दिल्ली की सड़कों पर कत्लेआम है, अच्छा है
अच्छे दिन में मरने का आराम है, अच्छा है।
निखिल आनंद गिरि
अच्छे दिन में मरने का आराम है, अच्छा है।
छप्पन इंची सीने का क्या काम है सरहद पर,
मच्छर तक से लड़ने में नाकाम है, अच्छा है।
बिना बुलाए किसी शरीफ के घर हो आते हैं
और ओबामा से भी दुआ-सलाम है, अच्छा है।
कचरा खाती गाय माता अपनी सड़कों पर,
गोरक्षक के घर में दूध-बादाम है, अच्छा है।
पढ़ने-लिखने वालों में, गद्दारी दिखती है
देशभक्त इस देश का झंडू बाम है, अच्छा है।
‘मन की बात’ में अपने मन की उल्टी करते हैं
‘जन की बात’ न सुनने का निज़ाम है,
अच्छा है।निखिल आनंद गिरि
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 23 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक गजल
जवाब देंहटाएंबढ़िया :)
जवाब देंहटाएंसुंदर और सार्थक गजल
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