शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

काश ! रात कल ख़त्म न होती...

सुबह-सुबह जब आंख खुली तो
एक घोंसला उजड़ चुका था....
स्मृतियों के गीले अवशेष बचे थे
तिनका-तिनका बिखर चुका था....

सूरज की अलसाई किरणें
दीवारों से जा टकराईं
पहली बार.....
मायूसी ने कमरे में पाँव पसारे
हंसी उड़ाई.....

पहली बार....
लगा कि जैसे घड़ी की सुईयां
उग आयी हैं बदन में मेरे

बिस्तर से दरवाज़े तक का सफ़र
लगा कि ख़त्म न होगा...
सुबह का पहला पहर
लगा कि ख़त्म न होगा....

रात एक ही प्लेट में दोनों
खाना खाकर, सुस्ताये थे...
देर रात तक बिना बात के
ख़ूब हँसे थे, चिल्लाये थे....
काश !! रात कल ख़त्म न होती.....

अभी किसी ने दरवाज़े पर दस्तक दी है...
मैंने सोचा-तुम ही होगे...

आनन-फानन में बिस्तर से नीचे उतरा
हाथ मेज से टकराए हैं...
खाली प्लेट नीचे चकनाचूर पड़ी है
दरवाज़े पर कोई दस्तक अब भी खड़ी है.....

मैं बेचैन हुआ जाता हूँ
बिस्तर से दरवाज़े तक का लम्बा रस्ता तय करता हूँ....
कोई नहीं है ...........

एक हँसी का टुकडा शायद तैर रहा है
दूर कहीं पर ....
आंखों में गीली मायूसी उभर रही है....
एक नदी मेरे कमरे में पसर रही है.....

और मैं
संवेदना का पुल बनाकर
इस नदी से बच रहा हूँ
और आंखों के समंदर से तुम्हारा
अक्स फिर से रच रहा हूँ..........

निखिल आनंद गिरि

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10 टिप्‍पणियां:

  1. निखिल जी, बेहद मर्मस्‍पर्शी कविता।

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  2. बेहद खूबसूरत रचना ...
    सुन्दर अहसास

    जवाब देंहटाएं
  3. ओह! कितने गहन अहसास भरे हैं आपने इस रचना मे…………दर्द की अनुभूति।

    जवाब देंहटाएं
  4. एक हँसी का टुकडा शायद तैर रहा है
    दूर कहीं पर ....
    आंखों में गीली मायूसी उभर रही है....
    एक नदी मेरे कमरे में पसर रही है.....
    हृदयस्पर्शी रचना। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. और आंखों के समंदर से तुम्हारा
    अक्स फिर से रच रहा हूँ..........

    यहाँ आकर कविता संपूर्ण हो जाती है . बहुत ही मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति .

    जवाब देंहटाएं
  6. और आंखों के समंदर से तुम्हारा
    अक्स फिर से रच रहा हूँ..........
    hridaysparshi rachna!
    ehsaason se buni samvedansheel prastuti!

    जवाब देंहटाएं
  7. खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर भावप्रवण रचना. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  8. waaahhhh....!! too good. bohot bohot pyaari nazm hai, just right on, beautiful

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