गुरुवार, 9 जनवरी 2025
डायपर
शुक्रवार, 6 सितंबर 2024
मैं लौटता हूं
प्रिय दुनिया,
बहुत दिनों तक भुलाए रखने का शुक्रिया!
मैं इतने दिन कहां रहा
कैसे बचा रहा
यह बताना ज़रूरी नहीं
मगर सब कुछ बचाते बचाते
खुद न बचने का डर वापस लाया है।
इस बीच एक लंबी रात थी
जो शायद अब भी है
मगर अंधेरे में दिखने लग जाता है
लंबी रातों में।
एक बार उदासी कुछ यूं थी कि
मैंने किसी गिलास को पकड़ने के बजाय
एक औरत की गर्दन पकड़ ली
बहुत देर बाद मालूम हुआ
अंधेरा कितना खतरनाक,
कितना अंधेरा हो सकता है।
मुझे अंधेरे में कई हाथ दिखते हैं
कई गर्दनें दिखती हैं
संभव है ज्यादातर औरतों की गर्दनें हों
मुझे लगता है कि जब देखूंगा
उजाले में उन हाथों को
क्या उनके हाथ में उजाले की गर्दन भी होगी?
इन भुलाए गए बहुत दिनों में
मैं एक बंद कमरे को दुनिया समझता रहा
ऐसा कई लोग करते हैं अपने उदास दिनों में
मगर कहने की हिम्मत नहीं करते।
इसी बीच कुछ प्यार करने का मन हुआ
तो मैंने अपनी चीख से प्यार किया
उस लड़की का चेहरा भी दिमाग में आया
जिसे कभी किसी से प्यार की उम्मीद नहीं रही।
मैं कई बार लड़ा अपने डर से
दवाईयों से, घर से
कई बार तो डॉक्टर से।
तो मैं कहना चाहता हूं जो
सिर्फ इसी भाषा में संभव है
कि दुनिया में कुछ भी इतना प्यारा नहीं
जितना भुलाए जाने का डर।
मैं लौटता हूं
अपने तमाम डर के साथ
कविता की तरह नहीं
बरसों बाद लौटी चीख की तरह।
निखिल आनंद गिरि
बुधवार, 24 अप्रैल 2024
जाना
तुम गईं..
जैसे रेलवे के
सफर में
बिछड़ जाते हैं
कुछ लोग
कभी न मिलने के
लिए
जैसे सबसे ज़रूरी
किसी दिन आखिरी मेट्रो
जैसे नए परिंदों
से घोंसले
जैसे लोग जाते
रहे
अपने-अपने समय
में
अपनी-अपनी माटी
से
और कहलाते रहे
रिफ्यूजी
जैसे चला जाता है
समय
दीवार पर अटकी
घड़ी से
जैसे चली जाती है
हंसी
बेटियों की विदाई
के बाद
पिता के चेहरे से
तुम गईं
जैसे होली के
रोज़ दादी
नए साल के रोज़
बाबा
जैसे कोई अपना
छोड़ जाता है
अपनी जगह
आंखों में आंसू
गुरुवार, 25 जनवरी 2024
चालीस की ओर
गुरुवार, 22 जून 2023
कैसे कटेगा जीवन, बोलो?
गुरुवार, 4 मई 2023
क्षणिकाएं
गुरुवार, 22 सितंबर 2022
'इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी' - सी भास्कर राव की समीक्षा
जाने-माने साहित्यकार सी. भास्कर राव सर जमशेदपुर में मेरे टीचर रहे हैं। बेहद सौम्य, शालीन और मृदुभाषी। उन्हें अपनी कविताओं की किताब भेजी तो बदले में उन्होंने ये मेल भेजकर और कर्ज़दार कर दिया। ऐसे भी कोई लिखता है क्या। आज उनका जन्मदिन है तो सोचा अपने ब्लॉग पर यह समीक्षा लगाकर अपने गुरु को थोड़ा सम्मान दिया जाए।
प्रियवर
निखिल,स्नेह|
मैंने
आपके प्रथम कविता संग्रह की सारी कविताएं मनोयोग से पढ़ीं|
आशीष
सहित मैं इस बात के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ कि आपने अपनी श्रेष्ठ
कविताएं पढ़ने का एक दुर्लभ अवसर मुझे प्रदान किया|
सच
तो यह है कि मैं बहुत कम कविता संग्रह ही पढ़ पाया हूँ,शायद इसलिए भी कि मैं मूलत:
एक गद्य लेखक हूँ और गद्य रचनाएं ही अधिक पढ़ने का अवसर मिलता रहा है| किसी युवा
कवि के प्रथम कविता संग्रह पढ़ने का अवसर भी बहुत कम मिला है,लेकिन पूरी ईमानदारी
से कह सकता हूँ कि इससे पूर्व किसी युवा कवि का इतना प्रखर और प्रभावशाली संग्रह
कभी पढ़ने को नहीं मिला|सुप्रसिद्ध साहित्यकार सी. भास्कर राव
सारी
कविताएं पढने के बाद यह अनुभव किया कि ये ऐसी कविताएं नहीं हैं,जिन्हें एक बार पढ़
लेने मात्र से उनकी गहराई और गंभीरता को पूरी तरह अनुभव किया जा सके,बल्कि उन्हें
कई-कई बार पढ़ने की आवश्यकता है ताकि उनकी परतों और तहों को समझा जा सके|
समस्त
कविताएं मुझे अत्यंत संवेदनशील,सार्थक,सघन और नितांत सामायिक प्रतीत हुईं|
इन
कविताओं में जो तेवर है,तल्खी है,तीव्रता है,वह किसी भी संवेदनशील पाठक को झकझोरने
में समर्थ है|
कथ्य
और शिल्प की दृष्टि से सभी कविताएं,चाहे वे छोटी हों या किंचित लम्बी,अपने आप में परिपक्व
और प्रौढ़ हैं| कोई भी कविता किसी जागरूक मन को बिना स्पर्श किए रह जाए,यह कतई संभव
नहीं है|
ये
सारी कविताएं आज के समय और समाज की परतों को उघेड़ने में जितनी सक्षम हैं,उन्हें
सीधे छेदने और भेदने में भी उतनी ही सामर्थ्यवान तथा संभावनापूर्ण हैं|
आज
के समाज के छल-छद्म की जो चीर-फाड़ इन कविताओं में हुई है,वह अपनी नंगी आँखों से
किसी लाश के निर्मम पोस्टमार्टम को देखते हुए भीतर से छलनी होने जैसा है|
सच
तो यह है कि हर कविता अपने आप में एक मिसाइल की तरह है,जिसकी अपनी-अपनी मारक
क्षमता है,जिससे कोई बचना चाहकर भी नहीं बच सकता है|
कई
कविताएं हमें अपने बौनेपन,नंगेपन और नपुंसकता का तीखा एहसास कराती हैं| साथ ही
अपनी असमर्थता,असहायता,अवशता का भी| ये कविताएं हमें अपनी बेबसी और अपनी बेचारगी से रूबरू कराती हैं|
कविताएं
जिस हद तक पाठकों के मन पर अपना प्रभाव डालती हैं,उसी हद तक उनके मस्तिष्क पर
प्रहार भी करती हैं| हर कविता का हर भाव किसी न किसी वैचारिक चेतना को अभिव्यक्त
करने में समर्थ है| कथ्य और शिल्प का तथा भाव और विचार का जो सामंजस्य इन कविताओं
में मिलता है,वह उनके समग्र प्रभाव को कई गुना बढ़ा देता है|
खासकर
कविताओं का विचार पक्ष,जो अपनी पूरी बौद्धिक क्षमता के साथ मौजूद है,पढ़ने वाले को बेचैन
करता है और भीतर तक हिला कर रख देता है,जिससे मन विचलित और आंदोलित हो उठता है|
व्यक्तिगत
जीवन प्रसंगों से लेकर सामाजिक और राजनैतिक प्रसंगों तक तथा उससे भी आगे जाकर
सार्वजनीन प्रसंगों तक इनमें जो गहरी विवेचना और सघन विश्लेषण मिलता है,वह अचंभित
कर देता है कि क्या सचमुच ये कविताएं किसी युवा कवि के प्रथम कविता संग्रह की है!
प्रियवर
इन सारी कविताओं को पढ़ने के बाद यही महसूस किया कि कविताओं में जो गंभीरता और
गहराई है,उस पर टिप्पणी करने की अर्हता सचमुच
मुझमें नहीं है|
सचाई
यह है कि मैं पिछले लगभग पचास वर्षों से लिख छप रहा हूँ,लेकिन कन्फेस करता हूँ कि
अपने आज तक के समस्त लेखन-प्रकाशन पर आपकी यह कविता संग्रह बहुत-बहुत भारी पड़ता
है|
मेरे
एक दिवंगत पूज्य गुरुदेव कहा करते थे कि कोई गुरु जब अपने शिष्य से हार जाए,तो
समझो कि वह गुरु की सबसे बड़ी जीत है| आपकी कविताओं को पढ़ने के बाद आज मैं शिद्दत
से महसूस करता हूँ कि मैं अपने पुत्रवत शिष्य निखिल आनन्द गिरि से हार कर स्वयं को
विजयी और गौरान्वित अनुभव कर रहा हूँ,जिसका प्रमाण है- आपका यह प्रथम कविता संग्रह
“ इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी “
पुन:
एक बार हार्दिक बधाई,असीम शुभकामनाएं एवं अशेष आशीष| इसलिए कि इन्हें पढ़कर मैं
धन्य-धन्य हुआ| यह संग्रह नहीं पढ़ पाता तो निश्चय ही समकालीन जीवन के खुरदुरे
यथार्थ और बेरहम सचाई के साक्षात्कार से वंचित रह जाता|
सी.भास्कर राव.
बुधवार, 29 जून 2022
दीवारें
शुक्रवार, 21 जनवरी 2022
मौन अकेली इक भाषा है, जिसके लुप्त होने का कोई ख़तरा नहीं!
''दुनिया की सबसे छोटी कविता लिखनी हो
तो लिखा जाना चाहिए –
पृथ्वी’’
ज्योतिकृष्ण वर्मा
जी के कविता संग्रह ‘मीठे पानी की मटकियां’ में इस तरह की कई छोटी और प्रभावी कविताएं हैं।
कविताओं से अधिक क्षणिकाएं कहना बेहतर रहेगा। पूरे संग्रह में क़रीब 70 कविताएं
होंगी, जिनका आकार इसी तरह का है। संपादित, साफ-सुथरी, शांत, गंभीर, छोटी-छोटी
कविताएं। कहीं कोई अतिरिक्त शब्द नहीं। कविताएं लिखने का मेरा अनुभव और मिज़ाज इस
संग्रह से थोड़ा अलग है, इसीलिए पूरा पढ़ने का आकर्षण बना रहा।
प्रकृति के कई रंग-
जैसे नदी, मौसम, पहाड़, नारियल से लेकर शहर के तमाम रंग इस किताब में मौजूद हैं।
कवि के शब्दों में ही कहें तो –
‘इस किताब को खोलते समय
सिर्फ पन्ने ही नहीं
खुलते इसके
खुल जाती हैं
ज्योतिकृष्ण वर्मा जी का कविता संग्रह |
नदियां, आकाश,
समंदर...
दिख जाते हैं
ऊंची उड़ान भरते पंछी
लहलहाते खेत, पेड़ों
पर लौटता वसंत
गुलाब की टहनी पर
चटखती कलियां
आंगन में खिली धूप
चूल्हे पर रखी हांडी
स्कूल जाते बच्चे
घर संवारती औरत...’ (कविता – सिरहाने)
इस कविता संग्रह में
कई पंक्तियां हैं, जिनमें भरपूर चित्रात्मकता है। ये कवि की सबसे बड़ी ख़ूबी है,
जो पूरी कविता में बार-बार उभर कर सामने आती है। जैसे संग्रह की पहली कविता ‘पेड़’ से ये पंक्तियां –
‘काश!
कोई दिव्य बालक
छिपा देता कुल्हाड़ी
कहीं दूर
मनुष्य की पहुंच से।‘
यहां मनुष्य और
दिव्य बालक अलग हो गए हैं। मेरे ज़ेहन में कोई आदिवासी बालक आता है जिसके हाथ में
कुल्हाड़ी है और पेड़ों के लिए आदर।
ऐसे ही एक कविता का
चित्र देखिए –
‘मेरे शहर में आ जाए
चहचहाती गौरेया
मैं हटा दूंगा
गेट पर टंगा बोर्ड
‘किराये के लिए मकान खाली है’ (कविता-रंग)
इस संग्रह को इसीलिए
पढ़ना चाहिए कि सीखा जाए कि कम शब्दों में असर कैसे बनाए रखा जाता है। बिना किसी विशेष
अलंकार या तामझाम के। ‘आशियाना’, ‘कभी-कभार’, ‘निवेदन’ जैसी कविताएं कुल 15-20 शब्दों की हैं, मगर काफी समय तक
याद रहने वाली हैं –
‘उसने कोर्ट में अर्ज़ी दी है
अपनी पत्नी से तलाक
के लिए
अन्य जानकारी के
कॉलम में
उसने लिखवाया था एक
जगह –
होम मेकर’ (कविता - ‘निवेदन’)
किसी भी कविता संग्रह
की तरह इसमें मां पर कुछ अच्छी क्षणिकाएं भी हैं। एक भावुक कविता पिता पर भी है जो आम
तौर पर कम पढ़ने को मिलती हैं।
‘बोधि प्रकाशन’ से आई ये कविता पढ़ने और सहेजने लायक है। आज की कविताओं को जो स्वर है, उनसे अलग। छोटी कविताएं हैं तो युवाओं और मोबाइल पर शायरी फॉरवर्ड करने वालों के लिए भी ये बेहतर विकल्प है जहां कुछ पंक्तियों में ही आपका संदेश आगे जा सकता है। अष्टभुजा शुक्ल के शब्दों में कहें तो- ‘मीठे पानी की मटकियां’ की ये कविताएं निश्चय ही पाठकों के हलक को तर और तृप्त करेंगी।'
शनिवार, 22 मई 2021
इच्छाओं का कोरस
रविवार, 17 जून 2018
ज़ी न्यूज़ ने बीजेपी को देश समझ लिया है
हे ईश्वर! इन्हें माफ करना, ये नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं।
दुभाषिये हैं
वे वकील हैं,वैज्ञानिक हैं।
अध्यापक हैं, नेता हैं, दार्शनिक हैं
लेखक हैं, कवि हैं, कलाकार हैं।
यानी कि- कानून की भाषा बोलता हुआ
अपराधियों का एक संयुक्त परिवार है।'
निखिल आनंद गिरि
मंगलवार, 11 जुलाई 2017
बीमार होती दुनिया को सिर्फ पोएट्री नहीं, ‘पोएट्री क्लीनिक’ की ज़रूरत है
कल रात को अचानक एक इनबॉक्स मैसेज आया कि कविताओं की एक नई क्लीनिक खुली है 'POETRYCLINIC' के नाम से। देखा तो बड़ा अच्छा लगा। वेबसाइट की टैगलाइन है - 'Poerty that heals'। पोएट्री क्लीनिक (www.poetryclinic.com) के पेज पर जब आप जाएंगे तो लगेगा किसी क्लीनिक में आ गए हैं। सारे सेक्शन के नाम कुछ इस तरह मिलेंगे – ‘ओपीडी’, ‘साउंड थेरेपी’, ‘विज़ुअल थेरेपी’, ‘मेडिकल स्टोर’ आदि। कमाल का डिज़ाइन लगा मुझे।
ऐसा नहीं कि साहित्य पर बात करने वाली वेबसाइट्स नहीं हैं, कविताओं पर ज्ञान रखने वाले पोर्टल या पेज नहीं हैं, मगर बीमार होती जा रही दुनिया का इलाज करने के मकसद से हिंदी में कोई इस भोलेपन से मेहनत कर रहा है, इस बात की तारीफ करनी चाहिए। हिंदी कविता की दुनिया में लड़ाइयां बहुत हैं, छपास बहुत है, टांग-खिंचाई बहुत है, ख़ेमेबाज़ियां बहुत हैं, मगर कविताओं से इलाज की उम्मीद करने वाले लोग बड़े कम हैं।
नए-पुराने सब तरह के कवि मिलेंगे इस अनोखी वेबसाइट पर। कुंवर नारायण, अशोक वाजपेयी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना से लेकर अविनाश मिश्र और विपिन चौधरी तक। सिर्फ हिंदी ही नहीं विश्व कविताओं का भी एक कॉलम है। दिन के हिसाब से कविताओं की गोलियां हैं। नए कवियों को ‘न्यू हीलर्स’ बताया गया है तो पुराने कवियों को मंजा हुआ डॉक्टर। सब मिलकर इस दुनिया का इलाज करेंगे।
इसके लिए वेबसाइट पर जाना पड़ेगा। अगर आपको लगता है कि आपके आसपास कोई कविताओं की दवाई से जी उठेगा तो ‘मेडिकल स्टोर’ सेक्शन से अपनी पसंद की कविता अपने घर ले जाइए, या फिर अपने दोस्त को गिफ्ट कर सकते हैं।
‘पोएट्री क्लीनिक’ अपने परिचय में कहती है – ‘हमें ऐसा लगता है कि कविता ही हमें बचाएगी। अगर आपको भी ऐसा ही लगता है, तो हमसे जुड़े रहिए। ऐसा नहीं लगता है, तो कुछ देर यहां रुककर देखिए, शायद आपको भी लगे कि कविताओं के पास वो ताकत है कि वो हमें बचा सकती है, बशर्ते हम बचना चाहें। हैप्पी पोएट्री!
पोएट्री क्लीनिक के बारे में बहुत ज़्यादा नहीं जानता, मगर इससे जुड़ गया हूं। किसी भी इमानदार कोशिश के साथ जुड़ना अच्छा लगता है। आप भी इस टीम का हौसला बढाइए। पोएट्री क्लीनिक की पूरी टीम को बधाई।
निखिल आनंद गिरि
रविवार, 30 अप्रैल 2017
'सपने में पिया पानी' - एक भले इंसान की समर्थ कविताएं
बुधवार, 7 दिसंबर 2016
पहले क़दम से पहले
('तद्भव' में प्रकाशित)
ये पोस्ट कुछ ख़ास है
डायपर
नींद न आने की कई वजहें हो सकती हैं किसी प्रिय का वियोग बुढ़ापे का कोई रोग या आदतन नहीं सोने वाले लोग नवजात बच्चों के बारे में सोचिए मां न भ...
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कौ न कहता है कि बालेश्वर यादव गुज़र गए....बलेसर अब जाके ज़िंदा हुए हैं....इतना ज़िंदा कभी नहीं थे मन में जितना अब हैं....मन करता है रोज़ ...
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छ ठ के मौके पर बिहार के समस्तीपुर से दिल्ली लौटते वक्त इस बार जयपुर वाली ट्रेन में रिज़र्वेशन मिली जो दिल्ली होकर गुज़रती है। मालूम पड़...