रविवार, 29 दिसंबर 2024

आने लगी हैं इन दिनों हिचकियां बहुत

कोई भरे है मेरे लिए सिसकियां बहुत
आने लगी हैं इन दिनों हिचकियां बहुत

आपका ही क़द मुझे मुझसे बड़ा मिला 
वरना तो मिलता ही रही हस्तियां बहुत

जब से असल में शेर की दहाड़ देख ली
गदहे भी ले रहे हैं अब मुरकियां बहुत

वो आंसुओं की ओस में भीगते मौसम
ये तन्हा, बेसुवाद, अजब सर्दियां बहुत

ये कौन है जो शहर को वीरान कर गया
हिलती रही हवाओं से भी खिड़कियां बहुत

जोकर तो हंसाता रहा वोट मांग कर
बस्ती में कैसे उठ रही चिंगारियां बहुत


निखिल आनंद गिरि

1 टिप्पणी:

  1. हरेंद्र आज़ादसोमवार, 30 दिसंबर, 2024

    आजकल सिसकियां शोर में दब जाती हैं
    पता नहीं उन्हें हिचकियां कब आती हैं

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