हम-तुम ऐसे रुठे हैं,
जैसे कि मां-बेटे हैं...
सब में तेरा हिस्सा है,
मेरे जितने हिस्से हैं...
मस्जिद भी, मैखाना भी,
तेरी दोनों आंखें हैं...
मंज़िल भी अब भरम लगे,
बरसों ऐसे भटके हैं...
अब जाकर तू आया है,
मुट्ठी भर ही सांसे हैं...
नींद से अक्सर उठ-उठ कर,
ख़्वाब का रस्ता तकते हैं...
वो भी मुझको रोता है !
सब कहने की बातें हैं..
हर शै में तू दिखता है,
तेरे कितने चेहरे हैं?
सागर कितना खारा है
अच्छा है हम प्यासे हैं...
निखिल आनंद गिरि
जैसे कि मां-बेटे हैं...
सब में तेरा हिस्सा है,
मेरे जितने हिस्से हैं...
मस्जिद भी, मैखाना भी,
तेरी दोनों आंखें हैं...
मंज़िल भी अब भरम लगे,
बरसों ऐसे भटके हैं...
अब जाकर तू आया है,
मुट्ठी भर ही सांसे हैं...
नींद से अक्सर उठ-उठ कर,
ख़्वाब का रस्ता तकते हैं...
वो भी मुझको रोता है !
सब कहने की बातें हैं..
हर शै में तू दिखता है,
तेरे कितने चेहरे हैं?
सागर कितना खारा है
अच्छा है हम प्यासे हैं...
निखिल आनंद गिरि
बहुत ही सुंदर पंक्तियां है निखिल जी
जवाब देंहटाएंसागर कितना खारा है
जवाब देंहटाएंअच्छा है हम प्यासे हैं...bhaut hi sundar....
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसागर कितना खारा है
जवाब देंहटाएंअच्छा है हम प्यासे हैं...सुन्दर
:) sundar panktiyan
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