रविवार, 20 फ़रवरी 2011

तुम्हें मंदिर की घंटियों में मैंने पाया है...

तुम्हे मंदिर की घंटियों में मैंने पाया है
मैं महसूस करता हूँ तुमको ही अज़ानों में,
अक्सर माँ की लोरी की तरह ही बोल तेरे,
अक्सर घोल देते हैं मिठास मेरे कानों में...
अब मंज़िल ही कोई, और राहगुजर कोई,
हुआ एक भी सफ़र मेरा और ना हमसफ़र कोई,
मैं फिर भी इन उम्मीदों के सहारे चल रहा हूँ,
कि अनगिन वेदना के क्षणों में जल रहा हूँ-
कि तुम इस धूप में भी बरगदों की छाँव बनकर,
कि बनकर तुम किसी झरने का कलकल स्वर ...
सुख, अमर सुख, दे सको मेरी थकानों में.....

मैं अगणित बार खंडित हो रहा हूँ, दिन-प्रतिदिन;
मैं कितनी बार जीते-जी मरा करता हूँ तुम बिन;
बहारें हैं ज़माने में, मेरी खातिर है पतझड़;
इस मायावी दुनिया में खड़ा हूँ हाशिये पर,
मेरी श्रद्धा, मेरा भी प्रेम अब मायावी बनेगा?
दो आत्माओं का मिलन (भी) दुनियावी बनेगा?
सजेंगे आस्था के फूल दुनिया की दुकानों में.....

मैं थक कर चूर हो जाऊं तो सहलाना मुझे तुम,
ये दुनिया जब लगे छलने तो बहलाना मुझे तुम;
ये सौदे, दोस्त-दुश्मन और अय्यारी की बातें;
मेरे बस की नही हमदम; ये दुनियादारी की बातें;
मेरे आँसू यही कहते हैं तुमसे बार-बार
' मुझे लेकर चलो इस मायावी दुनिया के पार'
दफ़न हो जाएँ किस्से भी हमारे दास्तानों में...

तुम्हे मंदिर की घंटियों में मैंने पाया है,
मैं महसूस करता हूँ तुमको ही अज़ानों में,
अक्सर माँ की लोरी की तरह ही बोल तेरे,
अक्सर घोल देते हैं मिठास मेरे कानों में...

निखिल आनंद गिरि

5 टिप्‍पणियां:

  1. इस मायावी दुनिया में खड़ा हूँ हाशिये पर,
    मेरी श्रद्धा, मेरा भी प्रेम अब मायावी बनेगा?

    जादूगरी है प्रेम की....
    जाने किस किस के सर चढ बोलेगा यह जादू.
    थोडा समय देते तो बहुत सुन्दर रचना बनती निखिल.

    जवाब देंहटाएं
  2. अरुण जी,
    सही कहा, प्रेम में अद्भुत रसायन है....प्रेम भले खत्म हो जाए, रसायन बचा रहता है..

    पूजा जी,
    जब ये कविता लिखी थी तो समय होता नहीं था...कम से कम 7 साल पुरानी है ये कविता...अब दोबारा समय देने का मन नहीं करता...थोड़ी-बहुत कमियों के साथ
    भी पुरानी कविताएं देखना बहुत सुख देता है...

    जवाब देंहटाएं
  3. तुम्हे मंदिर की घंटियों में मैंने पाया है ...
    महसूस करता हूँ माँ की लोरियों में , अजानों में ...
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  4. हाँ प्रेम में रसायन होता है लेकिन कई बार केमिस्ट्री ही कमजोर होती है
    आपके ब्लॉग के पचासवे फोलोअर के रूप में आज से हम भी दर्ज हो गए है

    जवाब देंहटाएं

इस पोस्ट पर कुछ कहिए प्लीज़

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

भोजपुरी सिनेमा के चौथे युग की शुरुआत है पहली साइंस फिक्शन फिल्म "मद्धिम"

हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि - कथाकार विमल चंद्र पांडेय की भोजपुरी फिल्म "मद्धिम" शानदार थ्रिलर है।  वरिष्ठ पत्रकार अविजित घोष की &...