1.
यह आराम कुर्सी है जहां
न मन को आराम है, न तन को
यहां ज़हर धीमे धीमे नसों में उतरेगा
न सो सकेंगे, न जागने की इच्छा होगी
अगल बगल सब इसी कुर्सी पर आराम से
मरने की तैयारी में हैं
सारी दुनिया ने अपना बीमा करवा रखा है।
2.
यह पुराना मरीज़ है
वह नई नर्स है
उसे ढूंढने पर भी नस नहीं मिलती
वह यहां वहां सुई के सहारे
ढूंढ रही है सही जगह
उसे आदमी या बीमारी से कोई मतलब नहीं
उसे एक नस चाहिए
दवा का नाम कुछ भी हो
तकलीफ़ एक जैसी है
नर्स की मुस्कुराहट भी।
3.
वह भली औरत है
गांव से बीमारी लेकर आई है
कीमो या मोमो उसके लिए एक समान है
वह किसी संबंधी से पूछती है
कीमोथेरेपी को हिंदी में क्या कहते हैं
इसका जवाब किसी के पास नहीं है
यह बीमारी हमारी भाषा में
बदल जाती है एक राशि में
और इलाज एक अंतहीन उदासी में।
4.
यहां मृत्यु की बोली लगती है -
"कुछ दिन
कुछ हफ्ते
महीने या कभी कभी एकाध साल"
डॉक्टर की आंखें सबसे झूठी आंखें हैं
वहां दिलासा है, कोई आशा नहीं।
वह बताएगा सच्ची झूठी कहानी
कि कैसे कोई मरीज़ दो हफ्ते की उम्मीद पर आया
और दो साल तक चला।
आप इस उम्मीद पर निसार होकर
अपनी दो साल पुरानी ब्याहता को
कीमो की तरफ ले चल पड़ेंगे।
5.
सभी मरीज़ टीवी पर कोई कॉमेडी फिल्म देख रहे हैं
फिर "गुड न्यूज़" टुडे
फिर "लाइफ ओके"
यह विडंबनाओं का वेटिंग रूम है
जहां से आप अपने बाईसवें, चालीसवें या पचासवें
कीमो के लिए कतार में हैं।
शुक्र मनाइए कि अब भी संसार में हैं।
6.
सब रिश्तेदार वहां जल्दी में हैं
पार्किंग, बिल, टेस्ट, ओपीडी, सर्जरी..
कुछ देर के लिए भूलना होता है स्वजन का चेहरा
लाइन में खड़े खड़े छिपाने होते हैं आंसू
सबकी आंखें वहां भीगी हुई हैं
हाल चाल कोई नहीं पूछता
सब गीली आंखों से पूछते हैं
"कितना समय बाकी है?"
7.
मैं एक शानदार केयरटेकर रहा
उछल उछल कर कभी इस फ्लोर
कभी उस फ्लोर
डॉक्टर के गेट पर खड़ा लड़का मेरे गांव का निकला
ओटी में फाइल ले जाने वाला जात का
हर जगह मेरी चालाकियों ने समय बचाया
हम कीमो के बाद लौटा थोड़ा और जल्दी घर
जहां चार साल की बेटी
बासी भात और चिप्स के सहारे
करती रही लौटने का इंतज़ार ।
8.
गूगल न ग्राम देवता थे, न कुल देवता
फिर भी हर प्रार्थना
मैंने गूगल के सहारे की
कोरोना बड़ी बीमारी या कैंसर?
कौन से स्टेज तक बीमारी में उम्मीद बाक़ी?
जब देश में होगा लॉकडाउन
तब यही गूगल बताएगा
कीमोथेरेपी के लिए सुरक्षित
पहुंचने के रास्ते
फिर एक दिन गूगल ने बताया
वह जानकारी दे सकता है, जीवन नहीं।
9.
दुनिया जब लहराते बालों में नायक ढूंढती थी
यहां तक कि सफेद दाढ़ी में भी
कवि जब लहराती जुल्फों में ढूंढते थे
प्यार की असीम संभावनाएं
कीमोथेरेपी ने सिखाया
उखड़ते नाखून, पिचकते गाल
झड़ते हुए बालों में भी सुंदर है जीवन
10.
दुनिया कहां से कहां चली गई
सरकारें पलक झपकते बदलीं,
एक और नया कथावाचक मिला हिंदुओं को
गोलियां चली गाय के नाम पर
एक नायक की फिल्म पिट गई
मेट्रो ट्रेन भी देरी से पहुंची
समय से हुआ तो बस एक के बाद
दूसरा चक्र कीमोथेरेपी का
आज दवा उर्फ़ ज़हर चढ़ेगा
परसों बुखार आएगा, फिर सुई लगेगी
प्लेटलेट गिरेंगे, मरीज़ भी कभी कभी
फिर आ जायेगा अगले कीमो का नंबर
दुनिया एक कीमो से दूसरी कीमो साइकिल तक
पहुंची एक अंधी सुरंग से ज़्यादा कुछ नहीं।
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