मंगलवार, 13 सितंबर 2011

पत्थर से कुचल दी जाएं प्रेम कहानियां...

शादियों को लेकर मुझे सिर्फ इस बात से उम्मीद जगती है कि इस दुनिया में जितने भी सफल पति दिखते हैं वो कभी न कभी एक असफल प्रेमी भी ज़रूर रहे होंगे। गलियों में, मंदिरों में या फिर मेट्रो में जाने वाली लड़कियों के चेहरे कभी गौर से देखे हैं आपने। एक-एक चेहरे के पीछे एक दर्जन कहानियां ज़रूर होती हैं। दुनिया का कोई भी वैज्ञानिक अब तक ये डिकोड नहीं कर सका कि लड़की जब खुश है तो क्या सचमुच खुश है या फिर दुखी है तो क्या सचमुच दुखी है। दरअसल, लड़की जब वर्तमान में जी रही होती है तो एक साथ भूत और भविष्य में भी जी रही होती है। और यही वजह है कि अक्सर लड़कों की प्रेम कहानियां चाहे-अनचाहे ठोंगे बनाने के काम आती हैं। 

मुझे लगता है कि बड़ी कंपनियां सिर्फ इसीलिए बड़ी नहीं होतीं कि उनकी सालाना आमदनी बड़ी होती है। कई बार तो सेक्यूरिटी गार्ड का रौब भी कंपनी को बड़ा बना देता है। आप चाहें फलां कंपनी में फलां टाइप ऑफिसर ही क्यों न हों, दूसरी फलां कंपनी में पैदल या रिक्शे उतरकर घुसिए, गार्ड आपको आपकी औकात बता देगा। ये उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं, कंपनी राज में उनकी क़ीमत का नमूना है।

आपने अगर प्रेम किया होगा, तो पत्थर भी देखे होंगे। ये वाक्य अगर दूसरी तरह से बोला जाए तो शायद उतना सच नहीं लग सकता है। मैंने प्रेम किया है और पत्थर भी देखे हैं। यानी प्रेम पहले आपके भीतर से तरल बनाता है, बाहर से सरल बनाता है और फिर जब आप समर्पण की मुद्रा में होते हैं तो पत्थर से कुचल दिए जाते हैं। ये एक ऐसी प्रक्रिया है जिसने दुनिया के सभी मर्दों को भीतर से और मज़बूत बनाया है। मैं अपवाद कहा जा सकता हूं

एक प्रेमकथा सुनाता हूं। छोटी-सी है। शहर के बीचों बीच गांव नाम का एक गांव था जिसमें गांव के अवशेष तक नहीं बचे थे। चूंकि वो शहर था, इसीलिए वहां एक बार प्रेमिका अपने प्रेमी से मिलने आई। और चूंकि वो गांव था इसीलिए प्रेमी के घर बिजली रहती नहीं थी। वो अंधेरे में देख सकने का आदी था, मगर प्रेमिका नहीं थी। वो थोड़ी देर बैठे और एक-दूसरे को चूमने लगे। फिर, प्रेमिका ने एक चाकू प्रेमी की गर्दन पर रख दिया। प्रेमी को अपने ख़ून का रंग साफ दिख रहा था, मगर वो अनजान बना रहा, जब तक उसकी जान नहीं चली गई। हालांकि, प्रेमिका को कोई इल्ज़ाम नहीं दिया जा सकता क्योंकि अंधेरे में उसे कुछ भी दिखाई नहीं देता था। ये सरासर प्रेमी की गलती थी कि उसने अंधेरे में चीखना भी ज़रूरी नहीं समझा क्योंकि उसका ध्यान सिर्फ चुंबन पर था। और अंधेरे में उस चूमने की आवाज़ सुनी जा सकती थी।

निखिल आनंद गिरि

17 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िन्दगी हर पल जी रहे है..साँसें सरलता से ले रहे हैं इसलिए उसका कोई मोल नहीं...मृत्यु को कभी देखा नहीं इसलिए उसकी कल्पना भी खूबसूरत लगती है...कैसी होगी वह..जानने की ललक हर पल हज़ारों सपनों की सैर कराती है... एक पल के लिए सिहरन हुई प्रेमकथा पढ़कर..यही लेखन की सफलता है.

    जवाब देंहटाएं
  2. or ladkon k cheron ko gaur se dekha hai, darjno kahaniya or mathe par shikan tak nahi, kuch apwaad h sakte hain, lekin sach me bahut accha, hum bina ruke ek he saans se pad gaye, bahut khoob.

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. ‎1. kahani apne kathya me uljhi hui hai..
    2. sirf shabdo se khel ke aap stri virodhi hone se nahi bach sakte..
    sirf do baatein...

    (रोहित वत्स, फेसबुक पर)

    जवाब देंहटाएं
  5. शुक्रिया रोहित...उलझी हुई तो है क्योंकि उस वक्त की मानसिक हालत ही कुछ ऐसी थी....और कहानी क्या, आपबीती है....जो चीज़ें जब दिमाग में आती हैं, लिखता हूं...यही तो ब्लॉगिंग का मज़ा है....कि आपको एक विचार के लिए एक पूरी कहानी का इंतज़ार नहीं करना पड़ता...आप कुछ भी लिखिए....पढ़ने लायक होगा, तो पढा ही जाएगा...हां...किसी एक स्त्री के 'खिलाफ' लिखने का मतलब ये नहीं कि मैं स्त्रीविरोधी हूं...

    जवाब देंहटाएं
  6. कहाँ कहाँ से गुजर गया...पर अच्छा था.

    जवाब देंहटाएं
  7. 10 में से छह कमेंट लड़कियों के हैं, जिन्हें मैं ठीक से जानता भी नहीं..(दो मेरे)
    तो रोहित, तुम्हारा 'इल्ज़ाम'फिलहाल ग़लत साबित होता है...
    शुक्रिया पाठिकाओं...

    जवाब देंहटाएं
  8. आज कल आप खतरनाक लिखने लगे हैं।

    (ये तारीफ़ भी है, शिकायत भी)

    जवाब देंहटाएं
  9. मुझे तो शुरू से ही आपसे ईर्ष्या है

    जवाब देंहटाएं
  10. मुझे तो शुरू से ही आपसे ईर्ष्या है

    जवाब देंहटाएं
  11. क्यों कमरुद्दीन साहब..क्यों जलते हैं मुझसे...

    जवाब देंहटाएं
  12. सच के करीब है सर लेकिन पत्थर किसी भी तरफ़ से पड़ सकता है...इतना तो मान लीजिए

    जवाब देंहटाएं

इस पोस्ट पर कुछ कहिए प्लीज़

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

भोजपुरी सिनेमा के चौथे युग की शुरुआत है पहली साइंस फिक्शन फिल्म "मद्धिम"

हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि - कथाकार विमल चंद्र पांडेय की भोजपुरी फिल्म "मद्धिम" शानदार थ्रिलर है।  वरिष्ठ पत्रकार अविजित घोष की &...