शनिवार, 26 नवंबर 2011

विकल्प

हमारे पास कोई विकल्प नहीं था,

टी.वी. के आगे बैठकर लाशें गिनने के सिवा...
गोलियों से छलनी होकर रेशा-रेशा बिखरे कांच के टुकड़े,
चुभो रहे थे मर्दानगी को...
और मूकदर्शक बने रहने के सिवा,
हमारे पास कोई विकल्प नहीं था..

हम कर भी क्या सकते थे,
जब सदी के महानायक के पास भी विकल्प नहीं था...
बायें हाथ में रिवॉल्वर थामे,
वो नहीं कर सकता था,
मौत का सामना,
इसीलिए बंदूक को तकिया बनाकर,
लेनी पड़ी चैन की नींद...

कोई विकल्प नहीं था
उस सफ़ेदपोश के पास,
उस दरवाज़े पर जाकर घड़ियाली आंसू बहाने के सिवा,
जहां नहीं गया था वो पहले कभी
या कोई कुत्ता भी....
विकल्प था उस पिता के पास,
जो जवान बेटे की मौत पर मौन था,
उसने चुप्पी तोड़ी तो भाग गया
दुम दबाकर सफ़ेदपोश,
उन्हीं गलियों से,
जहां कुत्ते भी जाना पसंद नहीं करते....

विकल्प था कुछ ज़िंदा दीवानों के पास,
सो लिखा उन्होंने,
अपने ख़ून से
ज़िंदा रहने का नया इतिहास.....
आप उन्हें किसी भी नाम से बुला सकते हैं,
सालस्कर, संदीप, करकरे...
क्या फर्क पड़ता है....

हमारे पास कोई विकल्प नहीं...
सिवाय मोमबत्तियों की आग सेंक कर गर्म होने के....
भीतर मर चुकी आग को सुलगाने के लिए
हमें अक्सर ज़रूरत पड़ती है,
चंद बेक़सूर लाशों की.....

दरअसल,
चाय की चुस्की,
एफएम का शोर,
ख़बर बेचते अखबार,
थक चुकी फाईलें,
ट्रैफिक का धुंआ,
बोनस का इंतज़ार
वगैरह-वगैरह....
कभी कोई विकल्प ही नहीं छोड़ते,
एक दिन या एक पल भी,
ज़िंदा लोगों की तरह ज़िंदगी जीने का,
ज़िंदा लोग माने....
सालस्कर, संदीप, करकरे...
आप उन्हें किसी भी नाम से पुकार लें...
क्या फर्क पड़ता है....

निखिल आनंद गिरि
(तीन साल पहले 26/11/2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद लिखी गई कविता )

6 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा विकल्प नही बचता कोई मगर ज़िन्दा यहाँ है कौन ?

    जवाब देंहटाएं
  2. सही कहा विकल्प नही बचता कोई मगर ज़िन्दा यहाँ है कौन ?

    जवाब देंहटाएं
  3. तीन सालों बाद फिर एक दबा दर्द जिन्दा हो गया.....दहशत...नफरत...और एक जहर सा गुस्सा....जब मेरी 5 साल की बेटी ने एक सवाल किया था "मम्मी भगवान ने आतंकवादियों से लोगों को क्यों नहीं बचाया.. जब आतंकवादी इंडिया में आते हैं तो भगवान पाकिस्तान चले जाते हैं क्या ?"

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन शब्द समायोजन..... भावपूर्ण अभिवयक्ति....

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी विकल्प बंद हो जाते हैं दोस्त... बस यादें रह ज़ाती हैं, शब्दों में तब्दील होने को ... बेहतरीन कविता लिखे हो... साधुवाद.

    जवाब देंहटाएं

इस पोस्ट पर कुछ कहिए प्लीज़

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

नन्हें नानक के लिए डायरी

जो घर में सबसे छोटा होता है, असल में उसका क़द घर में सबसे बड़ा होता है। जैसे सबसे छोटा बच्चा पूरे घर की धुरी होता है। ये पोस्ट मेरे दो साल के...