शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

आइए दारा सिंह की तरह मुंह फुलाएं, हमारी बहनें असुरक्षित हैं...

ज़ी न्यूज़ पर दस बजे 'बड़ी ख़बर' लेकर आते हैं पुण्यप्रसून वाजपेयी। बढ़ी हुई दाढ़ी, हथेली रगड़ते, कुटिल मुस्कान के बीच बहुत जानकार लगते हैं 'बाबा' (चैनल के बीच पीठ पीछे इसी नाम से मशहूर)। बेशक हैं भी। कल दारा सिंह पर इतनी सारी जानकारियां लेकर आए थे कि लगा दारा सिंह पर कोई अच्छी किताब हमने पढ़ ली। इंदिरा से रिश्ते, जवाहरलाल नेहरू से रिश्ते, अमिताभ बच्चन से रिश्ते, सब पर जानकारी। सवाल ये नहीं कि (ये बाबा का तकियाकलाम भी है) इस प्रोग्राम में क्या था, सवाल ये था कि क्या सचमूच कल रात दस बजे यही बड़ी ख़बर थे। सिर्फ इसीलिए कि बाबा की दिमागी विकीपीडिया में दारा सिंह से लेकर दुनिया के हर विषय पर कई जानकारियां फीड हैं।

सवाल इसलिए कि 'बड़ी ख़बर' से ठीक पहले एनडीटीवी इंडिया पर 9 से दस बजे तक रवीश कुमार ने अपने गुस्से से हम सबको हिला दिया था। दो दिन पुराना एक वीडियो दिख रहा था। गुवाहाटी में कुछ भेड़िए (आदमी की शक्ल वाले) सड़क पर खुल्लखुल्ला ग्यारहवीं की एक लड़की के कपड़े फाड़कर तमाशा कर रहे थे। जो लोग लड़की की तरफ बढ़ रहे थे, वो बचाने के लिए नहीं, उसके कपड़े नोंचकर ले जाने के लिए आ रहे थे। कोई टोपी पहनकर आ रहा था, कोई हेलमेट पहने ही थोड़ी देर उसके साथ खेल लेना चाहता था। एनडीटीवी पर चार मेहमानों के साथ आग उगलते रवीश कुमार तब इकलौते 'दारा सिंह' लग रहे थे। उनका गुस्सा किसी स्क्रिप्ट में लिखा हुआ नहीं था। ये एक पत्रकार का गुस्सा था जो उस वक्त किसी दूसरे चैनल के स्टूडियो में नज़र नहीं आ रहा था। सुबह तक लगातार एनडीटीवी उस ख़बर को अपनी स्क्रिन के नीचे वाली जगह ('टिकर') पर लिख कर चला रहा था। 


अफसोस बस यही है । क्या ऐसे मौक़ों पर भी सभी न्यूज़ चैनलों को अपने-अपने गूगल की मदद से लिखे-लिखाए प्रोग्राम पेश करने का मन करता है। क्या गुस्सा हमारा सामूहिक हथियार नहीं बन सकता। ज़ाहिर है, रुस्तम-ए-हिंद दारा सिंह पर भी एक फीचर लाज़मी था, मगर क्या आधे घंटे में कुछ मिनट भी पुण्य प्रसून वाजपेयी इस घटना पर अपने ही अंदाज़ में मुंह नहीं फुला सकते थे। ये सवाल इसीलिए क्योंकि हिंदी मीडिया में जिन कुछ चेहरों पर दर्शक दांव लगा सकते हैं, उनमें से एक चेहरा बाबा का भी है। (ये किसी सर्वे के आधार पर नहीं, मेरी निजी राय है)। 


रवीश कुमार ने किसी मेहमान से सवाल किया कि क्या सरकार या वहां के नेता-पुलिस अचार डाल रहे थे। ये सवाल हम सबका है। वहां (गुवाहाटी) की महिला सांसद से रवीश ने एकदम डांटते हुए पूछा कि क्या आप वहां गई हैं, तो ऊल-जुलूल बोलती सांसद के पास कोई जवाब नहीं था। क्या जवाब होता, वो तो मीडिया रिपोर्ट देखकर ही जान पाई कि उसके इलाके की किसी लड़की के साथ सरेआम नंगई हुई है। 


ऐसे हैं हमारे सांसद। ऐसी है हमारी पुलिस। हम और आप इन्हें पहचानते है, मगर बोलते कुछ नहीं । मैं रोज़ मेट्रो में सफर करता हूं। हर दूसरे दिन सीट से लेकर भीड़ में ठीक से खड़े होने को लेकर लड़ाईयों की आवाज़ आती रहती है। तू सरदार है, तो मैं जाट हूं मादर...। तू दस साल से है, तो मैं बीस साल से हूं, क्या उखाड़ लेगा मेरा। इस तरह के डायलोग रोज़ सुनाई पड़ते हैं। हम चुपचाप सुनते रहते हैं और जोड़ते रहते हैं कि कितने साल से दिल्ली में हैं और कितने सालों तक रह पाएंगे ऐसे माहौल में। 


इसी संडे को मेरी एक कहानी 'गुड फ्राइडे'  जनसत्ता  में आई थी। पहली लाइन बेचारे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की बेचारगी पर हल्के तंज से शुरु हुई थी। वो गुड फ्राइडे का दिन था। प्रधानमंत्री जिनका हाथ कंधे से ऊपर नहीं उठता और राष्ट्रपति ने, जिन्हें लगातार पांच मिनट बोलने के बाद दाईं ओर के आखिरी दांत दुखने की शिकायत है, पूरे देश को शुभकामनाएं दी थीं। माननीय अखबार ने वो लाइन उड़ा दी। पूरी कहानी छाप दी। कहानी में कुछ नया नहीं था। मुझे तो कहानी लिखनी आती ही नहीं। वो तो बस एक सच्ची घटना का थोड़ा-सा काल्पनिक विस्तार था, जिसमें एक स्टंटमैन मॉल की ऊंचाई से गिरकर मर गया था। और मैंने कुछ लोगों को मज़ाक में कहते सुना था कि साले ने दारू पी ली होगी। तो मैंने गुस्सा ज़ाहिर करने के लिए कुछ लिख दिया था। मगर ग़ुस्से का पहला वाक्य ही काट दिया गया। सवाल यही कि हम कब तक 'सेफ' खेलते रहेंगे। ख़ैर...


बात दारा सिंह से शुरु हुई थी। हमारे घर में हनुमान का कैलेंडर था जिस पर दूध का हिसाब लिखा जाता था। मुझे बचपन से पूरा यक़ीन था कि टीवी वाले दारा सिंह और कैलेंडर वाले हनुमान एक ही आदमी के चेहरे हैं। शीशे के सामने मुंह फुलाकर कई बार हम हनुमान या बलवान बनने की नकल करते रहे हैं। आइए एक बार फिर सचमुच का गुस्सा भरकर दारा सिंह की तरह मुंह फुलाएं। इसकी बहुत ज़रूरत है। रक्षा बंधन आने वाला है और हमारी बहनें सड़कों पर नंगी की जा रही हैं। 


निखिल आनंद गिरि 

17 टिप्‍पणियां:

  1. दो बड़ी दुखद घटनाओं का कडवा काकटेल -मगर पत्रकार की क्या जिम्मेदारी -आत्म सुरक्षा की सावधानी पर सोच क्यों नहीं ?

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  2. अगर गालियाँ लिखने जाऊँगा तो पोस्ट भद्दी हो जाएगी... लेकिन गुस्सा तो वाजिब है... ऐसे हरामियों को बीच सड़क पर नंगा करके बाँध देना चाहिए... Anurag आर्य जी सही कहते हैं... ऐसे लोगो को चोराहे पे एक हफ्ते तक लटका देना चाहिए साथ में चार डंडे छोड़ देने चाहिए जिसका मन आये लगा दे इतनी कठोर सजा दो की दूसरा कोई हिम्मत न कर सके .

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  3. शेखर ने फेसबुक पर शेयर किया तो यहाँ पहुंच गयी. सही कहा, बिलकुल सही. कम से कम कुछ मामलों पर तो सामूहिक गुस्सा आना ही चाहिए.

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  4. samuhik gussae kae intezaar me naa baethe jo jahaan haen wahii kuchh bhi galat daekhae
    pratikaar karae

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  5. मुझे भी बहुत आश्चर्य हुआ था कल यह पता चलने पर कि खुलेआम किसी लड़की के साथ ऐसा हो जाता है और पुलिस को पता चलने पर भी पहुँचने में इतनी देर हो जाती है। बेशक यह घटना कई सवाल उठाती है और पुलिस व प्रशासन को एक संदिग्ध घेरे में ले आती है। आपने इसकी तरफ़ सबका ध्यान आकर्षित करने की बढ़िया कोशिश की है।

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  6. कमेंट का शुक्रिया अरविंद जी...मगर सवाल ये है कि आत्मसुरक्षा की ज़रूरत ही क्यों पड़े..क्या हमारी मर्दानगियां बिगड़ैल ही रहेगी कि हमारी औरतों को अपनी अपनी सुरक्षा को लेकर चौकन्ना रहना पड़े...ये तो आधा इलाज हुआ न...

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  7. aise log ko bich sadak pe langa kar ke churahe pe latka de aur kuch pattar saat men rakh de aur ane jane wale se kahe ki ek ek pattar mar ke jao aur sale pulish bala janha dikhe use jute marna chahiye aur us area ke sansad & MLA KE GHAR ja ke unhe bhi langa karna chahiye taki pata chale ki ek 11 saal ki bachche ko jab langa kiya jata ho wo bhi janbaro ke trah bich sadak pe to un ke man pe kya bitata ho ga..........

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  8. ये घिनोने वहशी कहीं आसमां से तो नहीं टपके होंगे ना ...घरों से निकले होंगे,इनकी वहशत इतनी बढ़ गई है क्या पता अपने घरों में भी यही हरकतें करते होंगे ..साथ में आसपास इतनी भीड़ और किसी ने उस बच्ची को बचाया नहीं .....उफ्फ्फ

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  9. सही कहा निखिल ....अजीब सा है हमारा समाज ...या कहें कि हमनें खुद बनायी है ये मतलब की दुनिया ...जब तक खुद पर नहीं बीतती तब तक कोई हाथ उठाकर आगे नहीं बढ़ता ...what a Shame ....Mob not even reacted in Guhati....भीड़ बस सिर्फ तमाशा देखने के लिए ही होती है ....पता नहीं सामने ये बदसलूकी देखकर भी लोग बर्दाश्त कैसे करते हैं ....जबकि हर घर में बहु बेटी ...या कोई ना कोई औरत ज़रुर होगी ...लेकिन फिर भी इतनी घटिया सोच लोगों की .....shameful incident ....मैं आपके लेख से सेहमत हूं मीडिया भी केवल उसे कवर करना चाहती है जिसमें कुछ मसाला हो ....समाज कल्याण और जागरुकता के लिए लिखते रहिएगा ....all the best

    nidhi

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  10. पुरुष के भेष में ' पुरुष ' हर जगह हैं एक जिन्हें शर्म आती है , एक जिन्हें शर्म नहीं आती ।

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  11. bolne ko kuch nahi.subah se udaas hu kal ye khabar dekh nahi paai thi aj dekhi bhi suni bhi,yahi baki rah gaya tha hone ko,ya aur bhi kuch hai

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  12. इस तरह की घटना के ज़िम्मेदार वो लोग नहीं हैं जिन्होंने ये किया है... वो तो खैर मानसिक तौर पर अपंग हैं.. ज़िम्मेदार हैं भीड़ में खड़े हम जैसे लोग जिनकी आखों के सामने ये सब होता रहता है और हम ये कहते हैं, छोडो न हमें क्या पड़ी है... हम इंतज़ार करते हैं उस दिन का जब हमारी भी बहन-बीबी के साथ ऐसी कोई हरकत हो... तब शायद हमें कुछ फर्क पड़े....

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  13. लड़कियों को आत्मरक्षा के लिए कहना तो ठीक वैसा ही है कि भाई हम तो बिगड़े हुए ही हैं तुम खुद को बचा सको तो बचा लो...

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  14. bat sahi bhi hai. purani bhi.magar lazmi bhi.magar ye sab kabtk chlega..? hm morally kab uncha uthenge kab..?

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  15. पोस्ट भद्दी हो तो होती रहे..
    पर इन सूअर के बच्चों को ट्रक में भर कर दिल्ली भेज देना चाहिए..
    और इस से भी बुरी तरह जलील करके ख़त्म कर देना चाहिए...कोई केस मुकदमा कुछ नहीं..
    वैसे मैं भीड़ द्वारा किसी जेबकतरे को भी पीटे जाने के सख्त खिलाफ हूँ...मगर इन हरामियों को गुस्साई भीड़ के आगे ही डाल देना चाहिए

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  16. पोस्ट भद्दी हो तो होती रहे..
    पर इन सूअर के बच्चों को ट्रक में भर कर दिल्ली भेज देना चाहिए..
    और इस से भी बुरी तरह जलील करके ख़त्म कर देना चाहिए...कोई केस मुकदमा कुछ नहीं..
    वैसे मैं भीड़ द्वारा किसी जेबकतरे को भी पीटे जाने के सख्त खिलाफ हूँ...मगर इन हरामियों को गुस्साई भीड़ के आगे ही डाल देना चाहिए

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  17. people who play with someone's integrity just in text are as bad as someone who do it physically. i hope u get my point.

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