गुरुवार, 30 दिसंबर 2021
गूगल पीढ़ी के बच्चे
गुरुवार, 27 मई 2021
साइकिल पर प्रेमिका
रविवार, 23 मई 2021
हल्लो मच्छर!
शनिवार, 22 मई 2021
इच्छाओं का कोरस
रविवार, 16 मई 2021
अकेलेपन के नोट्स - 2
शुक्रवार, 14 मई 2021
अकेलेपन के नोट्स - 1
मंगलवार, 11 मई 2021
गिरते हुए
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021
गाना डॉट कॉम का ‘आपदा में अवसर’ उर्फ़ ‘लस्ट बर्ड्स विद रिया’
जब आपको लगता है कि सोशल मीडिया ही दुनिया है और पूरी दुनिया किसान आंदोलन, कोरोना वैक्सीन पर बहस में उलझी है, ठीक उसी वक्त इंसानी आबादी का एक बड़ा गुच्छा टाइम्स ग्रुप के मशहूर पोर्टल गाना डॉट कॉम के बैनर तले रिया की बेडरूम कहानियों में कान लगाए बैठा है। इसे मैं एक रिसर्च स्कॉलर के तौर पर ख़ुद के लिए और एक बिज़नेस प्लैटफॉर्म के तौर पर गाना डॉट कॉम दोनों के लिए ‘आपदा में अवसर’ कहना चाहूंगा जो ब्रह्मांड के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री का दिया गया जुमला है।
साल 2020 के दौरान कोरोना महामारी में सबने अपने-अपने हिसाब से समय का सदुपयोग किया है। मैंने रेडियो पर रिसर्च करते करते एक दिन गाना डॉट कॉम पर पॉडकास्ट की एक नई सीरीज़ को क्लिक कर दिया जो दिसंबर 2020 में पहली बार पोस्ट हुआ था। नाम था ‘लस्ट बर्ड्स विद रिया’। स्कूल के दिनों में लुगदी किताबों (पल्प फिक्शन) की शक्ल में बिकने वाला पॉर्न, साइबर कैफे वाले युग में पांच रुपये प्रति घंटा के रास्ते वेबसाइट्स तक तस्वीरों और वीडियो के अवतार तक पहुंचा। मगर, आवाज़ की दुनिया यानी पॉडकास्ट में ये प्रयोग मेरे लिए पहला अनुभव था। फोटो-वीडियो की बाढ़ के ज़माने में सिर्फ ऑडियो के सहारे पॉर्न कंटेंट सोचना और ये मानना कि जनता हाथोंहाथ लेगी, किसी क्रांतिकारी क़दम से कम नहीं है।
‘लस्ट विद रिया’ पॉडकास्ट पॉर्न है जिसमें लगभग हर हफ्ते एक दस-बारह मिनट की ऑडियो कहानी डाली जाती है। पॉडकास्ट शुरू होते ही अंग्रेज़ी में डिस्क्लेमर आता है कि ये कहानियां 18 वर्ष की उम्र के बाद के श्रोताओं के लिए ही है, फिर बिना रुके हिंदी में कहानियां शुरू होती हैं। ये कहानी ‘रिया’ सुनाती हैं जो एक आइएएस ऑफिसर की हाउसवाइफ हैं और उनका मानना है कि हर इंसान सेक्स का भूखा होता है, जिसे दिन में कम से कम दो बार इसकी ख़ुराक चाहिए। मगर वो सेक्स दुनिया की ऐसी भूखी हैं, जो ‘बुफे’ में बिलीव करती है। कभी लिफ्ट में, कभी स्विमिंग पूल में, डॉक्टर क्लीनिक में, योगा के बहाने, कभी वैकेशन के दौरान उन्हें नए-नए मर्द मिलते हैं, जिनके साथ वो बड़े चाव से अपने सेक्स अनुभव सुनाती हैं।
रेडियो प्रोग्रामिंग में ड्रामा फॉर्मेट के लिहाज़ से इसमें आवाज़ के सारे पहलू मौजूद हैं। रिया और उसे मिलने वाले किरदारों के नाटकीय नैरेशन हैं, आपको नाज़ुक पलों में ले जाता बैकग्राउंड म्यूज़िक है और रिया के साथ मर्दों के मिलने की आवाज़ों के सस्ते साउंड इफेक्ट्स भी। कई बार ऐसा भी होता है कि रिया जब आपको बहुत ध्यान से सुनने को मजबूर करना चाहती है, आपकी हंसी छूट जाए कि ये सब क्या हो रहा है। लेकिन कुल मिलाकर पॉर्न पॉडकास्ट तैयार करने में मेहनत की गई है, ऐसा कहा जा सकता है।
रिया नाम भी एक तरह का ट्रांज़िशन कहा जा सकता है। हिंदी के लुगदी पॉर्न का पाठक ‘मस्तराम’ नाम से वाकिफ़ होगा। फिर सविता, वेलम्मा जैसे देसी नाम से पाठकों-दर्शकों की नई पीढ़ी तैयार हुई। इस ऑडियो किरदार का नाम रिया है। थोड़ा-सा मॉडर्न, कम से कम मस्तराम से बहुत अलग परिवेश में पली-बढ़ी, पढ़ी-लिखी। मगर इच्छाएं वही आदम-हव्वा वाली। इसे एक फॉर्मूला पॉर्न की तरह कहा जा सकता है, जिसमें हर बार कोई लड़की या महिला ही अपनी महत्वाकांक्षी कहानियां सुनाए।
इन ऑडियो कहानियों मे कल्पना (इमैजिनेशन) की जगह है भी और नहीं भी। ‘मेरी सांसे राजधानी एक्सप्रेस से भी तेज़ हो गई थीं, उसकी पतंग मेरे हाथ में थी’ जैसे डायलॉग आपको अलग कल्पना-लोक में ले जाते हैं, वहीं सी ग्रेड फिल्मों की तरह कामुक पलों के बैकग्राउंड साउंड इफेक्ट वैसे के वैसे ही चेंप दिए गए हैं।
कम लिखूं, ज़्यादा समझिए। विशेष रिया की मनोहर कहानियां सुनने पर।मंगलवार, 9 जून 2020
(कोरोना- काल की छिटपुट कविताएँ)
1) किसी दिन सोता मिला अपनी ही कार में,
तो कोई चिड़िया ही छूकर देखेगी
कितना बचा है जीवन।
लोग चिड़िया के मरने का इंतज़ार करेंगे
और मेरे शरीर को संदेह से देखेंगे।
स्पर्श की सम्भावनाएँ इस कदर ध्वस्त हैं।
2)
आप मानें या न मानें
इस वक़्त जो मास्क लगाए खड़ा है मेरी शक्ल में
आप सबसे हँसता- मुस्कुराता, अभिनय करता
कोई और व्यक्ति है।
आप चाहें तो उतार कर देखें उसका मास्क
मगर ऐसा करेंगे नहीं
आप भी कोई और हैं
चेहरे पर चेहरा चढाये।
ठीक ठीक याद करें अपने बारे में।
मैं क्रोध में एक रोज़ इतना दूर निकल गया
कि मेरी देह छूट गयी कमरे में।
मुझे ठीक ठीक याद है।
3) तुम्हे कोई खुश करने वाली बात ही सुनानी है इस बुरे समय में
तो मैं इतना ही कह सकता हूँ
पिता कई बीमारियों के साथ जीवित हैं
अब भी।
माँ आज भी अधूरा खाकर कर लेती है
तीन आदमियों के काम।
घर मेें और भी लोग हैं
मगर मैंने उन्हें रिश्तों के बोझ से आज़ाद कर दिया है
मैं पिछले बरस आखिरी बार घर की याद में रोया था
फिर अब तक घर में क़ैद हूँ।
4)
मृत्यु की प्रतीक्षा में कुछ भले लोग चले जा रहे हैं
भाग नहीं रहे।
मृत्यु की प्रतीक्षा में कुछ लोग थालियां पीट रहे हैं
घंटियाँ, शंख इत्यादि बजा रहे हैं।
(इत्यादि बजता भी है और नहीं भी)
कुछ लोग लूडो खेल रहे हैं मृत्यु की प्रतीक्षा में।
जिन्हें सबसे पहले मर जाना चाहिए था
बीमारी से कम, शर्म से अधिक
वही जीवन का आनंद ले रहे हैं।
मृत्यु एक प्रेमिका है
जिसकी प्रतीक्षा निराश नहीं करेगी।
वो एक दिन उतर आयेगी साँसों में
बिना आमंत्रण।
दुनिया इतनी एकरस है कि
मरने के लिए अलग बीमारी तक नहीं।
निखिल आनंद गिरि
सोमवार, 1 जून 2020
मेरे 'बंधु' प्रेम भारद्वाज का जाना..
लता जी (उनकी पत्नी) के जाने के बाद वो बहुत अकेले हो गए थे। उन्होंने बहुत दिनों बाद बताया था कि लता जी की अस्थियां चुराकर उन्होंने अपने घर की दराज़ में छिपा ली थीं। उनका प्रेम ऐसा ही था। अतिभावुक, अति निश्छल। लता जी के जाने के बाद कई महिलाएं भी उनके क़रीब आईं। अधिकतर छपास की उम्मीद में। प्रेम जी सब समझते थे। कहते ज़्यादा नहीं थे।
(बंधु-यही उनका संबोधन हुआ करता था)
निखिल आनंद गिरि
गुरुवार, 20 दिसंबर 2018
साल 2018 की सबसे अच्छी फिल्म है 'बागली टॉकीज़'
निखिल आनंद गिरि
गुरुवार, 15 नवंबर 2018
तुम्हारे पास पटाखे हैं, धुंआ है। हमारे पास छठ है, ठेकुआ है
शनिवार, 20 अक्टूबर 2018
डायरी फिर से
शादी हुई थी मेरी तो उसके ठीक बाद झूठ-सच बोलकर सबसे पहले तुम्हें अपने घर लाया था। उस एक घटना से कितना तूफान रहा, बता नहीं सकता। मगर कभी अफसोस नहीं रहा अपने किये का।
आज लगता है तुम कोसों दूर चली गयी हो। पता नहीं कहां हो। कहां हम मीलों साथ चलते थे, बिना थके, कहां बिल्कुल अकेले डूबता जाता हूँ रोज़...
शादी प्रेमिकाओं का सबसे ज़्यादा नुकसान करती हैं।
निखिल आनंद गिरि
शुक्रवार, 24 अगस्त 2018
चिरईं का दाना
दुर्भाग्य से
एक खूँटे की दरार में
की पहले ख़ूब आरजू -मिन्नत
खूँटे से ही
पर जैसा कि अक्सर होता है
वह खूँटा भी
बेईमान निकला
बढ़ी आगे और एक बढ़ई से कहा कि
खूँटे को दंडित करो
ताकि मिले मेरी मेहनत का दाना
जो अपने धारदार वसूले से
काट रहा था
गुट्ठल -गिरहदार लकड़ी
बिना देर किए
राजा के दरबार में लगाई गुहार
राजा ने भी बढ़ई को
बक़्श दिया
उसे दंडित करने की बात तो
बहुत दूर की बात थी
रानी के पास गई
रानी भी चुप रहीं
राजा के नाम पर
वह पहुँच गई फन काढ़े
गेहुँअन साँप के पास
कहा कि रानी ने इंसाफ़ नहीं किया
पूरा सुनाया पिछला क़िस्सा
कहा उससे कि रानी को डँसो
ताक़ि खुले राजा की
आँखों की पट्टी
मिले मेरा इंसाफ़
साँप भी सच में दोमुँहा ही हुआ
साबित
अनसुनी कर दी
चिरईं की बात
कहा उससे पिछला हाल
डंडे को कहा कि
मेरे साथ आओ
इंसाफ़ पाने की मुहिम में
हो जाओ शामिल
चलकर पीटो
फन काढ़े गेहुँअन साँप को
बेबस था
था लाचार
किसी ताक़तवर या दबंग के इशारे पर ही
चलता था
करता था किसी पर
वार पर वार
न रुकी
न विचलित हुई
न तनिक निराश
इंसाफ़ पाने की उसकी इच्छा
होती गयी बलवती
आग के पास गयी
और पूरा वृतांत सुनाकर
डंडे को भस्मीभूत कराना चाहा
पर आग में शेष नहीं बची थी
आग
चिरईं गयी समुद्र के पास
समुद्र चुप रहा
दिखा तटस्थ
चिरईं के पास राजा राम की तरह
तीर-धनुष नहीं था
कि वह डरता
जारी रखा
अपना सफ़र इंसाफ़ का
जाकर बोली
कि चलो सोख लो
बेईमान और जड़बुद्धि समुद्र को
जैसा कि चलन था
उस दौर में
किसी बेबस...
ग़रीब के लिए पाना इंसाफ़
था बेहद मुश्किल
चिरईं गयी जाल के पास
जाल भी पड़ा रहा
निश्चेष्ट ...
एक निबल चूहे के पास
चूहा सहर्ष तैयार हो गया
बिना वक़्त गँवाये
कहा चलकर काटेंगे
जाल को
गुदरी -गुदरी बना डालेंगे
कमबख़्त को...
उसकी बता देंगे
औकात
जाल ने कहा कि
छानेंगे विशालकाय श्यामवर्ण हाथी को
हाथी तैयार हुआ जब डरकर जाल से
सोखने को समुद्र
तो समुद्र ने कहा भयभीत होकर कि
चलो चिरईं चलकर बुझाते हैं
दुष्ट आग को
आग तैयार हुआ डरकर
जब डंडे को जलाने के लिए
तो डंडा तत्पर होकर निकल पड़ा
पीटने के लिए
गेहुँअन साँप को
गेहुँअन साँप ने डरकर पहले तो
प्रणाम किया
डंडे को
और निकल पड़ा
रनिवास की तरफ़
रानी को डँसने
ठहरने के लिए कहा
और चिरईं को दिलाने इंसाफ़
पहुँची राजदरबार में
इतनी संगीन है और
रानी को अचानक आना पड़ा
दरबार में तो वे ज़रूर बढ़ई को कहेंगे कि
जाकर अपने धारदार वसूले से
फाड़ दो खूँटा बाँस का
जिसमें फँसा है
चिरईं की मेहनत का दाना
दाल का
भय से खूँटा तैयार हो गया
ख़ुद से फटने के लिए ...
अपना दाना मेहनत का
पाया इंसाफ़ ...
और फुर्र होकर निकल पड़ी
अपने घोंसले की तरफ़
जहाँ उसके चूजे दाने के इंतज़ार में थे
भूख से व्याकुल होकर !
गुरुवार, 23 अगस्त 2018
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम साहित्यकार प्रभु जोशी का खुला ख़त
रविवार, 17 जून 2018
ज़ी न्यूज़ ने बीजेपी को देश समझ लिया है
हे ईश्वर! इन्हें माफ करना, ये नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं।
दुभाषिये हैं
वे वकील हैं,वैज्ञानिक हैं।
अध्यापक हैं, नेता हैं, दार्शनिक हैं
लेखक हैं, कवि हैं, कलाकार हैं।
यानी कि- कानून की भाषा बोलता हुआ
अपराधियों का एक संयुक्त परिवार है।'
निखिल आनंद गिरि
शनिवार, 27 जनवरी 2018
जब चित्तौड़ जल रहा था, एक ब्राह्मण बंसी बजा रहा था
गुरुवार, 14 सितंबर 2017
'बेस्टसेलर' हिंदी अपनी भाषा में आते-आते 'बिकाऊ' हो जाती है
ये पोस्ट कुछ ख़ास है
नन्हें नानक के लिए डायरी
जो घर में सबसे छोटा होता है, असल में उसका क़द घर में सबसे बड़ा होता है। जैसे सबसे छोटा बच्चा पूरे घर की धुरी होता है। ये पोस्ट मेरे दो साल के...
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कौ न कहता है कि बालेश्वर यादव गुज़र गए....बलेसर अब जाके ज़िंदा हुए हैं....इतना ज़िंदा कभी नहीं थे मन में जितना अब हैं....मन करता है रोज़ ...
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हिंदी सिनेमा में आखिरी बार आपने कटा हुआ सिर हाथ में लेकर डराने वाला विलेन कब देखा था। मेरा जवाब है "कभी नहीं"। ये 2024 है, जहां दे...
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छ ठ के मौके पर बिहार के समस्तीपुर से दिल्ली लौटते वक्त इस बार जयपुर वाली ट्रेन में रिज़र्वेशन मिली जो दिल्ली होकर गुज़रती है। मालूम पड़...