एक आदमी जो फंस गया था
आंदोलन कर रही भीड़ के बीच
में
किसी तरकारी का नाम याद कर रहा
था
और बुदबुदा रहा था होठों से
अपनी पत्नी या प्रेमिका का
नाम।
आपने क्रांति का नारा समझ
लिया
आंसू गैस छोड़े
और गोली दाग दी।
जब आप व्यवस्था के नाम पर
गोलियां बरसा रहे थे भीड़ पर,
वहां खड़े कुछ लोगों को
ज़रा देर से लगी
होती गोली,
तो पूरी हो सकती थीं
उम्मीद की सैंकड़ों कविताएं।
कहां तक मारे जाएंगे
सपने?
कितनी जगह होगी
आपकी जेलों में
जब ज़मीन के
दलाल,
बेच चुके होंगे आख़िरी
टुकड़ा.
कहां जेल बनाएंगे आप?
आप गाड़ियों में लादकर कहां
ले जाएंगे
पेड़ नहीं होगी, घास नहीं होगी
किस कागज़ पर
दर्ज करेंगे
झूठे केस-मुकदमे।
हमें लाठियों-डंडों-गोलियों
से कूटेंगे
ठूंस देंगे किसी सडांध भरी
जगह में
हम अचार बनाएंगे
पापड़ बनाएंगे
आप किटी पार्टियों में स्टॉल
लगाएंगे
और ख़ूब अमीर हो जाएंगे।
आप हमारी ज़ुबान पर ताले जड़
देंगे
सूरज को छिपा देंगे कहीं
तहख़ाने में
हम सुंदर कविताएं लिखेंगे तब
नीम अंधेरे में।
सड़ांध वाले कमरों में
खुली हवाओं की कविताएं।