खुशबू के नाम पर हुए सौदे बहार में
छुपना पड़ा गुलों को भी दामाने-ख़ार में
बरसों के बाद टूटा वो तारा फ़लक से रात,
फिर से हुआ सुकून बहुत, इंतज़ार में...
ऐसा भी क्या हुआ कि उसे इश्क हो गया
कुछ तो कमी ही थी मां के दुलार में...
एक रोज़ ख़ाक होंगे सभी जीत के सामान
रखा नहीं है कुछ भी यहां जीत-हार में...
सब रहनुमाओं ने किए अपने पते भी एक
मिलना हो आपको तो पहुंचिए तिहाड़ में...
जिस फूल की तलब में गुज़री तमाम उम्र
वो फूल ही आया मेरे हिस्से, मज़ार में...
निखिल आनंद गिरि
छुपना पड़ा गुलों को भी दामाने-ख़ार में
बरसों के बाद टूटा वो तारा फ़लक से रात,
फिर से हुआ सुकून बहुत, इंतज़ार में...
ऐसा भी क्या हुआ कि उसे इश्क हो गया
कुछ तो कमी ही थी मां के दुलार में...
एक रोज़ ख़ाक होंगे सभी जीत के सामान
रखा नहीं है कुछ भी यहां जीत-हार में...
वहशी हुए तो घर में ही करने लगे शिकार
जंगल से ही उसूल भी लेते उधार में..सब रहनुमाओं ने किए अपने पते भी एक
मिलना हो आपको तो पहुंचिए तिहाड़ में...
जिस फूल की तलब में गुज़री तमाम उम्र
वो फूल ही आया मेरे हिस्से, मज़ार में...
बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने
जवाब देंहटाएं.........शानदार लेखन
जवाब देंहटाएंगज़ब के शेर ……………शानदार गज़ल्।
जवाब देंहटाएंहर शेर हर रंग अलग खुशबू का .... मेरा पसंदीदा
जवाब देंहटाएंजिस फूल की तलब में गुज़री तमाम उम्र
वो फूल ही आया मेरे हिस्से, मज़ार में...
सब रहनुमाओं ने किए अपने पते भी एक
जवाब देंहटाएंमिलना हो आपको तो पहुंचिए तिहाड़ में...
वाह
बहुत बढ़िया शेर| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंशेर भी गज़ब और दीपक बाबाजी का दिया विस्तार भी गज़ब।
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंतिहाड़ वाला शेर बढ़िया पर माँ के दुलार वाला ज़रा ठीक नहीं लगता. क्या कहना है निखिल आप को इस शेर में?
जवाब देंहटाएंमुझे तो ठीक लगता है...बल्कि तिहाड़ वाला ही ज़बरदस्ती डाला गया लगता है बाकी शेरों के बीच...
जवाब देंहटाएंवहशी हुए तो घर में ही करने लगे शिकार
जवाब देंहटाएंजंगल से ही उसूल भी लेते उधार में.
bahut umda ..................saare hi .
धांसूमेंटल!
जवाब देंहटाएंआलोक,
जवाब देंहटाएंकहां से इंपोर्ट कराकर लाए हो ये शब्द...