जब रात से निचोड़ लिए जाएंगे अंधेरे
और उगने लगेगा सूरज दोनों तरफ से..
जिन पेड़ों को तुम देखते हो रोमांस से,
उन्हें देखना सौभाग्य समझा जाएगा...
मिटा दिए जाएंगे रेगिस्तानों से पदचिह्न
और बाक़ी रहेंगे सिर्फ रुपये जैसे सरकारी निशान...
वर्जित क्षेत्रों में पूजे जाने के लिए....
इतना नीरस होगा समय कि,
दम घोंटकर कई बार मरना चाहेगी दुनिया...
समर्थ लोगों की बेबस दुनिया....
जब थोड़ी-सी प्यास और पसीना फेंटकर,
प्रयोगशालाओं में जन्म लेंगी कविताएं...
जैविक कूड़ा समझकर उड़ेल दिया जाएगा अकेलापन...
सूख चुके समुद्रों में....
लगातार युद्धों से थक चुके होंगे योद्धा...
खून का रंग उतना ही परिचित होगा,
जितनी मां....
चांद पर मिलेंगे ज़मीन के मुआवज़े
और कहीं नहीं होगा आकाश...
इतिहास ऊब चुका होगा बेईमान किस्सों से,
तब बड़े चाव से लिखी जाएंगी बेवकूफियां..
कि कैसे हम चौंके थे, बिना प्रलय के...
जब पहली बार हमने चखा था चुंबन का स्वाद...
या फिर भूख लगने पर बांट लिए थे शरीर....
निखिल आनंद गिरि
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
ये पोस्ट कुछ ख़ास है
नन्हें नानक के लिए डायरी
जो घर में सबसे छोटा होता है, असल में उसका क़द घर में सबसे बड़ा होता है। जैसे सबसे छोटा बच्चा पूरे घर की धुरी होता है। ये पोस्ट मेरे दो साल के...
-
कौ न कहता है कि बालेश्वर यादव गुज़र गए....बलेसर अब जाके ज़िंदा हुए हैं....इतना ज़िंदा कभी नहीं थे मन में जितना अब हैं....मन करता है रोज़ ...
-
हिंदी सिनेमा में आखिरी बार आपने कटा हुआ सिर हाथ में लेकर डराने वाला विलेन कब देखा था। मेरा जवाब है "कभी नहीं"। ये 2024 है, जहां दे...
-
छ ठ के मौके पर बिहार के समस्तीपुर से दिल्ली लौटते वक्त इस बार जयपुर वाली ट्रेन में रिज़र्वेशन मिली जो दिल्ली होकर गुज़रती है। मालूम पड़...
An Intellectual poem... :)
जवाब देंहटाएंbahut achcha thought...I liked it
... बेहद प्रभावशाली है ।
जवाब देंहटाएं