रविवार, 16 मई 2021

अकेलेपन के नोट्स - 2

कुछ साल पहले एक फिल्म आई थी. कहानी एक नए कपल की थी जो शादी के बाद अपने किराये के कमरे में स्कूटर पर सवार होकर बसने आते हैं. पूरा मोहल्ला उन्हें (नई दुल्हन को) जी भरकर देखता है. मकान मालिक, उसकी बीवी, सब्ज़ी वाला, किराने की दुकान वाला, सब के सब. पहले दिन जब लड़का स्कूटर पर ऑफिस जाता है तो फिर लौटकर नहीं आता. कोई ख़बर भी नहीं कि ज़िंदा है या.. 

रिश्तेदार सलाह देते हैं कि अब उसे सफेद कपड़े में ही रहना चाहिए, क्यूंकि रिवाज है. मकान मालकिन अपने भाई से उसकी शादी कर देना चाहती है क्यूंकि उसकी उम्र अब काफी हो चुकी है.मकान मालिक उसे कभी छूने की, कभी देखने की कोशिशें करता रहता है.

जब सबको लगता है कि लड़की मकान मालकिन के भाई से शादी कर ही लेगी, हम देखते हैं कि वो घर के सामने सब्ज़ी वाले के साथ चली जाती है. सब्ज़ी वाले ने एक बार उसे ग़लत नज़र से देखने की कोशिश की थी, मगर लड़की ने जब समझाया तो फिर उसने अच्छी दोस्ती निभाई. 

मुझे उन शादियों से बहुत चिढ़ होती है जिसमें हम बरसों साथ रहकर सिर्फ शरीर बाँट रहे होते हैं, भरोसा नहीं. जिसके लिए रोटियां जला रहे होते हैं, कभी कभी अंगुलियाँ भी, उसे ये सब सिर्फ एक डेली रूटीन की तरह लगता है. रिवाज की तरह. 

किसी को हथिया लेने भर का रिश्ता कोई रिश्ता नहीं होता. अधिकार किसी रिवाज के बोझ से नहीं, कमाया जाना चाहिए. 

जिस फिल्म का ज़िक्र किया, उसमें न तो पति ने, न मकान मालकिन के भाई ने उस लड़की का भरोसा कमाया. वो सिर्फ अपनी ज़रूरत पूरी कर रहे थे. 

हमारी ज़िंदगी में एक तीसरे सब्ज़ी वाले की जगह भी हमेशा होनी चाहिए.

निखिल आनंद गिरि

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर कुछ कहिए प्लीज़

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

Bura Bhala Talent Hunt 2025