में अकेला टहलता हूं
एक बूढ़ी अलगनी है,
एक उदास कुआं है
मिट्टी के चूल्हे में सिर्फ धुआं है
इस वीराने में रोऊंगा नहीं
जानता हूं
तुम यही छिपी हो कहीं
देखो ये किसके नन्हें पांव है
जो अपने पुरखों को गुदगुदी करते हैं
आओ खेलें लुकाछिपी
एक दो तीन चार
...
धप्पा करो एक बार
सुनो मेरी पुकार
ढूंढ रहा हूं अनंत तक तुम्हें।
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