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बुधवार, 25 दिसंबर 2013

विकास के रंगीन चुटकुले

सुबह के जिस अख़बार में चमक रहा था
आधे पेज के सरकारी विकास का विज्ञापन
वही अख़बार देखकर पूछा लड़की ने
ये सामूहिक बलात्कार क्या होता है?
पिता ने छठी मंज़िल से कूदकर खुदकुशी कर ली
लड़की की उम्र सात साल थी। 
उस शहर का नाम कुछ भी रख लीजिए
जहां एक दिन सब सरकारी अस्पतालों में,
निकाले गए थे मरीज़ों के गर्भाशय
और फिर बेच दिये थे सरकारी बाबुओं ने।
गर्भाशय की ख़ूबसूरत तस्वीर छापी थी अख़बार ने,
और अख़बार सबसे ज़्यादा बिका था।
हमारी लाशो में मसाले भरकर,
साबुत रखी जाती हैं लाशें
ख़ूब रंगीन नज़र आते हैं अख़बार
बौराने लगता है माथा
इतनी आती है सड़ांध
मगर शुक्र है टिशु पेपर का ज़माना है।
जिस दारोगा ने एक औरत को
चौकीदार बनाने का लालच देकर
थाने में ही सामूहिक बलात्कार किया
और फरार हो गया
उसकी जगह किसकी हाथों में डाली गई हथकड़ी?
जिस चौराहे पर एक लड़की का जुर्म बस इतना था
कि वो अकेली चल रही थी रात में
बेरहमी से मसली गई,
कुचली गई और नंगी कर दी गई 
किसके छपे पोस्टर अपराधियों के नाम पर,
एक चेहरा आपका तो नहीं?
व्यवस्था अगर नहीं हो सकती बेहतर
तो बेहतर है बदल दी जाए व्यवस्था
जहां-जहां नहीं पहुंच पाती पुलिस
और बलात्कार आराम से होते हैं
उन शरीफ मोहल्लों में
लाउडस्पीकर लगाकर पहले बकी जाएं गालियां
और फिर वंदे मातरम
और ये भी कि,
औरत की गोलाइयों के बाहर भी दुनिया गोल है।

बुधवार, 26 सितंबर 2012

सस्ते अंडे देने वाली मुर्गियों में भी भगवान है..

क़रीब पंद्रह-सोलह साल पुरानी बात याद आ रही है। किराने की दुकान पर घरेलू सामान ख़रीदने के लिए जाने से पहले एक कागज़ के पुर्ज़े पर सभी सामानों के नाम वगैरह लिख कर झोला टांगते थे और सामान  ले आते थे। सबसे सस्ती मिलती थी अगरबत्ती। परनामी अगरबत्ती। बीस रुपये में पूरा बंडल कम से कम दस। उससे भी सस्ती माचिस। 4-5 रुपये में पूरा बंडल। तब भगवान पर बहुत प्यार आता था। सिर्फ बीमारी या दुख के दिनों में ही नहीं, हर तरह के दिन में। इस बार समस्तीपुर में घर पर था तो अगरबत्ती खत़्म हो गई। बाज़ार में गया तो अगरबत्ती का बंडल 120 रुपये का हो चुका था। अचानक आटे के दाम याद आ गए। पांच किलो 110 रुपये में। सही किया कि भगवान से प्यार का रिश्ता कम कर लिया। पेट में रोटी मिले, उसके बाद ही अगरबत्ती जलाने का सुख सुख जैसा लगता है। रोटी के साथ दाल के बजाय मैं अंडे खाना ज़्यादा पसंद करुंगा। उबले हुए दो अंडे दिल्ली में 12 रुपये के मिलते हैं। बिहार में भी 10 रुपये लगते हैं।  दाल कहीं भी 80 रुपये से कम की नहीं मिलती। दाल के साथ गैस का ख़र्च भी है। पानी का ख़र्च भी है। अंडे तो उबले हुए ही मिलते हैं। मैं मुर्गियों को अगरबत्ती दिखाना चाहूंगा। मुझे मुर्गियों में भगवान दिखने लगे हैं। वो न होतीं, तो हमारी रोटियां महंगाई के इस दौर में बेवा हो जातीं। रोटियों की मांग का सिंदूर है अंडे की भुर्जी।
ख़ैर, बचपन की इस अगरबत्ती से एक दूसरे भगवान भी याद आ गए। रांची के डॉक्टर। क़रीब 15 साल पहले एक डॉ. प्रसाद की ख़बर आई थी अख़बार में। किडनी चुराने का संगीन आरोप था। इस बार समस्तीपुर गया था तो वहां गर्भाशय घोटाले की ख़बर देखी-सुनी। ग़रीब महिलाओं के गर्भाशय चुराकर कई डॉक्टर अमीर हो गए। ज़ाहिर है, इसमें महिला डॉक्टरों के भी कई नाम थे। पूरे के पूरे नर्सिंग होम ही शामिल थे डॉक्टरी के पेशे की लुटिया डुबोने में। अब सरकारी जांच-फांच चल रही है। मगर, जिनके गर्भाशय बिना पूछे ही निकाल लिए गए, उनकी भी कोई जांच होनी चाहिए। क्या उनमें ज़िंदगी जीने की इच्छा बची होगी। पता नहीं। मैं तो अपनी बीमारी ठीक करने के इरादे से समस्तीपुर गया था। लेकिन, वहां के डॉक्टरों की ऐसी हालत देखकर घर में ही दम साधे ठीक होता रहा। दिल्ली के डॉक्टर से फोन पर सलाह ले-लेकर। क्या पता मेरा क्या निकाल लेते। 
ख़ैर, अब और किसी भगवान को याद नहीं करूंगा। वो बुरा भी मान सकता है। वक्त ही बुरा है। क्या पता गालियां भी बकता हो मुझे।

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

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