लड़के का सपना था कि कभी कार चलाना सीख सके। लड़का साइकिल चलाना भी ठीक से सीख नहीं पाया। लड़के ने एक दिन सपना देखा कि यूं ही बेसबब अपनी कार लेकर सड़क के किनारे कहीं खड़ा है। अचानक दोस्त जैसा कोई चेहरा लिए वही लड़की बाएं दरवाज़े पर आकर दस्तक देती है। वो दरवाज़ा खोलता है। वो बैठ जाती है। उसे शायद सीट बेल्ट नहीं मिल रही। लड़का उसकी छुअन बचाते हुए सीटबेल्ट ढूंढता है, पूरी शराफत से लगाता है। फिर अपनी सीटबेल्ट दुरुस्त करता है और धीमे से गाड़ी बढ़ जाती है।
लड़की रास्ते भर खुश है। लड़का जैसे-तैसे स्टीयरिंग संभाले हुआ है। लड़की ने हौले से अपनी हथेली पर दो छोटी टॉफियां रखी हैं। एक लड़के को दिया है। शायद लड़की बताना नहीं चाहती कि लड़के के मुंह से बू आ रही है। लड़की जैसे सपने के भीतर कोई सपना पूरा कर रही है। न कोई बस है, न मेट्रो। सिर्फ दो जोड़ी आंखे हैं पूरी कार में। लड़का रफ्तार में है। लड़की शायद प्यार में है। वो कहती है कि गाड़ी धीमी चलाए। वो कहती है कि गाड़ी बाएं रखे, दाएं रखे। लड़का बस मुस्कुरा देता है। ये उसके सपने में पहली बार हुआ है कि मुस्कुराहट इतनी आसानी से आई है। दिल्ली शहर सपने में इतना बुरा भी नहीं है।
लड़की ने ऊंघने की शक्ल में अपनी आंखें बंद कर ली हैं। उसके कंधे लड़के की तरफ झुकने लगे हैं। उसके बाल थोड़ा-थोड़ा लड़के की कमीज़ छू रहे हैं। लड़का रेड लाइट पर लड़की को भरपूर देखता है। उसका मन करता है कि थोड़ा और क़रीब जाए। मगर उसका ध्यान स्टीयरिंग पर है। उसे ड्राइविंग का एक उसूल अच्छे से पता है। ड्राइवर के साथ वाली सीट पर जो बैठा है, उसे नींद आने लगे तो जगाकर रखा जाए।
लड़का बात करने की कोशिश करता है। घर, पढ़ाई, शौक के बारे में पूछता है। फिर लड़की भी लड़के से पूछती है। शौक, रंग, शहर आदि। लड़के को फिरोज़ी रंग पसंद है। दोनों के जीवन में दुख से तार जुड़ते दिखते हैं। दोनों अपना दुख बांटते हुए मुस्कुराते हैं। लड़की अब उतरने को होती है। वो खुश है। उसकी आंखों में शुक्रिया है लड़के के लिए। लड़का उदास है। लेकिन मुस्कुरा रहा है।
अब वो रोज़ अपनी कार लेकर सड़क पर इंतज़ार करता है। अपना मुंह चेक करता है कि बू तो नहीं आ रही। दो टॉफियां ख़रीदकर खा भी लेता है। कहीं कोई उसके दरवाज़े तक आता नहीं दिखता। सपने रोज़ ख़ुद को नहीं दुहराते। फिरोज़ी रंग के सपने तो कभी भी नहीं।
निखिल आनंद गिरि