कुछ लम्हे बेहद शातिर थे,
रिश्तों में दरारें कर डाली...
छीन ली नज़रों की नरमी,
मुस्कान वही पहले वाली....
मैं लाख छिपाता फिरता हूं,
इक सच का लम्हा आंखों में..
सब पढ़ लेते हैं चुपके से
इक गुस्ताखी तारीखों की...
मैं रुह समेटे लौटा था
वो आंसू का सैलाब ही था,
मैं जैसे-तैसे बच निकला,
इक सिलवट तब भी चुपके से,
मैं साथ ही लाया था....
चांद-सितारे सब चुप थे...
उन लम्हों की खामोशी में,,,
वो लम्हे चीख रहे हैं अब,
वो सिलवट तड़प रही है अब....
शातिर लम्हे, नटखट सिलवट...
रिश्तों में घुटन फैलाने लगे...
मैं बेबस आखिर क्या करता,
रोया, चीखा, चिल्लाने लगा...
मजबूरी थी, गुस्ताखी नहीं...
तुम इक ना इक दिन समझोगे,
उस लम्हे की सच्चाई को...
मैं रुह उठाकर ले आया....
पर जिस्म की गिरहें खुल न सकीं...
इस उम्र के रस्ते पर साथी,
ये जिस्म ही मील का पत्थर है...
आओ न मिटा दें सब दूरी,
है रूह की मंज़िल दूर बहुत...
निखिल आनंद गिरि
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
ये पोस्ट कुछ ख़ास है
मैं बुरा था जब तलक ज़िंदा रहा
आईने ने जब से ठुकराया मुझे हर कोई पुतला नज़र आया मुझे। रौशनी ने कर दिया था बदगुमा, शाम तक सूरज ने भरमाया मुझे। ऊबती सुबहों के सच मालूम था, र...
-
कौ न कहता है कि बालेश्वर यादव गुज़र गए....बलेसर अब जाके ज़िंदा हुए हैं....इतना ज़िंदा कभी नहीं थे मन में जितना अब हैं....मन करता है रोज़ ...
-
छ ठ के मौके पर बिहार के समस्तीपुर से दिल्ली लौटते वक्त इस बार जयपुर वाली ट्रेन में रिज़र्वेशन मिली जो दिल्ली होकर गुज़रती है। मालूम पड़...
-
कवि मित्र अंचित ने जर्नल इंद्रधनुष पर कुछ दिन पहले मेरी कुछ कविताएं पोस्ट की थीं जिस पर एक सुधी पाठिका की विस्तृत टिप्पणी आई है। कीमोथेरेपी...
gudone.
जवाब देंहटाएंनिखिल जी किस किस पँक्ति की दाद दूँ । दिल को छू गयी दिल से निकली हुयी संवेदनायें।
जवाब देंहटाएंमैं लाख छिपाता फिरता हूं,
इक सच का लम्हा आंखों में..
सब पढ़ लेते हैं चुपके से
इक गुस्ताखी तारीखों की...
मैं रुह समेटे लौटा था
बहुत खूब। शुभकामनायें
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंBhai , i just loved each word of it .
जवाब देंहटाएंPlease dont mind , i am making it the status of my fb account ..
bahut bahut umda...
Bhai , i just loved each word of it .
जवाब देंहटाएंPlease dont mind , i am making it the status of my fb account ..
bahut bahut umda...
zordaar nazm hui hai nikhil bhai ...bahut kasi hui girhen hain ....
जवाब देंहटाएं-aatish
Shukriya
जवाब देंहटाएं