रविवार, 1 दिसंबर 2024

राष्ट्रपति

'हम घर के लिए चुनते हैं 
पैर पोंछने की चटाई
तब भी गिन-परख कर पोंछते हैं।

ककरी ख़रीदने पर भी देखते हैं
ज़रा-सा चख कर
कोई तीतापन तो नहीं आ गया झोले में।

बेकार चीज़ों को घर से दूर
फेंक आते हैं कहीं।

नदी में जहां ज़रा-भी मैला हो पानी
हथेली से दूर कर देते हैं
उतरने से पहले।

और राष्ट्रपति ऐसे चुनते हैं 
जैसे बकरीद पर चांपने के लिए 
पालते-पोसते हों बकरी।

जैसे चुनते हों कान साफ करने के लिए
सबसे कमज़ोर लकड़ी।
सुनो जनगण सुनो'

(यहां 'राष्ट्रपति' की जगह 'वाईस चांसलर' या राज्यपाल या कोई और लाभ का पद भी पढ़ सकते हैं)


निखिल आनंद गिरि

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर कुछ कहिए प्लीज़

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

कीमोथेरेपी: शोक और यथार्थ

कवि मित्र अंचित ने जर्नल इंद्रधनुष पर कुछ दिन पहले मेरी कुछ कविताएं पोस्ट की थीं जिस पर एक सुधी पाठिका की विस्तृत टिप्पणी आई है। कीमोथेरेपी...