recession लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
recession लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 1 मार्च 2014

नकली इंद्रधनुष

अगर बाज़ार सचमुच आपकी जेब में है..
हमारे कमरे में थोड़ी घास भर दीजिए...
कि हमें सोना है आकाश तले..
हम अपनी प्रेमिकाओं संग मुस्कुराएंगे
उस नकली घास पर लेटकर
और ज़मीनें बिक जाने का दुख भूल जाएंगे

बस ज़रा और इंतज़ार कीजिए
हम आते हैं डिग्रियां ही डिग्रियां लेकर
आपको मालामाल कर देंगे एक दिन
बारह घंटे धूप में बैठकर
और अपने प्रेम छुपा लेंगे कहीं

हम छुपा लेंगे आपकी ख़ातिर,
तमाम सिलवटें बिस्तर की
आखिरी चुंबन छिपा लेंगे कहीं..
कोई तोहफा जो ख़रीदा ही नहीं

इस बोनस में ख़रीदेंगे तोहफे
मंदी से ठीक पहले
छंटनी से ठीक पहले
किसी डिब्बे मे लपेटकर दीजिए दिलासे
हम सौंपेंगे अपनी पीढियों को..

उन्हें नहीं बताएंगे कभी भगवान कसम,
कि जिन्हें टिमटिम करता देख
तुतलाते रहे वो उम्र भर
और गाते रहे कोई किताबी धुन

वो दरअसल तारे नहीं बारूद हैं
फट पड़ेंगे किसी रोज़
वैज्ञानिकों की मोहब्बत में.

किसी फीके धमाके में उड़ जाएं पीढ़ियां
इससे पहले हमें सौंपने हैं उन्हें आसमान
नकली इंद्रधनुषों वाले..
('दूसरी परंपरा' पत्रिका में प्रकाशित)

निखिल आनंद गिरि


ये पोस्ट कुछ ख़ास है

मौन रहिए

वो तीन में भी हैं और तेरह में भी शाम में भी सवेरे में भी आप कहिए कि एक नई किताब लिखनी है वो कहेंगे किताबे तो हमने कई लिखी इतनी लिखी कि नाम भ...