मंगलवार, 6 दिसंबर 2022
रांची की अधूरी यात्रा
मंगलवार, 8 नवंबर 2022
मेट्रो से दुनिया
गुरुवार, 22 सितंबर 2022
'इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी' - सी भास्कर राव की समीक्षा
जाने-माने साहित्यकार सी. भास्कर राव सर जमशेदपुर में मेरे टीचर रहे हैं। बेहद सौम्य, शालीन और मृदुभाषी। उन्हें अपनी कविताओं की किताब भेजी तो बदले में उन्होंने ये मेल भेजकर और कर्ज़दार कर दिया। ऐसे भी कोई लिखता है क्या। आज उनका जन्मदिन है तो सोचा अपने ब्लॉग पर यह समीक्षा लगाकर अपने गुरु को थोड़ा सम्मान दिया जाए।
प्रियवर
निखिल,स्नेह|
मैंने
आपके प्रथम कविता संग्रह की सारी कविताएं मनोयोग से पढ़ीं|
आशीष
सहित मैं इस बात के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ कि आपने अपनी श्रेष्ठ
कविताएं पढ़ने का एक दुर्लभ अवसर मुझे प्रदान किया|
सच
तो यह है कि मैं बहुत कम कविता संग्रह ही पढ़ पाया हूँ,शायद इसलिए भी कि मैं मूलत:
एक गद्य लेखक हूँ और गद्य रचनाएं ही अधिक पढ़ने का अवसर मिलता रहा है| किसी युवा
कवि के प्रथम कविता संग्रह पढ़ने का अवसर भी बहुत कम मिला है,लेकिन पूरी ईमानदारी
से कह सकता हूँ कि इससे पूर्व किसी युवा कवि का इतना प्रखर और प्रभावशाली संग्रह
कभी पढ़ने को नहीं मिला|सुप्रसिद्ध साहित्यकार सी. भास्कर राव
सारी
कविताएं पढने के बाद यह अनुभव किया कि ये ऐसी कविताएं नहीं हैं,जिन्हें एक बार पढ़
लेने मात्र से उनकी गहराई और गंभीरता को पूरी तरह अनुभव किया जा सके,बल्कि उन्हें
कई-कई बार पढ़ने की आवश्यकता है ताकि उनकी परतों और तहों को समझा जा सके|
समस्त
कविताएं मुझे अत्यंत संवेदनशील,सार्थक,सघन और नितांत सामायिक प्रतीत हुईं|
इन
कविताओं में जो तेवर है,तल्खी है,तीव्रता है,वह किसी भी संवेदनशील पाठक को झकझोरने
में समर्थ है|
कथ्य
और शिल्प की दृष्टि से सभी कविताएं,चाहे वे छोटी हों या किंचित लम्बी,अपने आप में परिपक्व
और प्रौढ़ हैं| कोई भी कविता किसी जागरूक मन को बिना स्पर्श किए रह जाए,यह कतई संभव
नहीं है|
ये
सारी कविताएं आज के समय और समाज की परतों को उघेड़ने में जितनी सक्षम हैं,उन्हें
सीधे छेदने और भेदने में भी उतनी ही सामर्थ्यवान तथा संभावनापूर्ण हैं|
आज
के समाज के छल-छद्म की जो चीर-फाड़ इन कविताओं में हुई है,वह अपनी नंगी आँखों से
किसी लाश के निर्मम पोस्टमार्टम को देखते हुए भीतर से छलनी होने जैसा है|
सच
तो यह है कि हर कविता अपने आप में एक मिसाइल की तरह है,जिसकी अपनी-अपनी मारक
क्षमता है,जिससे कोई बचना चाहकर भी नहीं बच सकता है|
कई
कविताएं हमें अपने बौनेपन,नंगेपन और नपुंसकता का तीखा एहसास कराती हैं| साथ ही
अपनी असमर्थता,असहायता,अवशता का भी| ये कविताएं हमें अपनी बेबसी और अपनी बेचारगी से रूबरू कराती हैं|
कविताएं
जिस हद तक पाठकों के मन पर अपना प्रभाव डालती हैं,उसी हद तक उनके मस्तिष्क पर
प्रहार भी करती हैं| हर कविता का हर भाव किसी न किसी वैचारिक चेतना को अभिव्यक्त
करने में समर्थ है| कथ्य और शिल्प का तथा भाव और विचार का जो सामंजस्य इन कविताओं
में मिलता है,वह उनके समग्र प्रभाव को कई गुना बढ़ा देता है|
खासकर
कविताओं का विचार पक्ष,जो अपनी पूरी बौद्धिक क्षमता के साथ मौजूद है,पढ़ने वाले को बेचैन
करता है और भीतर तक हिला कर रख देता है,जिससे मन विचलित और आंदोलित हो उठता है|
व्यक्तिगत
जीवन प्रसंगों से लेकर सामाजिक और राजनैतिक प्रसंगों तक तथा उससे भी आगे जाकर
सार्वजनीन प्रसंगों तक इनमें जो गहरी विवेचना और सघन विश्लेषण मिलता है,वह अचंभित
कर देता है कि क्या सचमुच ये कविताएं किसी युवा कवि के प्रथम कविता संग्रह की है!
प्रियवर
इन सारी कविताओं को पढ़ने के बाद यही महसूस किया कि कविताओं में जो गंभीरता और
गहराई है,उस पर टिप्पणी करने की अर्हता सचमुच
मुझमें नहीं है|
सचाई
यह है कि मैं पिछले लगभग पचास वर्षों से लिख छप रहा हूँ,लेकिन कन्फेस करता हूँ कि
अपने आज तक के समस्त लेखन-प्रकाशन पर आपकी यह कविता संग्रह बहुत-बहुत भारी पड़ता
है|
मेरे
एक दिवंगत पूज्य गुरुदेव कहा करते थे कि कोई गुरु जब अपने शिष्य से हार जाए,तो
समझो कि वह गुरु की सबसे बड़ी जीत है| आपकी कविताओं को पढ़ने के बाद आज मैं शिद्दत
से महसूस करता हूँ कि मैं अपने पुत्रवत शिष्य निखिल आनन्द गिरि से हार कर स्वयं को
विजयी और गौरान्वित अनुभव कर रहा हूँ,जिसका प्रमाण है- आपका यह प्रथम कविता संग्रह
“ इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी “
पुन:
एक बार हार्दिक बधाई,असीम शुभकामनाएं एवं अशेष आशीष| इसलिए कि इन्हें पढ़कर मैं
धन्य-धन्य हुआ| यह संग्रह नहीं पढ़ पाता तो निश्चय ही समकालीन जीवन के खुरदुरे
यथार्थ और बेरहम सचाई के साक्षात्कार से वंचित रह जाता|
सी.भास्कर राव.
बुधवार, 29 जून 2022
दीवारें
गुरुवार, 9 जून 2022
सीमित संभावनाओं वाले कवि की असीमित इच्छाओं का कोलाज
शुक्रवार, 27 मई 2022
बेटी का स्कूल
शनिवार, 14 मई 2022
पति-पत्नी
बुधवार, 11 मई 2022
सत्य ही 'शिव' है, शिव ही 'संतूर' है
शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022
रिश्तों का सच
रविवार, 23 जनवरी 2022
तुम्हारे साथ इक लम्हा बहुत है
शुक्रवार, 21 जनवरी 2022
मौन अकेली इक भाषा है, जिसके लुप्त होने का कोई ख़तरा नहीं!
''दुनिया की सबसे छोटी कविता लिखनी हो
तो लिखा जाना चाहिए –
पृथ्वी’’
ज्योतिकृष्ण वर्मा
जी के कविता संग्रह ‘मीठे पानी की मटकियां’ में इस तरह की कई छोटी और प्रभावी कविताएं हैं।
कविताओं से अधिक क्षणिकाएं कहना बेहतर रहेगा। पूरे संग्रह में क़रीब 70 कविताएं
होंगी, जिनका आकार इसी तरह का है। संपादित, साफ-सुथरी, शांत, गंभीर, छोटी-छोटी
कविताएं। कहीं कोई अतिरिक्त शब्द नहीं। कविताएं लिखने का मेरा अनुभव और मिज़ाज इस
संग्रह से थोड़ा अलग है, इसीलिए पूरा पढ़ने का आकर्षण बना रहा।
प्रकृति के कई रंग-
जैसे नदी, मौसम, पहाड़, नारियल से लेकर शहर के तमाम रंग इस किताब में मौजूद हैं।
कवि के शब्दों में ही कहें तो –
‘इस किताब को खोलते समय
सिर्फ पन्ने ही नहीं
खुलते इसके
खुल जाती हैं
ज्योतिकृष्ण वर्मा जी का कविता संग्रह |
नदियां, आकाश,
समंदर...
दिख जाते हैं
ऊंची उड़ान भरते पंछी
लहलहाते खेत, पेड़ों
पर लौटता वसंत
गुलाब की टहनी पर
चटखती कलियां
आंगन में खिली धूप
चूल्हे पर रखी हांडी
स्कूल जाते बच्चे
घर संवारती औरत...’ (कविता – सिरहाने)
इस कविता संग्रह में
कई पंक्तियां हैं, जिनमें भरपूर चित्रात्मकता है। ये कवि की सबसे बड़ी ख़ूबी है,
जो पूरी कविता में बार-बार उभर कर सामने आती है। जैसे संग्रह की पहली कविता ‘पेड़’ से ये पंक्तियां –
‘काश!
कोई दिव्य बालक
छिपा देता कुल्हाड़ी
कहीं दूर
मनुष्य की पहुंच से।‘
यहां मनुष्य और
दिव्य बालक अलग हो गए हैं। मेरे ज़ेहन में कोई आदिवासी बालक आता है जिसके हाथ में
कुल्हाड़ी है और पेड़ों के लिए आदर।
ऐसे ही एक कविता का
चित्र देखिए –
‘मेरे शहर में आ जाए
चहचहाती गौरेया
मैं हटा दूंगा
गेट पर टंगा बोर्ड
‘किराये के लिए मकान खाली है’ (कविता-रंग)
इस संग्रह को इसीलिए
पढ़ना चाहिए कि सीखा जाए कि कम शब्दों में असर कैसे बनाए रखा जाता है। बिना किसी विशेष
अलंकार या तामझाम के। ‘आशियाना’, ‘कभी-कभार’, ‘निवेदन’ जैसी कविताएं कुल 15-20 शब्दों की हैं, मगर काफी समय तक
याद रहने वाली हैं –
‘उसने कोर्ट में अर्ज़ी दी है
अपनी पत्नी से तलाक
के लिए
अन्य जानकारी के
कॉलम में
उसने लिखवाया था एक
जगह –
होम मेकर’ (कविता - ‘निवेदन’)
किसी भी कविता संग्रह
की तरह इसमें मां पर कुछ अच्छी क्षणिकाएं भी हैं। एक भावुक कविता पिता पर भी है जो आम
तौर पर कम पढ़ने को मिलती हैं।
‘बोधि प्रकाशन’ से आई ये कविता पढ़ने और सहेजने लायक है। आज की कविताओं को जो स्वर है, उनसे अलग। छोटी कविताएं हैं तो युवाओं और मोबाइल पर शायरी फॉरवर्ड करने वालों के लिए भी ये बेहतर विकल्प है जहां कुछ पंक्तियों में ही आपका संदेश आगे जा सकता है। अष्टभुजा शुक्ल के शब्दों में कहें तो- ‘मीठे पानी की मटकियां’ की ये कविताएं निश्चय ही पाठकों के हलक को तर और तृप्त करेंगी।'
गुरुवार, 30 दिसंबर 2021
गूगल पीढ़ी के बच्चे
गुरुवार, 27 मई 2021
साइकिल पर प्रेमिका
रविवार, 23 मई 2021
हल्लो मच्छर!
शनिवार, 22 मई 2021
इच्छाओं का कोरस
रविवार, 16 मई 2021
अकेलेपन के नोट्स - 2
शुक्रवार, 14 मई 2021
अकेलेपन के नोट्स - 1
मंगलवार, 11 मई 2021
गिरते हुए
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021
गाना डॉट कॉम का ‘आपदा में अवसर’ उर्फ़ ‘लस्ट बर्ड्स विद रिया’
जब आपको लगता है कि सोशल मीडिया ही दुनिया है और पूरी दुनिया किसान आंदोलन, कोरोना वैक्सीन पर बहस में उलझी है, ठीक उसी वक्त इंसानी आबादी का एक बड़ा गुच्छा टाइम्स ग्रुप के मशहूर पोर्टल गाना डॉट कॉम के बैनर तले रिया की बेडरूम कहानियों में कान लगाए बैठा है। इसे मैं एक रिसर्च स्कॉलर के तौर पर ख़ुद के लिए और एक बिज़नेस प्लैटफॉर्म के तौर पर गाना डॉट कॉम दोनों के लिए ‘आपदा में अवसर’ कहना चाहूंगा जो ब्रह्मांड के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री का दिया गया जुमला है।
साल 2020 के दौरान कोरोना महामारी में सबने अपने-अपने हिसाब से समय का सदुपयोग किया है। मैंने रेडियो पर रिसर्च करते करते एक दिन गाना डॉट कॉम पर पॉडकास्ट की एक नई सीरीज़ को क्लिक कर दिया जो दिसंबर 2020 में पहली बार पोस्ट हुआ था। नाम था ‘लस्ट बर्ड्स विद रिया’। स्कूल के दिनों में लुगदी किताबों (पल्प फिक्शन) की शक्ल में बिकने वाला पॉर्न, साइबर कैफे वाले युग में पांच रुपये प्रति घंटा के रास्ते वेबसाइट्स तक तस्वीरों और वीडियो के अवतार तक पहुंचा। मगर, आवाज़ की दुनिया यानी पॉडकास्ट में ये प्रयोग मेरे लिए पहला अनुभव था। फोटो-वीडियो की बाढ़ के ज़माने में सिर्फ ऑडियो के सहारे पॉर्न कंटेंट सोचना और ये मानना कि जनता हाथोंहाथ लेगी, किसी क्रांतिकारी क़दम से कम नहीं है।
‘लस्ट विद रिया’ पॉडकास्ट पॉर्न है जिसमें लगभग हर हफ्ते एक दस-बारह मिनट की ऑडियो कहानी डाली जाती है। पॉडकास्ट शुरू होते ही अंग्रेज़ी में डिस्क्लेमर आता है कि ये कहानियां 18 वर्ष की उम्र के बाद के श्रोताओं के लिए ही है, फिर बिना रुके हिंदी में कहानियां शुरू होती हैं। ये कहानी ‘रिया’ सुनाती हैं जो एक आइएएस ऑफिसर की हाउसवाइफ हैं और उनका मानना है कि हर इंसान सेक्स का भूखा होता है, जिसे दिन में कम से कम दो बार इसकी ख़ुराक चाहिए। मगर वो सेक्स दुनिया की ऐसी भूखी हैं, जो ‘बुफे’ में बिलीव करती है। कभी लिफ्ट में, कभी स्विमिंग पूल में, डॉक्टर क्लीनिक में, योगा के बहाने, कभी वैकेशन के दौरान उन्हें नए-नए मर्द मिलते हैं, जिनके साथ वो बड़े चाव से अपने सेक्स अनुभव सुनाती हैं।
रेडियो प्रोग्रामिंग में ड्रामा फॉर्मेट के लिहाज़ से इसमें आवाज़ के सारे पहलू मौजूद हैं। रिया और उसे मिलने वाले किरदारों के नाटकीय नैरेशन हैं, आपको नाज़ुक पलों में ले जाता बैकग्राउंड म्यूज़िक है और रिया के साथ मर्दों के मिलने की आवाज़ों के सस्ते साउंड इफेक्ट्स भी। कई बार ऐसा भी होता है कि रिया जब आपको बहुत ध्यान से सुनने को मजबूर करना चाहती है, आपकी हंसी छूट जाए कि ये सब क्या हो रहा है। लेकिन कुल मिलाकर पॉर्न पॉडकास्ट तैयार करने में मेहनत की गई है, ऐसा कहा जा सकता है।
रिया नाम भी एक तरह का ट्रांज़िशन कहा जा सकता है। हिंदी के लुगदी पॉर्न का पाठक ‘मस्तराम’ नाम से वाकिफ़ होगा। फिर सविता, वेलम्मा जैसे देसी नाम से पाठकों-दर्शकों की नई पीढ़ी तैयार हुई। इस ऑडियो किरदार का नाम रिया है। थोड़ा-सा मॉडर्न, कम से कम मस्तराम से बहुत अलग परिवेश में पली-बढ़ी, पढ़ी-लिखी। मगर इच्छाएं वही आदम-हव्वा वाली। इसे एक फॉर्मूला पॉर्न की तरह कहा जा सकता है, जिसमें हर बार कोई लड़की या महिला ही अपनी महत्वाकांक्षी कहानियां सुनाए।
इन ऑडियो कहानियों मे कल्पना (इमैजिनेशन) की जगह है भी और नहीं भी। ‘मेरी सांसे राजधानी एक्सप्रेस से भी तेज़ हो गई थीं, उसकी पतंग मेरे हाथ में थी’ जैसे डायलॉग आपको अलग कल्पना-लोक में ले जाते हैं, वहीं सी ग्रेड फिल्मों की तरह कामुक पलों के बैकग्राउंड साउंड इफेक्ट वैसे के वैसे ही चेंप दिए गए हैं।
कम लिखूं, ज़्यादा समझिए। विशेष रिया की मनोहर कहानियां सुनने पर।मंगलवार, 9 जून 2020
(कोरोना- काल की छिटपुट कविताएँ)
1) किसी दिन सोता मिला अपनी ही कार में,
तो कोई चिड़िया ही छूकर देखेगी
कितना बचा है जीवन।
लोग चिड़िया के मरने का इंतज़ार करेंगे
और मेरे शरीर को संदेह से देखेंगे।
स्पर्श की सम्भावनाएँ इस कदर ध्वस्त हैं।
2)
आप मानें या न मानें
इस वक़्त जो मास्क लगाए खड़ा है मेरी शक्ल में
आप सबसे हँसता- मुस्कुराता, अभिनय करता
कोई और व्यक्ति है।
आप चाहें तो उतार कर देखें उसका मास्क
मगर ऐसा करेंगे नहीं
आप भी कोई और हैं
चेहरे पर चेहरा चढाये।
ठीक ठीक याद करें अपने बारे में।
मैं क्रोध में एक रोज़ इतना दूर निकल गया
कि मेरी देह छूट गयी कमरे में।
मुझे ठीक ठीक याद है।
3) तुम्हे कोई खुश करने वाली बात ही सुनानी है इस बुरे समय में
तो मैं इतना ही कह सकता हूँ
पिता कई बीमारियों के साथ जीवित हैं
अब भी।
माँ आज भी अधूरा खाकर कर लेती है
तीन आदमियों के काम।
घर मेें और भी लोग हैं
मगर मैंने उन्हें रिश्तों के बोझ से आज़ाद कर दिया है
मैं पिछले बरस आखिरी बार घर की याद में रोया था
फिर अब तक घर में क़ैद हूँ।
4)
मृत्यु की प्रतीक्षा में कुछ भले लोग चले जा रहे हैं
भाग नहीं रहे।
मृत्यु की प्रतीक्षा में कुछ लोग थालियां पीट रहे हैं
घंटियाँ, शंख इत्यादि बजा रहे हैं।
(इत्यादि बजता भी है और नहीं भी)
कुछ लोग लूडो खेल रहे हैं मृत्यु की प्रतीक्षा में।
जिन्हें सबसे पहले मर जाना चाहिए था
बीमारी से कम, शर्म से अधिक
वही जीवन का आनंद ले रहे हैं।
मृत्यु एक प्रेमिका है
जिसकी प्रतीक्षा निराश नहीं करेगी।
वो एक दिन उतर आयेगी साँसों में
बिना आमंत्रण।
दुनिया इतनी एकरस है कि
मरने के लिए अलग बीमारी तक नहीं।
निखिल आनंद गिरि
सोमवार, 1 जून 2020
मेरे 'बंधु' प्रेम भारद्वाज का जाना..
लता जी (उनकी पत्नी) के जाने के बाद वो बहुत अकेले हो गए थे। उन्होंने बहुत दिनों बाद बताया था कि लता जी की अस्थियां चुराकर उन्होंने अपने घर की दराज़ में छिपा ली थीं। उनका प्रेम ऐसा ही था। अतिभावुक, अति निश्छल। लता जी के जाने के बाद कई महिलाएं भी उनके क़रीब आईं। अधिकतर छपास की उम्मीद में। प्रेम जी सब समझते थे। कहते ज़्यादा नहीं थे।
(बंधु-यही उनका संबोधन हुआ करता था)
निखिल आनंद गिरि
ये पोस्ट कुछ ख़ास है
नन्हें नानक के लिए डायरी
जो घर में सबसे छोटा होता है, असल में उसका क़द घर में सबसे बड़ा होता है। जैसे सबसे छोटा बच्चा पूरे घर की धुरी होता है। ये पोस्ट मेरे दो साल के...
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कौ न कहता है कि बालेश्वर यादव गुज़र गए....बलेसर अब जाके ज़िंदा हुए हैं....इतना ज़िंदा कभी नहीं थे मन में जितना अब हैं....मन करता है रोज़ ...
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हिंदी सिनेमा में आखिरी बार आपने कटा हुआ सिर हाथ में लेकर डराने वाला विलेन कब देखा था। मेरा जवाब है "कभी नहीं"। ये 2024 है, जहां दे...
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छ ठ के मौके पर बिहार के समस्तीपुर से दिल्ली लौटते वक्त इस बार जयपुर वाली ट्रेन में रिज़र्वेशन मिली जो दिल्ली होकर गुज़रती है। मालूम पड़...