लेखक-पत्रकार अनिल यादव उत्तर-पूर्व पर लिखे गए अपने यात्रा संस्मरण ‘वह भी कोई देस है महराज’ में असम के एक आदिवासी समुदाय का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं कि साल 2000 के दौरान जब कौन बनेगा करोड़पति लांच हुआ था तो इस प्रोग्राम में शामिल होने के लिए वहां के पीसीओ बूथ पर लंबी-लंबी लाइनें लगती थीं। उन लाइनों में गांवबूढ़ा (आदिवासी गांव का मुखिया) से लेकर पीठ पर बस्ते लटकाए स्कूली बच्चे भी किस्मत आज़माने के लिए शामिल रहते थे। उन्हीं लाइनों में अपने बेटे को खोजते साइकिल पर बांस की लंबी टहनियां (कईन) लादे एक आदिवासी ने अपने बेटे को वहां पाकर खीझते हुए विलाप किया ‘जो अपने घर में लगी आग बुझाने के बजाय उस घोड़मुंहे अजनबी (अमिताभ) के साथ जुआ खेलने जा रहा हो उसके बाल-बच्चों के मुंह में तो भगवान भी दाना नहीं डालेगा।‘ उस आदिवासी का गुस्सा सिर्फ अपने बेटे पर नहीं था बल्कि उस घोड़मुंहे अजनबी पर भी था जो अपने जादुई आकर्षण के नाम पर सुदूर असम के ग़रीब नौजवानों को भी भरमाए जा रहा था। ये सिलसिला आज भी जारी है। एक करोड़ की इनाम राशि से शुरु हुआ ये कार्यक्रम अब सात करोड़ का ‘महाकरोड़पति’ बना रहा है। बीसवीं सदी का महानायक अब इक्कीसवीं सदी में भी उसी तमगे को ढो रहा है और उन पर दांव खेलने वालों को अरबपति बनाए जा रहा है। ठीक से याद नहीं कब दीमापुर के किसी आदिवासी ने इस खेल से अपनी किस्मत संवारी हो। चौदह सवालों के खेल में ‘आलिया भट्ट को इन विकल्पों में किसने चुंबन लिया’ जैसे सवाल भी शामिल होते हैं। अमिताभ बच्चन अपनी अदायगी, अपनी चुप्पी में इतने प्रेडिक्टेबल होते जा रहे हैं कि उनका हर अंदाज़ एक दोहराव जैसा लगता है। हर हफ्ते इस शो का एक एपिसोड किसी नयी रिलीज़ होने वाली फिल्म से लेकर कॉमेडी शो, कपिल शर्मा, हनी सिंह जैसों के लिए प्रोमोशन का काम भी करता है जिसमें महानायक इनके साथ ठुमके लगाते हैं, टी.वी. देखने वाली आबादी का एक घंटे तक रसरंजन करते हैं और ख़ूब पैसे कमाते हैं।
मीडिया और बाज़ार ने महानायकों की परिभाषा इतनी विकृत और आसान कर दी है कि राह चलता कोई भी महानायक बन सकता है। इन छवियों को वो गले में लटकाए घूमते हैं और हम उन पर आंख मूंदे अपना भरोसा करते हैं। इमेज यानी छवियों का यही खेल राजनीति से लेकर मीडिया, यहां तक कि अपराध जगत में भी महानायक बनाता है जिससे समाज का फायदा कम नुकसान ज़्यादा होता है। पप्पू यादव से लेकर डीपी यादव तक सब इसी इमेज के सहारे आज भी महापुरुष बनने की फिराक में लगे हुए हैं। ये मज़ाक नहीं तो और क्या है कि इलाज के नाम पर जेल से निकलकर कोई रसूख वाला आदमी हरियाणा में चुनाव प्रचार करे और कोई उफ्फ तक न करे। अमिताभ बच्चन की अभिनय क्षमता पर शायद ही किसी को शक हो, मगर इतने लंबे सामाजिक जीवन के बाद उम्र के सातवें दशक उन्हें इस बात का हिसाब ज़रूर करना चाहिए कि उन्होंने अपनी आड़ में कितने अघोषित अपराध किए या करवाए हैं। एक ज़िम्मेदार वरिष्ठ नागरिक के तौर पर उन्हें उन सभी दुष्प्रचारों के लिए माफी मांगनी चाहिए जिससे जनता दिग्भ्रमित होती रही है। देश उनके लिए दुआएं करता है तो देश के प्रति इतनी ज़िम्मेदारी तो बनती ही है। ऐसा किसी किताब में लिखा भी नहीं कि महानायकों का आत्मचिंतन करना मना हो।
निखिल आनंद गिरि
(11 अक्टूबर को अमिताभ के बर्थडे का एडवांस गिफ्ट)
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