कौन कहता है कि बालेश्वर यादव गुज़र गए....बलेसर अब जाके ज़िंदा हुए हैं....इतना ज़िंदा कभी नहीं थे मन में जितना अब हैं....मन करता है रोज़ गुनगुनाया जाए बलेसर को....कमरे में, छत पर, नींद में, सड़क पर, संसद के सामने, चमचों के कान में, सभ्य समाज के हर उस कोने में जहां काई जमी है...आज, कल, परसों, बरसों....इंटरनेट पर शायद ही कहीं बलेसर के वीडियो उपलब्ध हैं...मुझे चैनल के लिए आधे घंटे का प्रोग्राम बनाने का मौका मिला था, तो उनके कुछ वीडियो मऊ से मंगाए गए, जहां के थे बलेसर....वो अपलोड कर पाऊंगा कि नहीं, कह नहीं सकता मगर, इन गीतों के बोल डेढ़ घंटे बैठकर कागज़ पर नोट किए.....हो सकता है, लिखने में कुछ शब्द गच्चा खा रहे हों, मगर जितना है, वो कम लाजवाब नहीं....भोजपुरी से रिश्ता रखने वाले तमाम इंटरनेट पाठकों के लिए ये सौगात मेरी तरफ से....जो भोजपुरी को सिर्फ मौजूदा अश्लील दौर के चश्मे से देखते-समझते हैं, उनके लिए इन गीतों में वो सब कुछ मिलेगा, जिससे भोजपुरी को सलाम किया जा सके....रही बात अश्लीलता की तो ये शै कहां नहीं है, वही कोई बता दे...जिय बलेसर, रई रई रई....
दुनिया झमेले में, दो दिन के मेले में...
दुनिया झमेले में, दो दिन के मेले में...
मेला है मेला बाबू, मेला है मेला...
दो दिन की दुनिया है, दो दिन झमेला..
दो दिन का हंसना है, दो दिन का मेला...
आना अकेला और जाना अकेला...
साथ न जाएगा, गुरु संग चेला
दुनिया ये दुनिया, दो दिन की दुनिया...
दो दिन की दुनिया में लड़े सारी दुनिया...
दुनिया झमेले में, दो दिन के मेले में...
हिटलर रहा नहीं, न रहा सिकंदर..
दारा रहा नहीं, रहा कलंदर...
राम रहे नहीं, न रहा सिकंदर....
सब ही को जाना है, दो दिन के अंदर..
कोई रहेगा ना, कोई रहा है...
बेद-पुरान में ये ही कहा है...
दुनिया झमेले में, दो दिन के मेले में...
मेला है मेला बाबू, मेला है मेला...
कोई ना बोलावे, बस पइसा बोलावे ला..
कोई ना नचावे, बस पइसा नचावे ला...
देस-बिदेस, बस पईसवे घुमावेला
ऊंच आ नीच सब पईसवे दिखावेला...
साथ न जाएगा, पईसा ई ढेला
पीड़ा से उड़ जाई, सुगना अकेला....
दुनिया झमेले में...
रोज-रोज-रोज कोई आग लगावेला...
बांटे-बंटवारे का नारा लगावेला
पुलिस, पेसी, मलेटरी जुटावेला,,,
गोला-बारुद के ढेर लगावेला....
रूस से कह दो, हथियार सारा छोड़ दे,
कह दो अमरीका से, एटम बम फोड़ दे...
दुनिया झमेले में....
आजमगढ़ वाला पगला झूठ बोले ला...
समधी के मोछ जइसे कुकुरे के पोंछ साला झूठ बोले ला...
समधिनिया के बेलना झूठ बोले ला...साला झूठ बोले ला..
समधिनिया के पेट जइसे इंडिया के गेट, साला झूठ बोले ला...
अलीगढ़ वाला बकरा झूठ बोले ला...
अरे झूठ बोले ला...साला झूठ बोले ला...
बभना के कईले धईले, कुछहु न होले जाला-2,
धोबिया के अइले गइले, चले लाठी भाला, साला झूठ बोले ला...
कलकत्ता वाला चमचा, झूठ बोले ला....
अपने त बोले, साला हमके न बोले देला-2
तीनों चारों भाई-बाप, सर्विस कुर्ता वाला, साला झूठ बोले ला...
बिना मोछ वाला मोटका, झूठ बोले ला...
बाहर बिलार, घर में शेर का शिकार करे-2
हमरी कमाई बैला, बैठल-बैठल खाला, साला झूठ बोले ला...
ई चवन्नी छाप हिजरा, झूठ बोले ला...
कल-करखाना, साला टिसनो से बोले-बोले-2
खाया है माल. किया लाखों का दीवाला, साला झूठ बोले ला..
नई दिल्ली वाला गोरका झूठ बोले ला...
दिल का है काला साला, बगुला के चाल चले-2
बिदेसी दलाल है, कमाया धन काला, साला झूठ बोले ला...
समधिनिया के बेलना झूठ बोले ला...
श्यामा गरीब के, सोहागरात आई आई..
श्यामा औसनका के, सोहागरात आई आई..
जे दिन ‘बलेसरा’ पाएगा, ताली-ताला, साला झूठ बोले ला...
आजमगढ़ वाला पगला झूठ बोले ला...
हिटलरशाही मिले, चमचों का दरबार न मिले...
ए रई रई रई...
दुश्मन मिले सवेरे, लेकिन मतलबी यार ना मिले...
दुश्मन मिले सवेरे...
कलियन संग भंवरा मिले, बन मिले बनमाली...
ससुरारी में साला मिले, सरहजिया और साली...
तिरिया गोरी हो या काली, लेकिन छिनार ना मिले...
हाथी मिले, घोड़ा मिले; मिले कोठा-कोठी...
सोना मिले, चांदी मिले, मिले हीरा-मोती...
ईंटा-पत्थर मिले, नीच कली कचनार ना मिले...
सागर से जा मिले सुराही, धरती से असमान,
होली से जा मिले दीवाली, मिले सूरज से चांद,
मरदा एक ही मिले, हिजरा कई हजार ना मिले....
सरबन अइसन बेटा मिले, मिले भरत सा भाई,
मोरध्वज सा पिता मिले, मिले जसोदा माई...
पांचो पंडा मिले, कौरव सा परिवार ना मिले...
चित्तू पांडे, मंगल पांडे, मिले भगत सिंह फांसी..
देस के लिए जान लुटा दी, मिले जो लोहिया गांधी...
हिटलरशाही मिले, चमचों का दरबार ना मिले...
बांझिन को जो बेटा मिले, मिले भक्त को राम,
प्रेमी संग में श्यामा आ मिले गुरू से ज्ञान..
मूरख मिले ‘बलेसर’, पढ़ा-लिखा गद्दार ना मिले....
दुश्मन मिले सबेरे, लेकिन मतलबी यार ना मिले...
कुछ सस्ता शेर
बुढापा के सहारा, लाठी-डंडा चाहिए...
जवानी में लड़की को लवंडा चाहिए...
और ये भी...
सासु झारे अंगना, पतोहिया देखे टीभी....
बदला समाज, रे रिवाज बदल गईले...
भईया घूमे दुअरा, लंदन में पढ़े दीदी....
सासु झारे अंगना, पतोहिया देखे टीभी....
अगर गीत अच्छे लगे हों तो ये भी बताइए कि ढोल-मंजीरे के साथ कब बैठ रहे हैं खुले में....मिल बैठेंगे दो-चार रसिये तो जी उठेंगे बलेसर
निखिल आनंद गिरि