शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024

नन्हें नानक के लिए डायरी

जो घर में सबसे छोटा होता है, असल में उसका क़द घर में सबसे बड़ा होता है। जैसे सबसे छोटा बच्चा पूरे घर की धुरी होता है।

ये पोस्ट मेरे दो साल के बेटे को देखकर मन में जगी। क्या उसे याद भी रहेगा कि जैसे उसके उठने से लेकर सोने तक उसकी 70 साल की दादी उसके साथ बच्चा बनी फिरती है।

कैसे उसके 76 साल के दादा, नहीं चल पाने की तमाम मजबूरियों के बीच भी उसके साथ थोड़ी देर ज़रूर चलना चाहते हैं। 

मेरे होने को लेकर वो इतना खुश होता है कि दुआ करने का मन होता है कि उसे कभी मां की कमी खले ही नहीं। सोना, रोना, रूठना, मान जाना सब मुझ पर आकर ख़त्म हो जाता है।

पूरे घर के अकेलेपन को उसने अपनी किलकारियों से भर दिया है। वो कहता है कि कबूतर थूकता है तो हमें लगता है ये क्या पारखी नज़र से अपनी भाषा और समझ गढ़ रहा है। वो अपनी साइकिल को चलाता नहीं, उसमें खड़ा होकर सब कमरों का सफर करता है तो लगता है साइकिल चलाने का सिर यही तरीका हो सकता था।

लोई, जो उससे कम से कम आठ साल बड़ी है, उसके बाल वो इस हक़ से खींचता है कि डांटते हुए भी प्यार आता है। जब डांटा तो कहेगा अब नहीं खींचेगा,जैसे ही डर गया फिर आकर कहेगा "खींचूंगा"। परेशान लोई भी उसकी इस अदा पर हंस पड़ती है।
ये डायरी इसीलिए ज़रूरी है कि समय की आपाधापी में जब हम ये लम्हे भूलने लगें तो पलट कर देखने से लगे कि दुनिया कितनी मासूम होकर भी जी जा सकती है।


निखिल आनंद गिरि

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