मंगलवार, 22 अगस्त 2023

तुम तक जाने का कोई गूगल मैप नहीं

कभी कभी दिन बहुत तेज़ भागते हैं। गर्म उमस भरे दिन। कुछ याद करने का मन नहीं करता। एक निश्चित दूरी पर लगता है सब वैसा ही होगा। अचानक इतवार आएगा और एक फोन पर तुम्हारा दुख चीख-चीख कर मुझे छील देना चाहेगा। जबकि मैं पहले ही इतना भीतर तक चोटिल हूं कि अब सिर्फ तुम्हें सुनता हूं, महसूस करने की ताक़त छिन गई है। सब लूप में चलता दिखता है। वही उमस, वही गर्मी, वही संडे और वही तुम्हारा एकतरफा फोन कॉल। 

एक गर्मी में तुम्हारी बीमारी असहनीय हो गई थी। मैं दौड़ते भागते एक एसी लेकर आया था। तुम्हारे प्राण उसके रिमोट में बंद थे। अब एसी जस का तस है। डिब्बे में बंद। चूहे उसके भीतर अंताक्षरी खेलते हैं। मैं गर्मियों को महसूस करता हूं। पसीने से लथपथ शरीर को आंसुओं की कतार छू रही है। तुम्हें महसूस करने की आदत छूटनी नहीं चाहिए। 

अब सब बंद है। इतवार इतवार की तरह नहीं आता। मैं दुखी होने के वक्त घड़ी की तरफ तड़प कर देखता हूं। कोई कॉल नहीं, कोई चीख नहीं। मेरी ईगो से इतना खेलना ठीक नहीं। तुम्हें फोन करना चाहिए। एक खुशफहमी बनी रहती तो अच्छा होता।

जब कभी बारिश होती है, बिजली कौंधती है, तूफान आता है, मुझे तुम्हारी फिक्र होती है। नदी किनारे पतली लाल साड़ी में लिपटी अकेली उदास दर्द में सोई तुम। गंगा के किनारे कौन खयाल रखता होगा तुम्हारा। कोई गूगल मैप उस रास्ते तक नहीं ले जाता मुझे। कोई गाड़ी भी उधर की नहीं दिखती। मैं क्या करूं कि यकीं आए कि ठीक हो तुम। अब कौन सी हवा जासूस बनकर मेरी खबर पहुंचाती होगी तुम्हें। 

अभी तीन महीने भी नहीं बीते। कोई एक दिन, एक लम्हा नहीं जब तुम्हारा चेहरा न उभरा हो। एकदम शांत, बर्फ के ढेर पर लेटी हुई। मैं देखता हूं सजल आंखों से तुम्हें। तुम्हें मेरा रोना पसंद नहीं, इसीलिए बंद कर ली आंखें तुमने। मैं तुम्हारे बाल सहलाता हूं, तुम्हारी नींद और गहरी हो गई है। कई रतजगे बंद हैं इन आंखों में। मैं कितने रतजगों में भूल पाऊंगा पता नहीं। शायद कभी नहीं। जितना दिन बीतेंगे, उतना टीस और गहरी होगी। ये कैसा बदला है?

आज नानक को टीके लगाने को गया। जन्मदिन था कल। उसने पहला शब्द "मां" सीखा है। गाय देखकर मां कहता है। दाएं बाएं सब देखकर मां कहता है। मुझे देखकर भी। अगर तुम उसके आसपास हो तो मुझे क्यों नहीं दिखती। यहां कोई कुछ नहीं कहेगा। मैं कुछ कहने के लायक ही नहीं रहा। 

एक बात जो सबसे बुरी हुई है वो ये कि लोई ने मां कहना छोड़ दिया है।

निखिल आनंद गिरि

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