book review लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
book review लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 22 सितंबर 2022

'इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी' - सी भास्कर राव की समीक्षा

जाने-माने साहित्यकार सी. भास्कर राव सर जमशेदपुर में मेरे टीचर रहे हैं। बेहद सौम्य, शालीन और मृदुभाषी। उन्हें अपनी कविताओं की किताब भेजी तो बदले में उन्होंने ये मेल भेजकर और कर्ज़दार कर दिया। ऐसे भी कोई लिखता है क्या। आज उनका जन्मदिन है तो सोचा अपने ब्लॉग पर यह समीक्षा लगाकर अपने गुरु को थोड़ा सम्मान दिया जाए।

प्रियवर निखिल,स्नेह|

मैंने आपके प्रथम कविता संग्रह की सारी कविताएं मनोयोग से पढ़ीं|

आशीष सहित मैं इस बात के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ कि आपने अपनी श्रेष्ठ कविताएं पढ़ने का एक दुर्लभ अवसर मुझे प्रदान किया|

सुप्रसिद्ध साहित्यकार सी. भास्कर राव
सच तो यह है कि मैं बहुत कम कविता संग्रह ही पढ़ पाया हूँ,शायद इसलिए भी कि मैं मूलत: एक गद्य लेखक हूँ और गद्य रचनाएं ही अधिक पढ़ने का अवसर मिलता रहा है| किसी युवा कवि के प्रथम कविता संग्रह पढ़ने का अवसर भी बहुत कम मिला है,लेकिन पूरी ईमानदारी से कह सकता हूँ कि इससे पूर्व किसी युवा कवि का इतना प्रखर और प्रभावशाली संग्रह कभी पढ़ने को नहीं मिला|

सारी कविताएं पढने के बाद यह अनुभव किया कि ये ऐसी कविताएं नहीं हैं,जिन्हें एक बार पढ़ लेने मात्र से उनकी गहराई और गंभीरता को पूरी तरह अनुभव किया जा सके,बल्कि उन्हें कई-कई बार पढ़ने की आवश्यकता है ताकि उनकी परतों और तहों को समझा जा सके|

समस्त कविताएं मुझे अत्यंत संवेदनशील,सार्थक,सघन और नितांत सामायिक प्रतीत हुईं|

इन कविताओं में जो तेवर है,तल्खी है,तीव्रता है,वह किसी भी संवेदनशील पाठक को झकझोरने में समर्थ है|

कथ्य और शिल्प की दृष्टि से सभी कविताएं,चाहे वे छोटी हों या किंचित लम्बी,अपने आप में परिपक्व और प्रौढ़ हैं| कोई भी कविता किसी जागरूक मन को बिना स्पर्श किए रह जाए,यह कतई संभव नहीं है|

ये सारी कविताएं आज के समय और समाज की परतों को उघेड़ने में जितनी सक्षम हैं,उन्हें सीधे छेदने और भेदने में भी उतनी ही सामर्थ्यवान तथा संभावनापूर्ण हैं|

आज के समाज के छल-छद्म की जो चीर-फाड़ इन कविताओं में हुई है,वह अपनी नंगी आँखों से किसी लाश के निर्मम पोस्टमार्टम को देखते हुए भीतर से छलनी होने जैसा है|

सच तो यह है कि हर कविता अपने आप में एक मिसाइल की तरह है,जिसकी अपनी-अपनी मारक क्षमता है,जिससे कोई बचना चाहकर भी नहीं बच सकता है|

कई कविताएं हमें अपने बौनेपन,नंगेपन और नपुंसकता का तीखा एहसास कराती हैं| साथ ही अपनी असमर्थता,असहायता,अवशता का भी| ये कविताएं हमें अपनी बेबसी और अपनी बेचारगी  से रूबरू कराती हैं|

कविताएं जिस हद तक पाठकों के मन पर अपना प्रभाव डालती हैं,उसी हद तक उनके मस्तिष्क पर प्रहार भी करती हैं| हर कविता का हर भाव किसी न किसी वैचारिक चेतना को अभिव्यक्त करने में समर्थ है| कथ्य और शिल्प का तथा भाव और विचार का जो सामंजस्य इन कविताओं में मिलता है,वह उनके समग्र प्रभाव को कई गुना बढ़ा देता है|

खासकर कविताओं का विचार पक्ष,जो अपनी पूरी बौद्धिक क्षमता के साथ मौजूद है,पढ़ने वाले को बेचैन करता है और भीतर तक हिला कर रख देता है,जिससे मन विचलित और आंदोलित हो उठता है|

व्यक्तिगत जीवन प्रसंगों से लेकर सामाजिक और राजनैतिक प्रसंगों तक तथा उससे भी आगे जाकर सार्वजनीन प्रसंगों तक इनमें जो गहरी विवेचना और सघन विश्लेषण मिलता है,वह अचंभित कर देता है कि क्या सचमुच ये कविताएं किसी युवा कवि के प्रथम कविता संग्रह की है!

प्रियवर इन सारी कविताओं को पढ़ने के बाद यही महसूस किया कि कविताओं में जो गंभीरता और गहराई है,उस पर टिप्पणी करने  की अर्हता सचमुच मुझमें नहीं है|

सचाई यह है कि मैं पिछले लगभग पचास वर्षों से लिख छप रहा हूँ,लेकिन कन्फेस करता हूँ कि अपने आज तक के समस्त लेखन-प्रकाशन पर आपकी यह कविता संग्रह बहुत-बहुत भारी पड़ता है|

मेरे एक दिवंगत पूज्य गुरुदेव कहा करते थे कि कोई गुरु जब अपने शिष्य से हार जाए,तो समझो कि वह गुरु की सबसे बड़ी जीत है| आपकी कविताओं को पढ़ने के बाद आज मैं शिद्दत से महसूस करता हूँ कि मैं अपने पुत्रवत शिष्य निखिल आनन्द गिरि से हार कर स्वयं को विजयी और गौरान्वित अनुभव कर रहा हूँ,जिसका प्रमाण है- आपका यह प्रथम कविता संग्रह “ इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी “

पुन: एक बार हार्दिक बधाई,असीम शुभकामनाएं एवं अशेष आशीष| इसलिए कि इन्हें पढ़कर मैं धन्य-धन्य हुआ| यह संग्रह नहीं पढ़ पाता तो निश्चय ही समकालीन जीवन के खुरदुरे यथार्थ और बेरहम सचाई के साक्षात्कार से वंचित रह जाता|

सी.भास्कर राव.

शुक्रवार, 21 जनवरी 2022

मौन अकेली इक भाषा है, जिसके लुप्त होने का कोई ख़तरा नहीं!


''दुनिया की सबसे छोटी कविता लिखनी हो

तो लिखा जाना चाहिए – पृथ्वी’’

ज्योतिकृष्ण वर्मा जी के कविता संग्रह मीठे पानी की मटकियांमें इस तरह की कई छोटी और प्रभावी कविताएं हैं। कविताओं से अधिक क्षणिकाएं कहना बेहतर रहेगा। पूरे संग्रह में क़रीब 70 कविताएं होंगी, जिनका आकार इसी तरह का है। संपादित, साफ-सुथरी, शांत, गंभीर, छोटी-छोटी कविताएं। कहीं कोई अतिरिक्त शब्द नहीं। कविताएं लिखने का मेरा अनुभव और मिज़ाज इस संग्रह से थोड़ा अलग है, इसीलिए पूरा पढ़ने का आकर्षण बना रहा। 

प्रकृति के कई रंग- जैसे नदी, मौसम, पहाड़, नारियल से लेकर शहर के तमाम रंग इस किताब में मौजूद हैं। कवि के शब्दों में ही कहें तो –

इस किताब को खोलते समय

सिर्फ पन्ने ही नहीं खुलते इसके

खुल जाती हैं

ज्योतिकृष्ण वर्मा जी का कविता संग्रह

नदियां, आकाश, समंदर...

दिख जाते हैं

ऊंची उड़ान भरते पंछी

लहलहाते खेत, पेड़ों पर लौटता वसंत

गुलाब की टहनी पर चटखती कलियां

आंगन में खिली धूप

चूल्हे पर रखी हांडी

स्कूल जाते बच्चे

घर संवारती औरत... (कविता – सिरहाने)

 

इस कविता संग्रह में कई पंक्तियां हैं, जिनमें भरपूर चित्रात्मकता है। ये कवि की सबसे बड़ी ख़ूबी है, जो पूरी कविता में बार-बार उभर कर सामने आती है। जैसे संग्रह की पहली कविता पेड़ से ये पंक्तियां

काश! कोई दिव्य बालक

छिपा देता कुल्हाड़ी कहीं दूर

मनुष्य की पहुंच से।

यहां मनुष्य और दिव्य बालक अलग हो गए हैं। मेरे ज़ेहन में कोई आदिवासी बालक आता है जिसके हाथ में कुल्हाड़ी है और पेड़ों के लिए आदर।

ऐसे ही एक कविता का चित्र देखिए

मेरे शहर में आ जाए

चहचहाती गौरेया

मैं हटा दूंगा

गेट पर टंगा बोर्ड

किराये के लिए मकान खाली है (कविता-रंग)

इस संग्रह को इसीलिए पढ़ना चाहिए कि सीखा जाए कि कम शब्दों में असर कैसे बनाए रखा जाता है। बिना किसी विशेष अलंकार या तामझाम के। आशियाना, कभी-कभार, निवेदन जैसी कविताएं कुल 15-20 शब्दों की हैं, मगर काफी समय तक याद रहने वाली हैं

उसने कोर्ट में अर्ज़ी दी है

अपनी पत्नी से तलाक के लिए

 उसके बारे में

अन्य जानकारी के

कॉलम में

उसने लिखवाया था एक जगह –

होम मेकर (कविता - निवेदन)

किसी भी कविता संग्रह की तरह इसमें मां पर कुछ अच्छी क्षणिकाएं भी हैं। एक भावुक कविता पिता पर भी है जो आम तौर पर कम पढ़ने को मिलती हैं।

बोधि प्रकाशन से आई ये कविता पढ़ने और सहेजने लायक है। आज की कविताओं को जो स्वर है, उनसे अलग। छोटी कविताएं हैं तो युवाओं और मोबाइल पर शायरी फॉरवर्ड करने वालों के लिए भी ये बेहतर विकल्प है जहां कुछ पंक्तियों में ही आपका संदेश आगे जा सकता है। अष्टभुजा शुक्ल के शब्दों में कहें तो- मीठे पानी की मटकियां की ये कविताएं निश्चय ही पाठकों के हलक को तर और तृप्त करेंगी।'

निखिल आनंद गिरि

रविवार, 30 अप्रैल 2017

'सपने में पिया पानी' - एक भले इंसान की समर्थ कविताएं

कवि-मित्र समर्थ वशिष्ठ का कविता-संग्रह सपने में पिया पानीसामने है। किताब के साथ समर्थ के हाथ से लिखी सात फरवरी 2017 की एक चिट्ठी है जो रफ पेपर पर लिखी गई है – प्रिय निखिल, किताब की तुम्हारी कॉपी भेज रहा हूं। इस पर आलोचनात्मक कुछ लिखने का मन बना सको तो मुझे बहुत प्रसन्नता होगी। सोचना। कागज़ की दूसरी तरफ से पत्र लिखने की धृष्टता के लिए क्षमाप्रार्थी हूं। सोचा कुछ पेड़ बचाए जाएं।

समर्थ की कविताओं पर बात करने के लिए इस ख़त का ज़िक्र ज़रूरी था। मित्र हैं, सीधा फोन करके कहते कि कुछ लिखो मेरे लिए। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। सकुचाते हुए मेरे सोचने पर छोड़ दिया। ऐसे ही हैं समर्थ। भीतर-भीतर रहने वाले। इस तरह का आग्रह एक अच्छे कवि के साथ अच्छे इंसान होने की भी निशानी होती है। मुझे अच्छे कवियों से ज़्यादा अच्छे इंसानों को पढ़ने में ज़्यादा दिलचस्पी रही है। जैसे समर्थ।

समर्थ की सबसे छोटी कविता पांच शब्दों की है, जिसका शीर्षक छह शब्दों का है –‘एक आवारा कुत्ते का समाधि-लेख
जब तक जिया
गंधाया नहीं।
एक कवि के तौर पर मैं ऐसी कविताओं को कविताएं नहीं मानता। फेसबुक के ज़माने में हम सब ब्रह्रवाक्यों के आविष्कारक हैं। इसके लिए कवि होना या न होना ज़रूरी नहीं। अब एक लंबी कविता का टुकड़ा पढ़ता हूं –
अलस्सुबह
मोबाइल पर बात करता एक शहर
कहां हो रही हैं इतनी बातें
कौन कर रहा है इतनी बातें
मैं क्यूं नहीं हूं इनके बीच? (कविता – दिल्ली)
ये कविता कहने की समर्थ की शैली है। शहर का परिचय देते-देते कवि अपना परिचय देने लगता है। राजधानी जैसे शहर में हिंदी के एक कवि की हैसियत क्या है। वो क्यूं नहीं है तमाम संवादों यानी तिकड़मों, कानाफूसियों, पुरस्कारों के बीच। हल्के-से अपना सवाल रखकर कविता ख़त्म कर देता है। दिल्ली के पास इसका कोई जवाब नहीं।

सपने में पिया पानीएक भले, संकोची इंसान की डायरी जैसा संग्रह है। जिसमें वो थोड़ा मुखर दिखते हैं, एकदम सहज और स्वाभाविक। शायद अपनी बेटी को एक शानदार कविता पराजयके ज़रिए समर्थ अपने अच्छेहोने की विरासत सौंपते हैं –
मैं तुम्हें हारना सिखाऊंगा
जैसे मैं तुम्हें सिखना चाहता हूं
जीतना
जीतो तुम शायद सिर्फ एक बार
हारोगी सौ बार
खेदपत्र, निपट अकेली चुप्पियां
साथ चलेंगी तुम्हारे भी
मैं सिखाना चाहता हूं तुम्हें
कि चुननी पड़ती है कई बार हार(कविता - 'पराजय')
ये मेरी सबसे पसंदीदा कविता है। इतना ओरिजिनल होने के लिए जो जीवन जीना पड़ता है, वही अनुभव एक भले इंसान के गंभीर कवि बनने का ट्रांज़िशन है। हम सब कवि जैसे लोग दुनिया को थोड़ा-बहुत विनम्र इन्हीं पलों में बना सकते हैं। अफसोस, मेरे पास ऐसी कविताएं कम हैं।


समर्थ की कविताओं में जल्दबाज़ी कहीं नहीं है। एक ठहराव है-जो बनावटी नहीं है। एक अनगढ़ता भी है, जो भीतर तक उतरती है -
 एक स्त्री का तुम्हें
तुम्हारे तिलों और मुहांसों समेत
जानने का आनंद
तुम्हारा एक स्त्री को जानना
अपनी टांग की ढीठ दाद से बेहतर।(कविता - 'एक प्रेमगीत')
पहले कविता-संग्रह में कई हल्की कविताएं भी हैं, जिन्हें नहीं होना चाहिए था। कुछ ग़ज़लें भी हैं, जिनके बिना भी कविता-संग्रह चल सकता था। एक प्यारा-सा नवगीत भी है –
खाली हो टंकी जब सूखे हों नल
शॉवर में रहता है थोड़ा-सा जल
ऐसे ही जाता है जीवन निकल।
चिल्लाती सुबहों में फैले उजास
जागूं मैं ज्यूं ही इक कविता उदास
जम्हाई लेती-सी आ बैठे पास।

समर्थ अपने नाम के बराबर ही समर्थ कवि हैं। कविताएं उनके पास यार-दोस्त की तरह जम्हाई लेती बैठी रहती हैं। उनकी कविताओं में भीतर का मंथन ज़्यादा है, जो नया और अच्छा लगता है। आजकल बाहर-बाहर लिखने वाले यूं भी बहुत हैं हिंदी कविताओं में। इस तरह अपने दोस्त समर्थ की सारी कविताएं पढ़वायी जा सकती हैं, मगर कुछ भीतर-भीतर बचा लेता हूं, अपने लिए। बधाई।


निखिल आनंद गिरि

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

Bura Bhala Talent Hunt 2025