बुधवार, 21 सितंबर 2016

अच्छे दिनों की गज़ल

दिल्ली की सड़कों पर कत्लेआम है, अच्छा है
अच्छे दिन में मरने का आराम है, अच्छा है।

छप्पन इंची सीने का क्या काम है सरहद पर, 
मच्छर तक से लड़ने में नाकाम है, अच्छा है।

बिना बुलाए किसी शरीफ के घर हो आते हैं
और ओबामा से भी दुआ-सलाम है, अच्छा है।

कचरा खाती गाय माता अपनी सड़कों पर,
गोरक्षक के घर में दूध-बादाम है, अच्छा है।

पढ़ने-लिखने वालों में, गद्दारी दिखती है
देशभक्त इस देश का झंडू बाम है, अच्छा है।

मन की बातमें अपने मन की उल्टी करते हैं
जन की बात न सुनने का निज़ाम है, अच्छा है।

निखिल आनंद गिरि

4 टिप्‍पणियां:

इस पोस्ट पर कुछ कहिए प्लीज़

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

नदी तुम धीमे बहते जाना

नदी तुम धीमे बहते जाना  मीत अकेला, बहता जाए देस बड़ा वीराना रे नदी तुम.. बिना बताए, इक दिन उसने बीच भंवर में छोड़ दिया सात जनम सांसों का रिश...

सबसे ज़्यादा पढ़ी गई पोस्ट