शनिवार, 29 दिसंबर 2012

प्रलय का इंतज़ार..

आइए जंतर-मंतर पर जमा हों..
और भीतर छिपे मर्दों को फांसी दें..
सरकार के पास बहुत पैसा है..
पुलिस है, गोलियां हैं..
वो घेरा बनाकर..
आंसू गैस छोड़ेगी,
रोएगी हमारे लिए..
ख़ज़ाने लुटाएगी मुआवज़े के नाम पर...

हमारे भीतर के 'मर्द' दिल्ली पर राज कर रहे हैं..
हमारी बहन, बेटी, प्रेमिकाएं सिंगापुर जा-जाकर..
तिल-तिल मर रही हैं..

आप अब भी प्रलय का इंतज़ार कर रहे हैं?

निखिल आनंद गिरि

 

4 टिप्‍पणियां:

  1. इंतजार नहीं......योगदान का रास्‍ता ढूंढ रहा हूं।

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  2. nice lines...feeling sad! A black day, recorded as an apocalypse of
    Indian culture leaves many questions unanswered. What is the structure
    of modern Indian civilization? What kind of punishment should be
    organised to control people’s action? Will girls ever be free and not
    scared? For conducting a job selection process in a government
    organisation, the committee review the eligibility criterion every six
    months to make the selection process more stringent…then why the laws
    are not reviewed ever for organizing the societies well being? For
    making every flyover and metro station, the workers and engineers had
    worked day and night. Then why the nation is sleeping today? Why the
    history repeats itself again and again? Whose responsibility is it?

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