आईने ने जब से ठुकराया मुझे
हर कोई पुतला नज़र आया मुझे।
रौशनी ने कर दिया था बदगुमा,
शाम तक सूरज ने भरमाया मुझे।
ऊबती सुबहों के सच मालूम था,
रात भर ख़्वाबों ने बहलाया मुझे।
मैं बुरा था, जब तलक ज़िंदा रहा
' अच्छा था ' ये कहके दफ़नाया मुझे।
जब शहर के शोर ने पागल किया
खिलखिलाता चांद याद आया मुझे।
ख़्वाब टूटे, एक टुकड़ा चुभ गया
देर तक नज़्मों ने सहलाया मुझे।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में गुरुवार 16 अक्टूबर 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएं