Salman khurshied लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Salman khurshied लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 25 अक्टूबर 2012

तुम्हें इक झूठ कह देना था मुझसे..

दर-ओ-दीवार हैं, पर छत नहीं है।
हमें सूरज की भी आदत नहीं है।।

यहां सब सर झुकाए चल रहे हैं।
यहां हंसने की भी मोहलत नहीं है।।

तुम्हें इक झूठ कह देना था मुझसे।
मुझे सच सुनने की हिम्मत नहीं है।।

फ़क़त लाखो की ही अंधेरगर्दी !
'ये क्या खुर्शीद पर तोहमत नहीं है'!!

मैं पत्थर पर पटकता ही रहा सर।
मगर मरने की भी फुर्सत नहीं है।।

सभी को बेज़ुबां अच्छा लगा था।
मैं चुप रह लूं, मेरी फितरत नहीं है।।

(खुर्शीद = सूरज)

निखिल आनंद गिरि

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

नन्हें नानक के लिए डायरी

जो घर में सबसे छोटा होता है, असल में उसका क़द घर में सबसे बड़ा होता है। जैसे सबसे छोटा बच्चा पूरे घर की धुरी होता है। ये पोस्ट मेरे दो साल के...