बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

स्तब्ध कर देने का सुख...

आईए ज़रा-सा बदलें,
खुश होने के तरीके...

जो भी दिखे सामने,
उछाल दें उसकी टोपी
और हंसें मुंह फाड़कर
बदहवासी की हद तक...

जिसे सदियों से जानने का भरम हो,
सामने पाकर ऐंठ ले मुंह
उचकाकर कंधे, बोलें-
'हालांकि, चेहरा पहचाना-सा है
मगर दिमाग का सारा ज़ोर लगाकर भी
माफ कीजिए, याद नहीं आ रहे आप'!
स्तब्ध कर देने का सुख,
फैशन है आजकल...

पिता की अक्ल भरी बातें,
सुनते रहें लगाकर कानों में हेडफोन,
और नाश्ते के लिए रिरियाती मां को
दुत्कार दें हर सुबह,
साबित कर दें भिखारन....
आह! सुख कितना सहज है..

आईए हम हो जाएं अश्वत्थामा
नहीं, नहीं, युधिष्ठिर
और खूब फैलाएं भ्रम
कि जो मरा वो हम थे...
आह! छल का सुख
मरते रहें अश्वत्थामा, हमें क्या...

पृथ्वी से निचोड़ ली जाएं
सब प्राकृतिक संपदाएं,
पेड़, फूल, जानवर और प्यार...
सब हो जाएं निर्वस्त्र...
ममता से बांझ धरती पर,
अभी-अभी नवजात जैसे...

आह! एक पीढ़ी का वर्तमान
बोझिल, सूना, नीरस
आह! एक बांझ भविष्य का रेखाचित्र...
खुश होने को गालिब ये खयाल अच्छा है....

निखिल आनंद गिरि

7 टिप्‍पणियां:

  1. life is boring ka label reh gaya, hona chahiye tha ye kavita bahut udaas hai.. Neeras hai

    जवाब देंहटाएं
  2. आह! एक पीढ़ी का वर्तमान
    बोझिल, सूना, नीरस
    आह! एक बांझ भविष्य का रेखाचित्र...
    सह रेखाचित्र है। अच्छी लगी कविता। शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  3. आह! एक पीढ़ी का वर्तमान
    बोझिल, सूना, नीरस
    आह! एक बांझ भविष्य का रेखाचित्र...
    खुश होने को गालिब ये खयाल अच्छा है....

    बिल्कुल सही चित्रण किया है……………हकीकत यही है।

    जवाब देंहटाएं
  4. आज कि पीढ़ी माता पिता कि बातों को किस तरह सुनती है ..और लोंग छल का सुख कैसे महसूस करते हैं ...अच्छा चित्रण किया है ...

    मन को उद्द्वेलित करती अच्छी रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. जो भी दिखे सामने,
    उछाल दें उसकी टोपी
    और हंसें मुंह फाड़कर
    बदहवासी की हद तक...

    जिसे सदियों से जानने का भरम हो,
    सामने पाकर ऐंठ ले मुंह
    उचकाकर कंधे, बोलें-
    'हालांकि, चेहरा पहचाना-सा है
    मगर दिमाग का सारा ज़ोर लगाकर भी
    माफ कीजिए, याद नहीं आ रहे आप'!
    स्तब्ध कर देने का सुख,
    फैशन है आजकल...


    awesome....sooooooooo cute

    जवाब देंहटाएं
  6. कमाल की रचना है. दिल में उतर जाये जिसके वह सुख का मतलब जान जाये.
    हर एक हाशिए से एक हकीकत निकलती है.

    जवाब देंहटाएं

इस पोस्ट पर कुछ कहिए प्लीज़

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

भोजपुरी सिनेमा के चौथे युग की शुरुआत है पहली साइंस फिक्शन फिल्म "मद्धिम"

हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि - कथाकार विमल चंद्र पांडेय की भोजपुरी फिल्म "मद्धिम" शानदार थ्रिलर है।  वरिष्ठ पत्रकार अविजित घोष की &...