ये ज़िंदगी से लंबी सड़कें किसने बना दीं
किसने बिछा दिए कंकड़?
कौन है रातें इतनी अंधेरी कर गया
किसने छीन ली आग कलेजे से।
कोई तो है छल से
रहता है छिपकर भीतर।
एक लड़की भी हो सकती है शायद
छोटे बालों वाली
या कोई गौरेया दाना लिए
छिपकर बैठी किसी कोने में
घुटनों में चेहरा छिपाए
कैसे तोड़ दूं छिपना किसी का।
आकाश छिप गया मन के भीतर
मौसम छिप गए सारे वहीं
मैं भूल गया वो कोना
जहां छिपना था सबसे बचकर।
निखिल आनंद गिरि
('तद्भव' पत्रिका में प्रकाशित)
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