मैं जिस समय में शादी के
लायक हुआ, वो हनीमून के बाद किसी समंदर या पहाड़ी के फ्रेम में एक-दूसरे के कंधे
पर चढ़कर फोटो शेयर करने का समय है। मगर मैंने अपनी शादी का अगला दिन ऐसी किसी भोली
बेवकूफी के बजाय बोधगया में बिताया था। बुद्ध के बारे में थोड़ा-बहुत जानने की
कोशिश करते, बोधि वृक्ष से टूटकर गिरता पत्ता लपकते। इस बात के लिए अपनी पत्नी का
भी शुक्रगुज़ार हूं।
ख़ैर, गया का ज़िक्र इसीलिए
क्योंकि वहां ज़्यादा बार गया नहीं हूं। नोएडा में जब अपनी जापानी दोस्त यूको से
उनके घर पर मिला तो बस इतना जानता था कि वो पिछले कुछ साल से हिंदुस्तान में शादी
कर के रह रही हैं। जानने की इच्छा हुई कि हिंदुस्तानी समाज में उनके अनुभव कैसे
रहे हैं। जिनके ज़रिए यूको से मिला, उन्होंने साफ कहा था कि यूको ‘पराये’ लोगों से बहुत कम खुलती
हैं। मगर यूको ने तो सीधा बिहार का ही रिश्ता निकाल दिया और हमने दो घंटे बातचीत
की। उनकी शादी गया के ही सूर्यकांत जी से हुई है जो अब जापानी भाषा के ट्रेनर हैं।
कमाल की कहानी लगी यूको की।
जापान से 28 साल की उम्र में अकेली बोधगया घूमने आईं तो पहली बार सूर्यकांत जी
मिले। वो पटना में टूरिस्ट होटल चलाते थे। फिर सूर्यकांत जापान के क्योटो में
जापानी भाषा सीखने गए। वहां से दो घंटे की ‘बुलेट ट्रेन’ दूरी पर है ओकायामा शहर जहां की यूको हैं। लगभग एक
साल सूर्यकांत जापान में रहे और यूको से ‘बुलेट ट्रेन’ पकड़ कर मिलने आते रहे। जब लौट कर बिहार आए तो
स्काइपी के ज़रिए यूको से बातचीत होती रही। भाषा और सरहद की लंबी दीवार लांघने में
पांच साल लग गए। मैं सोचता हूं कि आजकल जब नज़दीक रहकर भी हर साल या महीने में ही प्यार
की कहानियां बुझ जाती हैं, वो क्या बिहारीपना रहा होगा कि पांच साल सिर्फ ई-चैटिंग
से ही प्यार सुलगता रहा। अगर इंटरनेट की प्रेमकथाओं का कोई इतिहास लिखा जाएगा तो
इस कहानी को मेरी तरफ से ज़रूर शामिल किया जाना चाहिए।
यहां मोहल्ले की लड़की से
प्यार हो जाए तो मां-बाप को बताने में जान अटकती है। उधर मामला भारत के लड़के और
जापान की लड़की का था। भारत के उस हिस्से का लड़का जहां लड़की हंस भी दे तो प्यार
होने का भ्रम हो जाता है। यूको ने बताया कि जापान में भी परिवार बहुत मज़बूत
संस्था है। शादी के लिए अपनी पसंद का लड़का चुनने की आज़ादी तो है मगर इंडिया का
लड़का! यूको ने घर में कुछ नहीं बताया।
मुझे तो सभी बहुएं बिहारी ही लग रही हैं.. |
बिहार यूको को बहुत अच्छा
लगता है। शुरू-शुरू में दिक्कतें होती थीं। उन्हें अपने बर्तन और चम्मच भी ख़ुद
लेकर आना पड़ा था क्योंकि यहां ‘चमचे’ खाने के अलावा हर काम में इस्तेमाल होते हैं। यूको प्यार
से मुस्कुराकर बताती हैं कि बिहार उन्हें बहुत अच्छा लगता है। वहां लोग दूसरों का
सम्मान करते हैं। उनके पति शाकाहारी हैं मगर उनके खाने-पीने पर कोई रोक नहीं है।
साल में एक-दो बार वो जापान भी जाते हैं। यूको ने अपने सास-ससुर की बहुत तारीफ की।
उन्होंने कहा कि उनकी सास से किसी तरह की लड़ाई नहीं होती क्योंकि दोनों एक-दूसरे
का मुंह देखकर रह जाते हैं।
ये कहानी आपको इसीलिए सुना
रहा हूं कि हम दुनिया को इन्हीं कहानियों के ज़रिए बेहतर समझ पाएंगे। और बेहतर बना
पाएंगे। यूको के गले में न मंगलसूत्र था, न मांग में सिंदूर। उन्हें बिहार ने ऐसे
ही स्वीकार किया। उन्होंने भी भारत को। क्या इस तरह की कहानियों को हमारे यहां
लोककथाओं में नहीं सुनाया जाना चाहिए जहां सात समंदर पार से एक परी आती है और
हमेशा के लिए होकर रह जाती है।
मैंने उन परियों की
कहानियां सुनी थीं और अब देखी भी है। वो परी अब मेरी दोस्त है।निखिल आनंद गिरि