आप उससे मिलने आए हैं
अभी वो घर पर नहीं है
रात भी नहीं थी
ना बाएं करवट थी, ना दाएं करवट
वो मुस्कुरा कर मिलती थी स्वागत में
पर नहीं है..
वो सबसे अच्छी चाय पिलाती थी
मगर फिलहाल यह संभव नहीं है
मैं भी घर पर नहीं था
तभी वह बाहर निकली
किसी ज़रूरी काम से निकली होगी
आप तो जानते ही हैं
वो कैसे निपुणता से सब काम करती थी
पढ़ती और पढ़ाती थी
सुंदर खाना खिलाती थी
मुझसे लंबी बहस करती थी
और मुझे भय होता था कि कहीं बाहर न चली जाए
उसे शायद एक लंबी यात्रा पर जाना था
उसने अपने लिए चार कंधे तैयार किए
फूल धूप गंध आंसू विलाप सब रास्ते में साथी रहे
उसने लकड़ियों को अपने वज़न के अनुपात में जुटाया
फिर गांव कस्बे शहर के व्यस्त जाम में निर्बाध बढ़ती रही आगे
सब उसे जानते थे तो रास्ता देते गए
उसे जहां पहुंचना था उसका समय तय था
वो तय समय पर पहुंची और धुआं हो गई
वह बादलों से देखती है
घर पर निगाह रखती है।
मेरा जन्मदिन ज़रूर याद रखती है।
मेरी पत्नी अब घर पर नहीं रहती
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
इस पोस्ट पर कुछ कहिए प्लीज़