सहरा-ए-शहर में खुशबू की तरह लगते थे...
किस्से माज़ी के वो जुगनू की तरह लगते थे
हमने उस दौरे-जुनूं में कभी उल्फत की थी ,
जब कि ज़ंजीर भी घुँघरू की तरह लगते थे.
हर तरफ लाशें थी ताहद्दे-नज़र फैली हुईं
ज़िंदा-से लोग तो जादू की तरह लगते थे
ऊंगलियां काट लीं उन सबने ज़मीं की ख़ातिर
बाप को बेटे जो बाज़ू की तरह लगते थे...
मुझ को खामोश बसर करना था बेहतर शायद
हंसते लब भी मेरे आंसू की तरह लगते थे...
वो उजालों के शहर, तुम को ही मुबारक हों,
रात में सब के सब उल्लू की तरह लगते थे
दिन ब दिन रहनुमा गढते थे रिसाले अक्सर
चेहरे सब कलजुगी, साधू की तरह लगते थे
आज बन बैठे अदू कैसे मोहब्बत के 'निखिल'
वो भी थे दिन कि वो मजनू की तरह लगते थे
माज़ी - बीता हुआ कल
अदू - दुश्मन
निखिल आनंद गिरि
किस्से माज़ी के वो जुगनू की तरह लगते थे
हमने उस दौरे-जुनूं में कभी उल्फत की थी ,
जब कि ज़ंजीर भी घुँघरू की तरह लगते थे.
हर तरफ लाशें थी ताहद्दे-नज़र फैली हुईं
ज़िंदा-से लोग तो जादू की तरह लगते थे
ऊंगलियां काट लीं उन सबने ज़मीं की ख़ातिर
बाप को बेटे जो बाज़ू की तरह लगते थे...
मुझ को खामोश बसर करना था बेहतर शायद
हंसते लब भी मेरे आंसू की तरह लगते थे...
वो उजालों के शहर, तुम को ही मुबारक हों,
रात में सब के सब उल्लू की तरह लगते थे
दिन ब दिन रहनुमा गढते थे रिसाले अक्सर
चेहरे सब कलजुगी, साधू की तरह लगते थे
आज बन बैठे अदू कैसे मोहब्बत के 'निखिल'
वो भी थे दिन कि वो मजनू की तरह लगते थे
माज़ी - बीता हुआ कल
अदू - दुश्मन
निखिल आनंद गिरि
bahut khoob
जवाब देंहटाएंगिरि जी, जबरदस्त ग़ज़ल है.. दिल खुश हो गया... हम ऐसे हीं आपको गुरू नहीं कहते...
जवाब देंहटाएंवैसे भी "गिरि" और "गुरू" में कुछ हीं मात्राओं का फ़र्क है :)
मुझ को खामोश बसर करना था बेहतर शायद
जवाब देंहटाएंहंसते लब भी मेरे आंसू की तरह लगते थे....वाह भैया ...उम्दा :)
लाजवाब!!
जवाब देंहटाएंbhaut hi sundar umda gazal....
जवाब देंहटाएं@वो उजालों के शहर, तुम को ही मुबारक हों,
जवाब देंहटाएंरात में सब के सब उल्लू की तरह लगते थे
लाजवाब कर दिया जी.
wah nikhil bhai kya bat hai .bahut khub kahi hai janab aapne !!!
जवाब देंहटाएंPankaj gupta
bahut khoob.sundar
जवाब देंहटाएंBahut khoob Nikhil
जवाब देंहटाएंSikandar Hayat Khan
Jamshedpur
मज़ा आ गया निखिल बाबू!!
जवाब देंहटाएंनिखिल शायद इस गज़ल का एक एक मिस्र हम बहुत पहले डिस्कस कर चुके हैं. एक से एक बढ़ कर शेर हैं हालांकि मैंने शायद यह भी कहा था कि कुछ मिसरों में बह्र की गडबड है. इस के शीर्षक में ही देख लो. बहरहाल एक बार फिर कि बह्र से ख़ारिज मिसरे ठीक कर लो, तब यह A क्लास गज़ल होगी.
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