तुमने जो इक सागर जैसा दुख सौंपा था
अनजाने में...
खूब हिलोरें मार रहा है,
बहुत दिनों तक
दिल के सबसे भीतर के खाने में
जज़्ब किया था इस सागर को,
बहलाया भी...
बाहर बहुत उदासी है,
तुम मन के भीतर रहना सागर...
सब कुछ ठीक था,
मगर अचानक,
इक पूनम की चांद रात में
मैंने ये महसूस किया था
मन के भीतर टूटा था कुछ,
लो टाइड थी...
सब्र बांध का टूट गया था...
सागर रस्ता मांग रहा था...
होठों, आंखों के रस्ते से...
मुझको सब मालूम है साथी,
मेरे होठों का खारापन,
आंखों में कुछ नमक के ढेले...
मुझको सब मालूम है साथी
जब भी तुम ऐसा कहती हो,
मेरी बातों में तल्खी है,
मेरी नज़र में पानी कम है...
तुमने जो इक सागर जैसा दुख सौंपा था..
छलक रहा है,
बरस रहा है...
देखो ना-
हम दोनों ने जो दुख बोया था
कितना बड़ा हुआ है आज....
अनजाने में...
खूब हिलोरें मार रहा है,
बहुत दिनों तक
दिल के सबसे भीतर के खाने में
जज़्ब किया था इस सागर को,
बहलाया भी...
बाहर बहुत उदासी है,
तुम मन के भीतर रहना सागर...
सब कुछ ठीक था,
मगर अचानक,
इक पूनम की चांद रात में
मैंने ये महसूस किया था
मन के भीतर टूटा था कुछ,
लो टाइड थी...
सब्र बांध का टूट गया था...
सागर रस्ता मांग रहा था...
होठों, आंखों के रस्ते से...
मुझको सब मालूम है साथी,
मेरे होठों का खारापन,
आंखों में कुछ नमक के ढेले...
मुझको सब मालूम है साथी
जब भी तुम ऐसा कहती हो,
मेरी बातों में तल्खी है,
मेरी नज़र में पानी कम है...
तुमने जो इक सागर जैसा दुख सौंपा था..
छलक रहा है,
बरस रहा है...
देखो ना-
हम दोनों ने जो दुख बोया था
कितना बड़ा हुआ है आज....
दुःख - सुख तो जीवन के पहिये हैं दोस्त कभी आते हैं कभी जाते हैं दोनों का आपस मै बहुत गहरा रिश्ता है | तो फिर घबराना कैसा आज दुख है तो कल सुख होगा ही होगा |
जवाब देंहटाएंएहसासों को खूबसूरती से दर्शाती रचना |
इस कविता में गुलज़ार का असर दिख रहा है
जवाब देंहटाएंदेखो ना-
जवाब देंहटाएंहम दोनों ने जो दुख बोया था
सिर्फ मेरी आँखों से छलक रहा है .........................
(कुछ यूँ होता तो कैसा होता )
कितना बड़ा हुआ है आज..ki jagah .