कांट्रैक्ट, एडहॉक, टेंपररी एक ऐसा शब्द है जो इंसान अपने जन्म के साथ ही जीने लगता है। जैसे स्कूटर की स्टेपनी, घर की बालकनी या फिर आदमी की पैंट में चोर पॉकेट। यूं किसी काम के नहीं मगर इनके बिना किसी का काम ही नहीं चल सकता। जैैसे अंग्रेज़ी के फैशन वाले देश में हिंदी एडहॉक की ज़िंदगी काट रही है। जैसे बचपन ज़िंदगी की एडहॉक अवस्था है। जिस किसी का मूड ख़राब हुआ, किसी बच्चे को दो-चीन झापड़ रसीद कर दिए। जैसे देश की हर यूनिवर्सिटी में परमानेंट स्टाफ चौड़ा होकर घूमता है, मीटिंग-वीटिंग करता है और ऐडहॉक गदहे की तरह सारे काम करता है। देश का भविष्य एडहॉक लोग बना रहे हैं और क्रेडिट परमानेंट लोग ले जा रहे हैं।
दूरदर्शन और आकाशवाणी जैसी देश की सबसे बड़ी दो मीडिया संस्थाएं टेंपररी और कांट्रैक्ट कर्मचारियों के भरोसे ही चलती आ रही हैं। ये बात मीडिया के सारे लोग जानते भी हैं और मानते भी हैं। मगर कभी कोई छोटी-मोटी गलती हो जाए तो कांट्रैक्ट वाले, एडहॉक वाले की एक ही सज़ा होती है। सीधा नौकरी से निकाला। दूरदर्शन की उस टेंपररी न्यूज़रीडर ने भी इतनी भर ही गुस्ताखी की थी। चीन के राष्ट्रपति के नाम के आगे 'ग्यारह' जैसा शुभ विशेषण लगा दिया। सोचा अतिथि आए हैं, पीएम के जन्मदिन के दिन आए हैं, ग्यारह की भेंट चढ़ाना तो ज़रूरी है। तो सी या ज़ी (XI) ज़िनपिंग या शिनपिंग की जगह ग्यारह कह दिया। बस नौकरी चली गई।
ये चीन सचमुच में बहुत चालाक देश है। देश का नाम ऐसा है कि हम रोगी होने की हद तक पिएं और डायबिटीज़ हो जाए और राष्ट्रपति का नाम ऐसा कि हमारा पीएम तो क्या पीएम का बाप भी नाम लेने के बजाय 'सर' 'सर' करने लगे। अब समय आ गया है कि भारत की विदेश नीति में पड़ोसी देशों के नेताओं से सिंपल निकनेम रखने का दबाव डाला जाए। चिंटू, मिंटू, सोनू, मोनू, पिंकू टाइप। हमारे यहां के टीवी एंकर कम से कम अपनी नौकरी तो बचा सकेंगे। पहले ही बात-बात पर नौकरी जाने का ख़तरा बना रहता है। एक एंकर की नौकरी तो सिर्फ इसीलिए चली गई थी कि उसने बॉस की पसंद का लिपस्टिक नहीं लगाया था। एक एंकर ने राष्ट्रपति के संबोधन पर अपनी टिप्पणी करते हुए पढ़ दिया कि राष्ट्रपति महोदय ने सफलता का 'मलमूत्र' दिया।
देश दस सालों तक एडहॉक पीएम के भरोसे चलता रहा। बीजेपी भी आरएसएस की एडहॉक पार्टी ही है। मीडिया भी कॉरपोरेट घराने के लिए एडहॉक की तरह है। एक शादीशुदा आदमी एक परमानेंट संबंध जीता है और कई एडहॉक संबंध छिपाता रहता है। ज़िंदगी में हर कोई किसी दूसरे के लिए एडहॉक की भूमिका ही निभा रहा है । उफ्फ!!
निखिल आनंद गिरि
दूरदर्शन और आकाशवाणी जैसी देश की सबसे बड़ी दो मीडिया संस्थाएं टेंपररी और कांट्रैक्ट कर्मचारियों के भरोसे ही चलती आ रही हैं। ये बात मीडिया के सारे लोग जानते भी हैं और मानते भी हैं। मगर कभी कोई छोटी-मोटी गलती हो जाए तो कांट्रैक्ट वाले, एडहॉक वाले की एक ही सज़ा होती है। सीधा नौकरी से निकाला। दूरदर्शन की उस टेंपररी न्यूज़रीडर ने भी इतनी भर ही गुस्ताखी की थी। चीन के राष्ट्रपति के नाम के आगे 'ग्यारह' जैसा शुभ विशेषण लगा दिया। सोचा अतिथि आए हैं, पीएम के जन्मदिन के दिन आए हैं, ग्यारह की भेंट चढ़ाना तो ज़रूरी है। तो सी या ज़ी (XI) ज़िनपिंग या शिनपिंग की जगह ग्यारह कह दिया। बस नौकरी चली गई।
ये चीन सचमुच में बहुत चालाक देश है। देश का नाम ऐसा है कि हम रोगी होने की हद तक पिएं और डायबिटीज़ हो जाए और राष्ट्रपति का नाम ऐसा कि हमारा पीएम तो क्या पीएम का बाप भी नाम लेने के बजाय 'सर' 'सर' करने लगे। अब समय आ गया है कि भारत की विदेश नीति में पड़ोसी देशों के नेताओं से सिंपल निकनेम रखने का दबाव डाला जाए। चिंटू, मिंटू, सोनू, मोनू, पिंकू टाइप। हमारे यहां के टीवी एंकर कम से कम अपनी नौकरी तो बचा सकेंगे। पहले ही बात-बात पर नौकरी जाने का ख़तरा बना रहता है। एक एंकर की नौकरी तो सिर्फ इसीलिए चली गई थी कि उसने बॉस की पसंद का लिपस्टिक नहीं लगाया था। एक एंकर ने राष्ट्रपति के संबोधन पर अपनी टिप्पणी करते हुए पढ़ दिया कि राष्ट्रपति महोदय ने सफलता का 'मलमूत्र' दिया।
देश दस सालों तक एडहॉक पीएम के भरोसे चलता रहा। बीजेपी भी आरएसएस की एडहॉक पार्टी ही है। मीडिया भी कॉरपोरेट घराने के लिए एडहॉक की तरह है। एक शादीशुदा आदमी एक परमानेंट संबंध जीता है और कई एडहॉक संबंध छिपाता रहता है। ज़िंदगी में हर कोई किसी दूसरे के लिए एडहॉक की भूमिका ही निभा रहा है । उफ्फ!!
निखिल आनंद गिरि