रविवार, 8 जुलाई 2012

गुड फ्राइडे

वो गुड फ्राइडे का दिन था। प्रधानमंत्री जिनका हाथ कंधे से ऊपर नहीं उठता और राष्ट्रपति ने, जिन्हें लगातार पांच मिनट बोलने के बाद दाईं ओर के आखिरी दांत दुखने की शिकायत है, पूरे देश को शुभकामनाएं दी थीं।
उसके सारे दांत बाहर आ गए थे। वो मुंह के बल ज़मीन पर गिरा था। उसका मुंह खेत में पड़े किसी मिट्टी के ढेले की तरह भसक गया था। आसपास बहुत ख़ून बह रहा था। मगर उसके मरने की जगह इतनी साफ थी कि मक्खियां अब तक वहां पहुंच नहीं सकी थीं। ख़ून साफ करने के लिए एक रेस्क्यू टीम मिनटों में वहां घेरा बना चुकी थी। पांच से दस मिनट के भीतर सब कुछ सामान्य था। अगर कोई आदमी अब इस उद्घाटन समारोह में पहुंचता तो उसे बिल्कुल ही पता नहीं चलता कि अभी-अभी एक स्टंटमैन यहां ख़ून की उल्टियां कर मर गया है। स्पॉट डेड।
मेरे हाथ में एक बढ़िया सा डिजिटल कैमरा था। जिससे बहुत दूर की तस्वीरें भी साफ आती थी। मैंने एक फोटोग्राफी की किताब भी ख़रीदी थी, जो किसी और को देने के लिए थी। तब तक उसे पढ़-पढ़कर मैं जहां-तहां की फोटो खींचता फिर रहा था। इतने बड़े मॉल का उद्घाटन था। तो मुझे वहां जाना ज़रूरी लगा। एकदम नए तरह के एडवेंचर गेम्स वाला शहर का पहला मॉल बना था। ख़ूब भीड़ थी। स्टंटमैन रस्सी में झूलता हुआ लोगों को सलाम कर रहा था। लोग वॉउ वॉउकरते जा रहे थे। कुछ लड़कियां रिदम में तालियां बजा रही थी। उस स्टंटमैन का जोश बढ़ता जा रहा था। फिर उसने रैपलिंग (रस्सियों का एक तरह का करतब) के कुछ बेजोड़ नमूने दिखाए। हवा में कई सेकेंड्स तक लटका रहा। वो नीचे से जंप लेता तो रस्सियों में टंगा आसमान तक पहुंच जाता। हो सकता है, उतनी ऊंचाई से उसे शहर के बाहर अपना गांव भी दिखता हो। लोग सीटियां बजा रहे थे। मैं तस्वीरें लेता जा रहा था। कभी लोगों की तो कभी उस स्टंटमैन की। सबसे अच्छी तस्वीर वही थी जो उसकी मौत से ठीक पहले खींची गई थी। एकदम दोनों हाथ आज़ाद फैले हुए और चेहरा मुस्कुराता हुआ। फिर अचानक वो मॉल की सबसे ऊंचे तल्ले से नीचे आने लगा। शायद उसे अंदाज़ा नहीं था कि नीचे आते-आते रस्सियां ख़त्म हो गई थीं या फिर वो सीटियों और तालियों के जोश में एक मंज़िल ऊपर तक चला गया था। ठीक उसी वक्त की तस्वीर थी वह। एकदम ईसा मसीह वाली मुद्रा थी। फिर वो ज़मीन पर आ गिरा। मर गया।
टीवी पर तो ख़ैर इस तरह की छोटी ख़बरें आती नहीं, इसीलिए मैंने आज चार अख़बार ख़रीदे हैं। मैंने सारे अख़बार पलट लिए हैं, कहीं उसकी कोई जानकारी तक नहीं है। कोई नहीं जानता कि उसके कितने बच्चे थे। उसकी बीवी किसी के साथ भाग गई या अब तक घर में चूड़ियां तोड़ रही है। मेरा ख़याल है कि उसकी बीवी को तुरंत कहीं भाग जाना चाहिए। नैतिकता का ख़याल किए बिना। एक औरत की नैतिकता तो तब तक ही अच्छी लगती है, जब तक उसका पति उसे इसके नंबर देता रहे। तस्वीर में दिख रहे उस स्टंटमैन की उम्र के हिसाब से उसकी बीवी की उम्र का अंदाज़ा लगाकर यही कह सकता हूं कि वो एकदम जवान रही होगी। एकाध बच्चे हो गए होंगे तो भी ताज्जुब नहीं। वो रोज़ अपने बच्चों के दूध में से थोड़ा बचाकर अपने पति को पिला देती होगी क्योंकि उसका काम जोखिम भरा है। पता नहीं उसने कभी मॉल देखा होगा या नहीं। मॉल देखा भी हो तो पति को बहादुरी भरे जोखिम उठाते देखा होगा कि नहीं। कैसे वो अपनी जान पर खेल कर सब उदास लोगों को मुस्कुराहट से भर देता है। और लड़कियां रिदम में सीटियां बजाती हैं। उसकी बीवी को तो सीटियां बजाना भी नहीं आता होगा। लेकिन, अब जब स्टंटमैन मर चुका है तो लोग उसके घर के बाहर सीटियां बजाएंगे। चूंकि वो जवान होगी, तो उसके साथ कुछ लोग भाग जाने का मन भी बनाएंगे।

शहर के जिस किनारे पर यह मॉल बना है वहां पहले बहुत झुग्गियां हुआ करती थीं। ऐसा नहीं कि झुग्गियों वाले लोग ही अब अमीर हो गए मगर अब यहां बहुत अमीर लोग रहते हैं। ज़ाहिर सी बात है कि ऐसे सभ्य लोगों के बीच कोई मॉल बने तो कोई केंद्रीय मंत्री ही उद्घाटन करेगा। कोई गांव का मंदिर या पुस्तकालय तो है नहीं कि किसी ग़रीब की चाची या स्कूल का हेडमास्टर आकर फीता काट दे। तो जिस वक्त ये हादसा हुआ केंद्रीय मंत्री जी वहां मुस्कुराते हुए खड़े थे। मंत्री जी को मुस्कुराने का बहुत शौक था, इसीलिए मुस्कुराते रहते थे। ये वही मंत्री थे, जिन्हें एक बार किसी टीवी के कैमरे ने तब फैशन शो में मुस्कुराते हुए पकड़ लिया था, जब मुंबई में बम धमाके हुए थे और तेरह लोग मारे गए थे। इस मॉल में वो फिल्मी सितारे भी आए थे, जिन्हें बुरी फिल्मों में भी मुश्किल से रोल मिलते थे। सयाली नाम की कोई कलाकार भी थी जिसके बारे में मेरी जानकारी उतनी ही है, जितनी अपनी बुआ की सबसे छोटी लड़की के बारे में जो बनारस में किसी लड़के के साथ भाग गई थी और उसके पांव भारी होने की अफवाह के बाद बुआ ने खु़दकुशी कर ली। लेकिन, सयाली के बारे में उस मॉल में मौजूद लोगों का सामान्य ज्ञान मुझसे कहीं बेहतर था। वो सयाली को इतना नज़दीक से देख लेना चाहते थे कि जैसे किसी ग़रीब गांव में पहली बार हैंडपंप लगा हो। सयाली उन्हें हंसकर देख रही थी तो वहां के लोग इतने संतुष्ट दिख रहे थे जैसे जैसे आरओ फिल्टर से छना हुआ पानी पीकर तृप्ति मिलती है।

मॉल का पहला दिन था इसीलिए हर ओर सेक्यूरिटी के लिहाज से वर्दी में पर्याप्त गार्ड मौजूद थे। मगर, मेरा अनुमान है कि ज़्यादातर इस वक्त कलाकारों की भीड़ की तरफ ही खड़े थे। स्टंटमैन की मौत ठीक इसी वक्त हुई थी, और उसके आसपास सुरक्षा की ज़िम्मेदारी जिस टीम की थी, वो या तो फिल्मी कलाकारों के आसपास घूम रहे होंगे या फिर केंद्रीय मंत्री जी की कार के आसपास खड़े होंगे।   

जब स्टंटमैन मरा तो मंत्री जी मॉल के मैनेजर की पत्नी के हाथ से मीठा पान खा रहे थे। उन्हें यूं मीठा पान खाना बहुत पसंद है। वो बहुत ज़ोर से खिलखिलाकर हंसे थे और उनके मुंह से पान की पीक उनके सफेद कुर्ते पर आ गिरी थी। मॉल मैनेजर की पत्नी ने झट से अपनी साड़ी हाथ में लेकर उनके कुर्ते पर पड़ी पीक साफ की थी। मंत्री जी ने सो नाइस ऑफ यू कहा था और मैनेजर ने अचानक खड़े लोगों को झुंझलाते हुए थोड़ा-पीछे हटने को कहा था। ठीक इसी वक्त स्टंटमैन पूरे जोश में और ऊपर की तरफ उछला था और नीचे उसकी लाश ही लौटी थी। मंत्री जी ने पूरा का पूरा पान निगल लिया था और जल्दी से अपनी गाड़ी में वापस लौटने को चल दिए थे। मॉल मैनेजर स्टंटमैन की लाश की तरफ जाने के बजाय मंत्रीजी की तरफ भागा था मगर उसे एक गंदी गाली मिली थी।
टीवी कैमरे आधा-आधा झुंडों में बंट कर लाश और मंत्रीजी की गाड़ी की तरफ लपके थे।

इधर सब कुछ सामान्य हो गया था। लाश के आसपास से सब कुछ धो-पोंछ कर साफ किया जा चुका था। स्टंटमैन की डेड बॉडी एंबुलेंस में लादकर मॉल से बाहर कर दी गई थी। रिदम वाली तालियां थोड़ी देर चुप रही थीं, मगर फिर एक नए स्टंटमैन ने माहौल संभाल लिया था। माहौल ऐसे बदल गया था जैसे कोई चिड़िया पंखे से टकराकर घर में मर जाती है और उसके बाहर फेंके जाने तक मायूस दिख रहे घर के लोग अचानक अपने रूटीन पर लौट आते हैं। मॉल में मौजूद पत्रकारों और पुलिस अधिकारियों को मैनेजर की पत्नी तुरंत फूड स्टॉल की तरफ लेकर गई थी। वहां खाने (और पीने) का इतना बढ़िया इंतज़ाम था कि इसके बाद किसी गदहे को ही मॉल के भीतर सुरक्षा इंतज़ाम में कोई चूक नज़र आती। लोग थालियां हाथ में लिए मॉल की तारीफ में लंबे-लंबे वाक्य कह रहे थे। साथ ही ये भी कह रहे थे कि स्टंटमैन ने आज थोड़ी ज़्यादा ही दारू पी रखी थी, इसीलिए कंट्रोल छूट गया। एक अख़बार वाले ने ये भी कहा था कि उसकी बीवी देखने में बहुत ख़ूबसूरत है, मगर पति के आने से पहले घर का दरवाज़ा तक नहीं खोलती।

अंदर सयाली नाम की वो कलाकार भी किसी स्टंट को करने के चक्कर में बैलेंस खोकर घायल हो गई थी। एक गोल-गोल घूमनेवाली गाड़ी थी, जो हाथ छोड़कर चलाने में इधर-उधर लहराने लगती थी। इसी स्टंट के चक्कर में सयाली ने जैसे ही हाथ छोड़ा, वो गाड़ी से बाहर गिर पड़ी और गाड़ी के नीचे आ गई। मगर, जैसा मैने पहले ही बताया वहां तमाम तरह के सेक्यूरिटी गार्ड्स से लेकर जवानों की टीम मौजूद थी। तो उसे तुरंत संभाल लिया गया। खाना छोड़कर कुछ पत्रकार उधर भागे थे, मगर तब तक सयाली भी मॉल से बाहर जा चुकी थी। फिर वो अपनी जूठी थालियों की तरफ लौट आए थे।

तो कुल मिलाकर घटना ये हुई थी कि दिल्ली से सटे नोएडा शहर में एक नया मॉल उस जगह खुला था जहां पहले झुग्गियां और फिर एक श्मशान हुआ करता था। उसी मॉल के उद्घाटन समारोह में एक स्टंटमैन करतब दिखाने के लिए सुबह से ही तैयार बैठा था। स्टंट शुरू होते-होते भीड़ बहुत ज़्यादा बढ़ गई थी। एक केंद्रीय मंत्री जो अक्सर इस तरह के चकाचक कार्यक्रमों में जाने के आदी थे, पहुंच गए थे। एक फिल्म कलाकार जिसे पिछले कुछ सालों से किसी ने पर्दे पर देखा नहीं था, वो भी यहां आई थी। इन सबके बीच पंद्रह हज़ार सात सौ रुपये मासिक सैलरी कमाने वाले उस स्टंटमैन की एक तस्वीर मैंने खींची थी जो उसकी मौत से ठीक पहले की थी। उस तस्वीर में वो एकदम ईसा मसीह की तरह सलीब पर लटका नज़र आ रहा था। भीड़ वाले शहर पर बेफिक्र  मुस्कुराता हुआ। अरबों रुपये फूंक कर तैयार हुए इस शानदार मॉल में मौत से ठीक पहले  मुस्कुराते हुए उस आदमी के नीचे की ज़मीन पर अगर गद्दे बिछे होते तो वो बच भी सकता था। शहर की सबसे महंगी दुकान से भी गद्दे ख़रीदे जाते तो पंद्रह हज़ार सात सौ रुपये तक में आ ही जाते। लेकिन, इन पैसों का इससे ज़्यादा ज़रूरी इस्तेमाल मॉल के बुद्धिजीवी प्रबंधन ने किया था। उन्होंने यहां आने वाले सभी प्रेमी जोड़ों के लिए ख़ूब सारे नकली फूलों वाले गुलदस्ते और बच्चों के लिए टॉफियां मंगवा ली थीं।

इसके ठीक बाद उस फिल्म कलाकार के नाज़ुक शरीर पर थोड़ी सी चोट आई थी, जिसकी तस्वीर भी मेरे कैमरे में आ गई थी। मैं इस हादसे के वक्त वहां मौजूद दो-तीन  अख़बारों के स्टाफ को भी पहचानता था। स्टंटमैन की मौत के वक्त वो किसी दूसरे काम में बिज़ी रहे होंगे, इसीलिए मैंने अपने कैमरे की तस्वीर उन्हें इस उम्मीद पर दी थी कि कम से कम तीन कॉलम की एक ख़बर उस स्टंटमैन की फोटो के साथ ज़रूर आएगी।

शनिवार को मैंने शहर के सारे अख़बार ख़रीद लिए थे। अधिकतर अख़बारों में इस तरह की कोई ख़बर नहीं थी जिसमें किसी मॉल के भीतर किसी के मरने का ज़िक्र हो। एक अख़बार में सयाली की तस्वीर के साथ दो कॉलम की छोटी-सी ख़बर बनी थी। आप इसे स्टंटमैन की दुखद मौत की कवरेज समझ सकते हैं। ख़बर में लिखा था, गुडफ्राइडे की शाम नोएडा के रिहायशी इलाके में बने सबसे ख़ूबसूरत मॉल में बॉलीवुड की उभरती हुई मशहूर और ख़ूबसूरत अदाकारा सयाली गंभीर रूप से घायल हो गईं। उनकी दाहिनी हथेली में खरोंच आई है और कोहनी भी छिल गई है। बचपन से ही हिम्मती और दिलेर सयाली यहां मॉल के उद्घाटन समारोह के दौरान एक स्टंट करने के दौरान घायल हुई और उन्हें चाकचौबंद मॉल प्रबंधन ने तुरंत अस्पताल शिफ्ट कर दिया। बताया जा रहा है कि इस मॉल में स्टंट का ज़िम्मा देख रही टीम ने लापरवाही से इंतज़ाम किए थे। ख़बर है कि प्रैक्टिस के दौरान एक स्टंटमैन की मौत भी हो गई। पुलिस ने मामला दर्ज किया है और अंदेशा जता रही है कि स्टंटमैन नशे में धुत था और मॉल प्रबंधन के लाख रोकने के बावजूद स्टंट करने पर उतारू हो गया क्योंकि उसे उम्मीद थी कि केंद्रीय मंत्री की मौजूदगी में अगर मॉल प्रबंधन को उसने खुश कर दिया तो उसे बड़ी प्रोमोशन मिल सकती है।
गुड फ्राइडे बीत चुका है। आज इतवार है, ईस्टर है। यीशु के धरती पर दोबारा जन्म का पर्व। मैं फिर से उस स्टंटमैन की आख़िरी तस्वीर को ग़ौर से देखता हूं। पता नहीं क्यों मुझे अचानक लगता है कि जैसे वो डर के मारे थोड़ी बस थोड़ी देर के लिए लेटकर मरने की एक्टिंग कर रहा है और फिर तुरंत खड़ा होकर स्टंट करने लग जाएगा। उसकी बीवी ने उसके लौटने के इंतज़ार में अब तक दरवाज़ा नहीं खोला होगा। और बंद दरवाज़े के भीतर अगर अख़बार आया भी होगा तो उसमें किसी स्टंटमैन के मरने की ख़बर होगी ही नहीं। मलमल के पन्नों पर छपे बड़े अख़बारों में इतनी छोटी ख़बरें नहीं छपा करतीं।

निखिल आनंद गिरि

3 टिप्‍पणियां:

  1. मैडम ज़रा जो फिसली, मददगार थे कई
    बुड्ढ़े की मोच से है किसे वास्ता कोई

    बाकी १०१ पोस्ट वाली यात्रा निकल चुकी है ..आप क्लिक करके पहुँचिये...

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  2. कहानी कहने की अनोखी शैली... जिसमें विस्तार और सारांश एक के बाद एक आते रहते हैं..

    पूरी कहानी एक फ्लो में पढ ली मैंने.. और कहानी में छुपे दर्द और व्य़ंग्य को बारीकी से महसूस भी किया।

    बस एक शिकायत है.. "एक औरत की नैतिकता तो तब तक ही अच्छी लगती है, जब तक उसका पति उसे इसके नंबर देता रहे।"- इस अंश का कहानी के संदर्भ में औचित्य नहीं समझ पाया...

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  3. बहुत ज्यादा मैं क्या कहूँ, पढने के बाद एक बार फिर वाह-वाही निकली आपके लिए. बहुत देर तक मन कई सवालों के बौछारों से घिरा रहा. वैसे यह पढने के बाद बहुत हद तक विश्व दीपक जी जैसे विचार ही आये, उन्ही का समर्थन करता हूँ. वो ही सुन्दर शब्द आपके लिए, उसी प्रश्न के साथ.

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