बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

अकेले में नहीं मिलने वाली लड़कियां....

आप मुझसे प्रेम करते हैं...

तो चलिए मान लिया कि प्रेम करते हैं...

आपकी सभी शर्तें भी मान लीं...

कि ये नहीं कर सकते, वो कर सकते हैं...

अब जितना बच गया है शर्तों में...

उतना ही प्रेम कीजिए मुझसे...
 
देखना चाहता हूं कैसे बांटती हैं अकेलापन...
 
अकेले में नहीं मिलने वाली लड़कियां...
 
 
निखिल आनंद गिरि

8 टिप्‍पणियां:

  1. निखिल आपकी कविताओं को पढना एक अनुभव से गुजरना है... इसलिए मैं नियमित कमेन्ट नहीं कर पता.. क्योंकि जो चीज़ दिल को छु जाये उसके लिए कुछ कहना बश में रह नहीं जाता... ऐसी ही आपकी पिछली कविता थी प्रेम त्रिकोण वाली... आज की कविता में प्रेम के द्वन्द, छद्म, मानसिकता आदि को अप्रत्यक्ष रूप से और कहूँगा प्रभावशाली ढंग से रख दिया आपने.. शुभकामना आपकी कविता के लिए..

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  2. बेहद गहन्………दो बार पढनी पडी ……………भावो का सुन्दर समन्वय्।

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  3. हाँ सच में दो बार पढनी पढ़ी ये लाइने
    जो कविता की बजाये एक कटाक्ष लगती है
    उस लड़की पर या उस जैसी कई लड़कियों पर जो परिवार की परिधिओं में बैठकर प्रेम का घर द्वार सजाती हैं
    अकेले में मिलने से डरने वाली लड़कियां शायद अकेले में भी अपने उसी प्रेमी के सपने सजाती होंगी जिससे वो अकेले में नही मिल पाई
    सवाल ये भी है की अकेले में मिलने जाने वाली लड़कियां अकेलपन के लिए क्या करती होंगी
    .
    .
    .
    हालाँकि ये शब्दों का घुमाव है इसी के इर्द गिर्द कहीं प्रेम भी गोते खाता रहता है कहीं अकेले में कहीं वीराने में

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  4. देखना चाहता हूं कैसे बांटती हैं अकेलापन...

    अकेले में नहीं मिलने वाली लड़कियां...

    nahi dekh paaogi kabhi ,koshish bekaar hai ................

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  5. आखिरी दो पंक्तियों में सस्पेंस भी है और प्रश्न भी और उत्तर भी. इन 3-dimensional पंक्तियों को पढ़ कर मज़ा आ गया...

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  6. आखिरी दो पंक्तियों में सस्पेंस भी है और प्रश्न भी और उत्तर भी. इन 3-dimensional पंक्तियों को पढ़ कर मज़ा आ गया...

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  7. बड़ी हीं गूढ बात कह दी आपने।

    इसी से मिलती-जुलती एक बात कहीं पढी थी मैंने कि आपको चाहने वाला पहले तो आपकी आदतों और आपकी जीवन-शैली को बदल डालता है और फिर बाद में शिकायत भी करता है कि तुम पहले जैसे नहीं रहे.. बदल गए हो।

    -विश्व दीपक

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  8. वाह ...बहुत ही खूबसूरत शब्‍दों का संगम है इस रचना में ...।

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